छह-सात वर्षीया पिंकी अपने गुड़िया-गुड्डे लेकर, कमरे में अपने सुंदर से डॉल-हाउज़ के पास बैठकर, मगन होकर खेल रही थी -छोटे-छोटे बर्तन, मेज़-कुर्सी तथा कई और सारी चीज़ें उसके आसपास बिखरी हुई थीं ! कुल मिलाकर मानों छोटी -सी गृहस्थी जमी हुई थी ! नन्हीं पिंकी वहीं बैठे-बैठे अपनी माँ की चुन्नी लपेटे, गुड्डे-गुड़िया से बिल्कुल अपनी मम्मी की तरह बातें किये जा रही थी ! इतने में सुमन वहाँ से ग़ुज़री, पिंकी को इतने प्यारे ढंग से खेलते-बतियाते देखकर वह वहीं ठिठक गई और छुप कर उसे खेलते हुए देखने लगी ! अपने जैसे बातें करते देख सुमन को अपनी बिटिया पर बहुत लाड़ आ रहा था !
पिंकी छोटे-छोटे बर्तनों में खाना बनाने का खेल खेल रही थी और बोले जा रही थी –‘‘रवि! आइए! आपका पराठा बन गया ! ये लीजिए!”
सुमन की हँसी फूट पड़ी ! रवि उसके पति अर्थात् पिंकी के पापा का नाम था !
“अरे! ये तो ठंडा हो गया सुमन! इतना ठंडा नहीं खा सकता मैं!”
“कोई बात नहीं! आप छोड़ दो उसे, मैं खा लूँगी ! मैं आपके लिए और ला रही हूँ गर्म-गर्म ! ये लीजिए !”
कहते हुए पिंकी ने अपने गुड्डे के सामने से एक प्लेट हटाकर दूसरी प्लेट रख दी ! फिर पलटकर अपनी गुड़िया से बोली- “चलो बेटा ! आ जाओ जल्दी से ! नाश्ता रेडी है ! ये लो, पहले ये फ्रूट्स खाओ ! क्या? मन नहीं है ! नहीं बेटा ! खाना तो पड़ेगा ही ! नहीं तो आप बड़े कैसे होगे? हेल्दी कैसे होगे ? चलो! चलो! जल्दी से खा लो! गुड गर्ल !”
फिर काँटे से झूठ-मूठ के फल गुड़िया को खिलाने लगी ! फिर उसने छोटी सी कटोरी से उसको कुछ खिलाया, उसके बाद प्लेट से ! फिर अपने सिर पर हाथ रखते हुए बोली-“ओफ़्फ़ोह ! मैं तो थक गई! अरे! ये क्या ? बेटा आपने तो इतना सब छोड़ दिया ! फ़िनिश नहीं किया ! वैरी बैड! खाना वेस्ट करना गन्दी बात होती है न ! अच्छा लाओ... मैं ही खा लेती हूँ !”
कहते हुए पिंकी ने सभी प्लेटों-कटोरियों से कुछ समेटने का अभिनय किया और झूठमूठ की समेटी हुई सामग्री अपने मुँह में डाल ली !
सुमन के चेहरे पर हँसी की जगह अब सोच की लकीरें उभर आईं थीं !