प्यार का कैसा अनोखा रंग...
इस रंग के कैसे अजब हैं ढंग..!
कहीं दिखता है पर होता नहीं...
कहीं होता है पर दिखता नहीं..!
सात सुरों की झंकार प्यार...
इकतारे की धुन में बेखुद प्यार !
उगते सूरज की उमंग प्यार...
चंदा एकाकी.. उदास प्यार !
चटख लाली में खिलता प्यार...
बदरंग हो कभी छिटकता प्यार !
चेहरे पे दमकता नूर प्यार...
झुर्रियों में खोई कहानी प्यार !
फूलों में महकता नाज़ुक प्यार...
काँटों में ज़ख़्मी सिसकता प्यार !
गौहर -ए-शबनम सा हसीन प्यार...
क़तरा-ए-अश्क़ में लहुलुहान प्यार !
मासूम सी ज़िद में मचलता प्यार...
अहं में मुर्दा अकड़ता प्यार !
जज़्बा-ए-दोस्ती में निखरता प्यार...
एहसास-ए-दुश्मनी में बिखरता प्यार !
ख्वाबों में शहज़ादा प्यार ही प्यार...
हक़ीक़त का बेबस गुलाम प्यार !
प्यार का कैसा अनोखा रंग...
इस रंग के कैसे अजब हैं ढंग..!
कहीं दिखता है पर होता नहीं...
कहीं होता है पर दिखता नहीं...!!!
सिर्फ़ एक लाल लकीर नही ये....
मेरे चेहरे पर खिलती रौनक, एक पाक दमक...
जो देती मेरे चेहरे को खूबसूरत सी एक चमक...,
मेरे व्यक्तित्व की गरिमा.., माथे का गुरूर...,
मेरी हस्ती को करती मुक़म्मल है ये...!
सिर्फ़ एक लाल लकीर नहीं है ये....
आसमान में उगते सूरज की..
धरा को सजाती एक किरण जैसे..
ईश्वर का हो वरदान मुझे....
मेरे चेहरे की सिंदूरी आभा है ये...!
सिर्फ़ एक लाल लकीर नहीं ये....
समेटे खुद में मेरे अपनों के अरमान कई...
मेरे सूने वीरान से चेहरे को...
खिलाती, महकाती...,
आँखों में सपनों के रंग भरती ...,
दिल को अजब सा सुक़ून...,
ज़िंदगी को जीने की अदा देती है ये ...!
सिर्फ़ एक लाल लकीर नहीं ये....
प्यारे वादों के साथ...तेरे हाथों से सजाई....,
मेरी "माँग" में.....
"सिंदूर" की "पावन रेखा" है ये.....!!!
बीते लम्हे हौले से छू गये... दिल को..
ज़िंदगी को फूलों सी महका गये देखो...!
पलकों की चिलमन से झाँकते कुछ ख्वाब अधूरे...
दबी दबी मुस्कानों में.. हो जाने दो उन्हें पूरे...!
आओ चुन लें बिखरी तमन्नाओं की सौगातें ....
कि आँखों को फिर... कुछ ख्वाब पुराने याद आये...!
ओ रे मन मेरे ! न सुझा मुझे तू उदासी के बहाने...
इक अरसे बाद... दिल ने फिर मुस्कुराने की ठानी है...!
"माँ वंदना,
माँ अर्चना,
माँ आरती,
माँ प्रार्थना !
माँ ही पूजा,
माँ ही ईश्वर !
दुनिया में हैं अनेकों मंदिर...
माँ धरती पर स्वर्ग-धाम !!"
"माँ" ... इस एक शब्द में पूरी दुनिया सिमट आती है !
हर भावना, हर रिश्ते, हर इंसान की बुनियाद है माँ !
माँ परछाईं बन सदैव बच्चों संग रहती !
धूप में उनकी आड़ बनती, तूफ़ानों में उनकी ढाल !
कोई भी मुसीबत हो..... माँ बच्चों की शक्ति बन जाती !
बच्चे मुस्काते... माँ खिलखिलाती,
बच्चे सुबकते... माँ सिसकती !
बच्चे बीमार होते... माँ उनके सिरहाने बैठे रात-दिन एक कर देती !
बच्चों के मुँह में निवाले जाते....माँ के तन-मन को तृप्ति मिलती !
अपनी पलकों से बच्चों की राह बुहारती...
माँ काँटे चुन-चुन कर फूल बिछाती...!
अपने जीवन के अनमोल पल...बच्चों पर न्योछावर करते करते...
उसे खबर भी न होती...वो उम्र के दूसरे पड़ाव पर पहुँच जाती !
वक़्त अपनी गति से बढ़ता जाता...
बच्चे ज़िंदगी में आगे बढ़ते जाते... माँ उसी जगह पर ठहरी रह जाती !
जब तक उसे अपनी सुध आती... उसकी दुनिया बदल चुकी होती !
वो आगे बढ़ने को क़दम उठाती...उसे सहारे की ज़रूरत महसूस होती..!
जिनके एक इशारे पर वो फिरकी की तरह नाचा करती थी...
वो अपने परिवार में व्यस्त होते... माँ उनकी आस देखती रहती !
दुनिया की अंधी दौड़ में... आगे बढ़ने की होड़ में...
बच्चे जब माँ की उंगली छोड़ते... अक्सर हाथ भी छोड़ बैठते !
'मेरी आँखों का तारा', 'मेरा राज-दुलारा', 'मेरे जीवन का सहारा'....
ये सारी लोरियाँ... माँ के आँसुओं में घुलने लगती !
उसके कान बस एक पुकार सुनने को तरसते... "माँ" !
माँ सिर्फ़ दो पल, दो मीठे बोलों का सहारा चाहती...
अपने जीवन के अनगिनत अनमोल पल वारने के बाद...
अगर उसे ये भी नहीं मिलता....
तो वो टूटने लगती, अंदर ही अंदर घुलने लगती...
सबके बीच में रहकर भी.....
वह अकेली...बहुत अकेली हो जाती...!
हाथ जोड़कर प्रार्थना है....भगवान से...
किसी माँ को कभी इतना अकेला मत करना...
वरना तुमपर से दुनिया का विश्वास उठ जाएगा....
क्योंकि धरती पर तुम्हारे रूप अगर कोई है..
तो वो है...सिर्फ़...
" माँ "
आज चाँद दीपक के उजालों से डर गया देखो,
इल्ज़ाम फिर... रात के सिर धर गया देखो !
हसरतें महक उठीं, आरज़ुएँ फिर जी उठीं दिल में,
हर आहट पर खिली... रंगोली गयी निखर देखो !
हर दीप जैसे तकता हो किसी की राह जगकर,
दिल में उठने लगी... खुशियों की थिरकती लहर देखो ..!
दीपावली का त्योहार संग लाता पैगाम खुशियों के,
दीप, फुलझड़ी, पकवान से भरता... दिलों में मुस्कान देखो !
दीपों की लड़ियों में चमकें आशा की मुस्काती किरणें,
पूजा की थाली में सजे... विश्वास के कुंकुमी मंज़र देखो...!
काँच और भरोसा...
दोनों ही टूटते हैं अक्सर...
काँच टूटता है...
आवाज़ होती है,
दर्द का एहसास होता है...
चोट में चुभन होती है...
ज़ख़्म से खून बहता है ...
आँखों में आँसू आ जाते हैं ...
भरोसा टूटता है...
आवाज़ नहीं होती,
दिल बुत बन जाता है...
सदमे से सुन्न हो जाता है...
पत्थर के ज़ख़्म दिखाई नहीं देते ...
और सदमे के.... आँसू नहीं होते.....
आज' की 'रात'......
कुछ 'अलग' सा, प्यारा प्यारा है 'चाँद' !
'स्याह' आसमान में 'केसरिया' निकला है चाँद..!
फलक पे 'निहारा' करती मैं ... यूँ तो अक्सर रातों में चाँद...
आज 'आईना' बन खड़ी मैं....लिए 'आँखों' में 'दो दो चाँद'..!
खनकती चूड़ियों के बीच....
पूजा की थाली में...आज 'दिया' भी 'इतराये है...
'माँग में लाल किरण' और..'माथे' पे मेरे'....
देख 'उगता हुआ सिंदूरी चाँद'...!
'सात जन्मों' का ना जानूँ.., ना ही माँगूँ मैं कोई वरदान...,
इस जनम 'रहे सलामत' ..
'मेरा'...'बस मेरा' ही रहे......'मेरा चाँद'..!
जब 'छोड़ चलूँ' मैं ये 'जहाँ' ...
'अपने हाथों' से 'सजाना' 'मेरा सामान'..,
'ओढ़ा' कर 'लाल चुनरिया'.....
'ओ मेरे चाँद'.. 'तुम' ही 'भरना मेरी माँग'..!!!