Saturday, 12 January 2013

**~ आसाँ नहीं ये ज़िंदगी... ~**



दिखाई तो देती है, पर आसाँ नहीं ये ज़िंदगी,
हर मुस्कान में छिपे आँसू तमाम मिले !

थामा था हाथ ये सोचकर , मिलेगी मंज़िल,
छाँव में संदल की छालों के मुक़ाम मिले ! 

हर इम्तिहाँ में ख़ौफ़, था हौसला भी संग,
ईनाम सारे मगर तंज़ से लहूलुहान मिले ! 

इस ज़िंदगी पर अब तो, है मौत भी शरमाई,
अपनों की मेहर में छिपे हर दिन ज़हर तमाम मिले...!

23 comments:

  1. ज़िन्दगी की झरबेरियों से रिसती चुभन हर शैर में मौजूद है .उम्दा गजल और बिम्ब .रूपकात्मक खूब सूरती लिए है हर शैर ,एक अलग रूपक लिए हैं .

    थामा था हाथ ये सोचकर , मिलेगी मंज़िल,
    छाँव में संदल की छालों के मुक़ाम मिले !

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  2. थामा था हाथ ये सोचकर,
    मिलेगी मंज़िल,
    पर क्या.....
    अपनों की मेहर में छिपे
    हर दिन
    ज़हर तमाम मिले...!
    एक मार्मिक रचना

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  3. सुन्दर प्रस्तुति |
    बढ़िया विषय |
    शुभकामनायें आदरेया ||

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  4. जीवन तो हर रंग लिए है सुंदर पंक्तियाँ

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  5. सच्ची अभिव्यक्ति. सारे शेर अच्छे लगे.

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  6. ज़िन्दगी कभी आसान नहीं थी,अब मौत भी कष्टदायक हो गई है

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  7. जीवन इतना आसान तभी तो नहीं होता ...
    भावमय ...

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  8. जिंदगी को आसान बनाने की जद्दोजहद में ही जिंदगी जाती है |
    और जिंदगी फिर भी कभी आसान नहीं हो पाती |

    सादर

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  9. ज़िंदगी की हकीक़त बयान की है आपने!

    --
    थर्टीन रेज़ोल्युशंस!!!

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  10. दिखाई तो देती है, पर आसाँ नहीं ये ज़िंदगी,
    हर मुस्कान में छिपे आँसू तमाम मिले !

    जिंदगी ऐसी ही है और इसी का नाम जिंदगी है.

    शुभकामनायें पोंगल, मकर संक्रांति और माघ बिहू की.

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  11. जीवन की अनसुलझी गुथियों को बखूबी बयान किया आपने, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  12. थामा था हाथ ये सोचकर , मिलेगी मंज़िल,
    छाँव में संदल की छालों के मुक़ाम मिले !

    जीवन के रंगों को समेटती खुबसूरत रचना

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  13. इस ज़िंदगी पर अब तो, है मौत भी शरमाई,
    अपनों की मेहर में छिपे हर दिन ज़हर तमाम मिले...!

    ...बहुत खूब! बहुत मर्मस्पर्शी रचना...

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  14. दिखाई तो देती है, पर आसाँ नहीं ये ज़िंदगी,
    हर मुस्कान में छिपे आँसू तमाम मिले !
    जिन्‍दी कैसी है पहेली ....

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  15. दिखाई तो देती है, पर आसाँ नहीं ये ज़िंदगी,
    हर मुस्कान में छिपे आँसू तमाम मिले !

    थामा था हाथ ये सोचकर , मिलेगी मंज़िल,
    छाँव में संदल की छालों के मुक़ाम मिले !


    बेह्तरीन अभिव्यक्ति .बहुत सुन्दर.बधाई .मज़ा आ गया!

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  16. हर इम्तिहाँ में ख़ौफ़, था हौसला भी संग,
    ईनाम सारे मगर तंज़ से लहूलुहान मिले !

    थोड़ी सी कड़वी मगर सुन्दर ...
    भावों का सुन्दर संयोजन ...
    साभार !

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  17. ऐसी इच है ये ज़िन्दगी मौसम के मिजाज़ सी .कब किस करवट बैठे कोई निश्चय नहीं .आभार आपकी सद्य टिप्पणियों का .

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  18. Bahut sundr Rachna...
    zindgi aasan kaha hoti hai ..
    http://ehsaasmere.blogspot.in/

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  19. आभार आपकी सद्य टिप्पणियों का .

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  20. थामा था हाथ ये सोचकर , मिलेगी मंज़िल,
    छाँव में संदल की छालों के मुक़ाम मिले !

    बहुत गहरी बात कह दी....
    सुन्दर रचना...
    सस्नेह
    अनु

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  21. मेरी रचना पसंद करने व प्रोत्साहन देने का आप सभी का हार्दिक धन्यवाद !!!
    ~सादर!!!

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