Sunday, 19 April 2015

~**मेरी पहली ग़ज़ल~'ख़ुद से इतना प्यार न कर'**~

ख़्वाबों को अख़बार न कर
ख़ुद से इतना प्यार न कर।

ये जीवन इक बाज़ी है
रिश्तों को हथियार न कर।

महँगी माना खुशियाँ हैं
अश्कों का व्यापार न कर।

फूल मिलें जब राहों में
काँटों को बेज़ार न कर ।  

अरमानों की महफ़िल में
ग़म का तू इज़हार न कर ।

लेकर बातों के ख़ंजर
अपनों पर तू वार न कर।

 साँस-किराया देता चल
कम-ज़्यादा तक़रार न कर।