Friday, 19 October 2012

**~ सवाल... या... जवाब....??? ~**


'नादानी'  बनी 'इल्ज़ाम'  कैसे,
'मासूमियत'  हुई  'शर्मसार'  किस तरह...

'खामोशी'  बनी  'गुनाह'  कैसे,
'शिक़वे'  हुए  'लाचार'  किस तरह...

'मायूसी'  बनी  'आदत'  कैसे,
'सपने'  हुए  'अख़बार'  किस तरह...

'यादें'  बनी  'किताब'  कैसे,
'फूल'  हुए  'गुनाहगार'  किस तरह...

'आँखें'  बनी  'सेहरा'  कैसे,
'अश्क़'  हुए  'बहार'  किस तरह....

'बादल'  बने  'दीवार'  कैसे,
'चाँदनी'  हुई  'तरफदार'  किस तरह...

'साहिल'  बने  'मंझदार'  कैसे,
'लहरें'  बनी  'पतवार'  किस तरह...

'मुखौटे'  बने  'पहचान'  कैसे,
'सादगी'  हुई   'मक्कार'  किस तरह...

'गुरूर'  बने  'सरताज'  कैसे,
'हक़ीक़त'  हुई  'खाकसार'  किस तरह...

'गम'  बने  'ख़ुदग़र्ज़'  कैसे,
'खुशी'  हुई  'बेज़ार'  किस तरह...

'जज़्बात'  बने  'इश्तहार'  कैसे,
'ज़िंदगी'  हुई  'व्यापार'  किस तरह...

'साँसें'  बनी  'सामान'  कैसे,
'मौत'  हुई  'साहूकार'  किस तरह....

'बंदगी'  बनी  'जुनून'  कैसे,
'खुदा'  हुए  'दर-ब-दर'  किस तरह.........

Saturday, 13 October 2012

**~टप...टप...टप...~ बूँदें एकाकीपन की...~**


रात का सुनसान सन्नाटा...
जब हर आवाज़, हर हलचल...
सो गयी  ...खामोशी से......!
अचानक सुनाई पड़ी तभी..
एक आवाज़...
टप...टप...टप... 
सन्नाटे को चीरती हुई !
शायद किसी नल के टपकने की....!
दिन भर के शोर में जिसका पता ही न चला.....
मगर... रात में उस एक आवाज़ के सिवा....
और कुछ भी... सुनाई न दिया...!
अंदाज़ा लगाया ...उस आवाज़ से उसकी ताक़त का...
ऐसा लगा , जैसे धरती को ही छेद कर रख देगी....!

महसूस होता है ऐसा ही कुछ ...
जब छाता है...मेरे अंतस में.....
गहन अंधेरा...घोर सन्नाटा ...
और हो जाते  हैं...
सारे एहसास, सारे जज़्बात गूँगे...
सुनाई पड़ती है तब......
कुछ ऐसी ही आवाज़........ 
चीरती हुई मेरे वजूद को....
टपकती हैं जब......मेरे दिल में...
'एकाकीपन' की बूँदें.......
टप...टप...टप........

Tuesday, 2 October 2012

~** ''दाग-ए-याद.. हरा-हरा'' **~


आदरणीय 'गुलज़ार' साहब की कविता 'वो कटी फटी हुई पत्तियां, और दाग़ हल्का हरा हरा!' से प्रेरित होकर लिखी हुई मेरी पंक्तियाँ...





कभी तोड़ीं थी जो शाख से कुछ पत्तियाँ.. हरी हरी..
मुरझाईं वो किताब में, लिए 'दाग-ए-याद'.. हरा-हरा ...!

तेरा शौक था.. मिले मुझसे तू,
मेरी आस थी.. तुझे देखना..!
तेरा ख़ौफ़ छिपा.. तेरी चुप में था,
मेरे दिल ने चाहा.. बयाँ तेरा ..! 
तू था सहमा सा.. तू डरा डरा...,
झुकी नज़रें थीं... मेरी हया ..!
तेरा नाम.. लब पे मेरे थमा....
था यक़ीन तुझे भी.. ज़रा ज़रा !
तेरे दिल में थी.. मेरी जूस्तजू...,.
रही खामोशी मगर... दरमियाँ ... !

नादान मैं..अंजान हूँ.....नहीं समझूँ क्या खोटा-खरा...~
जो कह दो..है वो बात ही क्या...?
जो न समझो... नज़र-ए-पयाम  क्या...?

महरूम जो ताबीरों से...जिए घुट-घुट दीवाना-हारा...
दे ज़ुबाँ जो टूटे ख्वाबों को...सम्मानित कवि कहलाया गया....!!!