मन बहुत खिन्न है, दुखी है ! अक्सर होता है... मगर आज साझा कर हूँ वो सवाल जो समाचारों के ज़रिए मेरे ज़हन में भारी उथल-पुथल मचा जाता है ! ये किसी ख़ास पर आरोप नहीं है ! बस, अन्याय से क्षुब्ध होकर एक प्रतिक्रिया है, एक इल्तिजा है...~
नारी महान है, धैर्यवान है ! नारी सहनशक्ति की मूर्ति है ! नारी सौंदर्य की देवी है !
आज नारी पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलकर चल रही है, वो पुरुष से किसी तरह से कम नहीं है !
कब तक बेवक़ूफ़ बनती रहेंगीं ऐसी बातों से नारियाँ ? हाँ! माना ! क़ाबिलियत में नारी किसी तरह से भी पुरुष से कम नहीं है, बल्कि कई जगहों पर उससे आगे ही है मगर... कहीं न कहीं.. शारीरिक रूप से वो कमज़ोर पड़ ही जाती है !
ईश्वर के जिस वरदान ने नारी को महान बनाया है, वही उसकी कमज़ोरी का सबसे बड़ा कारण बन गया ! जिस कोख में वो जीवन का सृजन करती है, उसी के द्वारा उसे अपमानित और प्रताड़ित किया जाता है ! और ये कोई आज की बात नहीं है, सदियों से ऐसा ही होता आ रहा है ! कुछ हैवान जो इंसान के रूप में हमारे समाज में घूमते हैं, पल भर में ही एक जीती जागती नारी को ज़िंदा लाश में बदल देते हैं... और हम इंसान कुछ नहीं कर पाते...!
न जाने कितनी बच्चियाँ, नाबालिग लड़कियां और विवाहित स्त्रियाँ, यहाँ तक कि नन्स (Nuns) भी .... इन हैवानों के घिनौने ज़ुल्म का शिकार बन चुकी हैं ! बाहर तो बाहर , घर तक में महफूज़ नहीं है आज नारी ! ऐसे शारीरिक अत्याचार के बाद, कहीं वो गुमनामी के अंधेरों में मुंह छिपाती फिरती है, या फिर कहीं समाज के उलटे-सीधे ताने सुन-सुन कर तंग आकर आत्महत्या तक कर बैठती है ! फिर कौन सी बराबरी? कहाँ की बराबरी? एक केस सामने आ गया तो इतना हो-हल्ला हो गया ! जो घरों की चारदीवारी में घुट-घुट कर मर गया... उसका क्या ?
अभी 16 दिसंबर 2012 में , राजधानी के केस में भी, अगर वो लड़का न होता या कुछ नहीं बताता या भगवान न करे उसे भी मार दिया गया होता.... फिर ? सबकुछ यूँ ही चुपचाप रात के सन्नाटे में ख़ामोशी में दब गया होता ....! एक और नारी कहीं दम तोड़ रही होती....! आखिर वो महान है, धैर्यवान है ना ! सब सहन कर लेती है !
भगवान ने भी पक्षपात किया ! अगर नारी को सौंदर्य दिया, सृजन की शक्ति दी, सहनशक्ति दी ... तो पुरुष को कहीं तो ऐसा दिल दिया होता, ऐसी नज़र दी होती ... कि वो उसका सम्मान करता, बिना नारी की सहमति से, ज़बरदस्ती, ऐसे कुकर्म करने लायक ना होता !
अब भगवान से तो इस समय बहस करने जा नहीं सकते ! इसलिए यहीं कुछ उपाय तो सोचना चाहिए ! आज फिर एक नारी ज़िन्दगी और मौत के बीच झूल रही है ! उसकी इस हालत के ज़िम्मेदार जो भी दरिन्दे हैं.... उन्हें मौत की सजा देना काफी नहीं है ! उन्हें तो ऐसी हालत में लाकर खड़ा करना चाहिए जहाँ वो, न ही जी पायें... न ही मर पायें.... ! वो इस हालत में जिंदा रहें की मौत की भीख मांगें .... और मौत उन्हें नसीब न होनी दी जाए।
एक बार अगर किसी को ऐसी सजा मिल जाए.... फिर भविष्य में कोई भी इन्सान रूपी हैवान ऐसा कुकर्म करने के पहले कुछ सोचेगा तो सही !!!