Tuesday, 21 January 2014
**~बादलों की आँखें ~**
Photo: Anita Lalit
गरजे मेघ,
सूरज भागा, छिपा
दूसरे देश।
चीखे बादल,
थर-थर काँपती
भोर है आई।
धरा है भीगी,
बादलों की आँखें भी
हुई हैं गीली।
मन है रोया
ग़रीबी की आड़ में
मानव खोया।
देखो ठिठुरी
ग़रीब की झोंपड़ी
जमी, पिघली।
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