जनवरी की सर्दी...कड़ाके की ठंड, पारा लगातार गिरता हुआ ..
मॉल से मैं और मेरे पति गाड़ी में निकले, रात के दस बाज रहे थे !
गाड़ी के शीशे चढ़े हुए, हीटर ऑन...!
चिंता हो रही थी अपने चौदह वर्षीय बेटे की ...
बहुत ज़िद्दी है, स्वेटर नहीं पहनता, इनर नहीं पहनता, कैप नहीं पहनता...
और अक्सर ही मोज़े भी नहीं पहनता...
बस एक स्वेटशर्ट पहनी और हो गया...!
अभी के अभी जा कर उसे ज़बरदस्ती सब पहनाना पड़ेगा...
नहीं तो, कहीं बीमार पड़ गया..तब ?
यही सब दिमाग़ में घूम रहा था...कि अचानक झटके से गाड़ी धीमी हुई,
कोई सामने आ गया था...कोहरा था इसलिए ज़रा देर में दिखा...
एक नौ-दस साल का लड़का..
अपने दोनों हाथों में रंग-बिरंगे गुब्बारे लिए हुए...
हर गाड़ी के आगे आने की कोशिश कर रहा था...
बदन पर आधी बाँह की मैली कुचैली शर्ट,
उसके अंदर से झाँकती हुई बनियान, और नेकर...बस!
"ले लो ना आंटी....बच्चों के लिए गुब्बारे ले जाओ ना! खुश हो जाएँगे!"
कोई गाड़ी रुक नहीं रही थी, किसी के पास वक़्त भी नहीं था !
मुझे भी वो बस दूर से दौड़ता हुआ ही नज़र आया था ...
इतने सारे गुब्बारे एक साथ देखकर समझ आया, ये बच्चा गुब्बारे बेच रहा है ...
जब तक मुझे कुछ सुध आती ... उसके शब्द मेरे कानों पर असर पाते ...
मेरी गाडी भी आगे निकल गयी थी ...
और वो तब तक, मेरे पीछे निकलने वाली दूसरी गाड़ी की और दौड़ पड़ा था ... !
मैनें अपने पति से कहा ... इतनी ठण्ड में ये बेचारा बच्चा ?
इसे क्या ठण्ड नहीं लग रही ...? इसने तो ठीक से कपडे भी नहीं पहने ... स्वेटर तो दूर की बात !
जितनी देर में गाड़ी रोकी जा सकती ...उतनी देर में तो वो दूर निकल चूका था ...
काश! मै खरीद पाती उसके गुब्बारे , या ऐसे ही कुछ उसे दे पाती ...!
मगर अब वापस लौटना मुश्किल था ...!
सारे रास्ते मेरा मन दुखी रहा ...
क्यों नहीं मैनें जल्दी देखा ?
क्यों नहीं मैं वापस जा पायी ...?
क्यों नहीं मैं उस बच्चे की मदद कर पायी ...?
क्या मज़बूरी रही होगी उसकी ... जो
इतनी रात में, कडाके की ठण्ड में,
उसे ये काम करना पड़ा ?
कहीं कोई ज़बरदस्ती तो उससे ये सब नहीं करा रहा ....?
मगर मैं सिर्फ मन मसोस कर रह गयी .... !
अक्सर हम कुछ करना चाहते हुए भी नहीं कर पाते..
और बाद में पछताते रहते हैं ....!
कुछ बातों में सोचना नहीं चाहिए ... तुरंत करना चाहिए ..
क्योंकि .....कुछ रास्तों में वापस लौटने की गुंजाइश नहीं होती ......
मगर, इस रास्ते पर मैं फिर वापस जाऊँगी !
मैं फिर उसी मॉल में जाऊँगी
और इस बार उस लड़के के लिए कुछ कपड़े भी लेकर जाऊँगी,
उससे उसके सारे गुब्बारे खरीद लूँगी !
और कोशिश करूँगी कि उसके बारे में कुछ जान सकूँ...
'क्या ये काम करना उसकी मजबूरी है ?'
'या कोई उससे ज़बरदस्ती करा रहा है ? '
लेकिन पता नहीं, कुछ जवाब मिलेगा भी या नहीं...
क्योंकि ऐसे सवालों के जवाब अक्सर खामोश ही रह जाते हैं.......
सही कहा नीतू ...ऐसे सवालों के उत्तर अक्सर नहीं मिल पाते......सोच में डाल गयी तुम्हारी पोस्ट .
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteवरिष्ठ गणतन्त्रदिवस की अग्रिम शुभकामनाएँ और नेता जी सुभाष को नमन!
मार्मिक प्रसंग कसावदार ताना बाना घटना का
ReplyDelete.शुक्रिया
आपकी टिपण्णी का .इस सवाल का कोई सीधा ज़वाब नहीं है .बाल श्रम हमारे यहाँ बड़ा मुद्दा है सबसे ज्यादा बाल श्रमिक हैं भारत में
..खतरनाक
जगहों पर कार्यरत हैं .खासकर असंगठित क्षेत्र में .होटलों/ढाबों में/घरों में नौकर के बतौर ,पटाखे की फेक्टरियों में ,माचिस ,कालीन
बनाने के कारखानों में बीडी उद्योग में कहाँ नहीं है ये नन्ने हाथ यहाँ तक की सफाई कर्मचारी बन कचरा बीनते हैं . पौ फटते ही ,गए
रात तब जब बाज़ार बंद हो जाता है .खाली डिब्बे बोतलें ,गत्ते ही इनकी दौलत बन जाते हैं .भारतीय परिवास केंद्र और इंडिया इंटरनेशनल
सेंटर के चौराहों पर इन्हें देखा है जहां इनकी भलाई के लिए विमर्श चलता है .बालअपराधी को संरक्षण है .इन्हें नहीं है .बढ़िया पोस्ट .माँ
तो फिर माँ होती है .
किसी एक को ख़ुशी देकर मातृत्व का कोई कोना तृप्त होता है .... इस बार गुब्बारे ज़रूर लीजियेगा
ReplyDeleteशुभकामनायें आदरेया |
ReplyDeleteबड़ा मार्मिक दृश्य है, सर्दी का एहसास |
धुंध गोमती तट विषद, स्वेटर भी नहिं पास |
स्वेटर भी नहिं पास, निराश तब बढ़ जाती |
जब उसके बैलून, नहीं उसके ले पाती |
पर बढ़िया संकल्प, जाएँ जब उधर दुबारा |
कपडे लत्ते साथ, खरीदो कुल गुब्बारा ||
मेरी बड़ी बेटी लखनऊ TCS में ही है-
और सर्दी का हाल बताती रहती है-
सामाजिक दायित्व के भाव से ओत प्रोत रचना ... बेहद मर्म स्पर्शी!
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील पोस्ट ... आपका यही विचार प्रभावित कर गया कि इस बार फिर जाऊँगी मॉल और उस बच्चे के लिए भी कुछ करने के लिए मन लालायित है ... सुंदर ॥
ReplyDeleteआपका हार्दिक धन्यवाद व आभार सर !
ReplyDelete~सादर!!!
ऐसे हजारों लाखों बच्चे सडक पर गुब्बारे बेचते नजर आते हैं, हम हर एक के पास तो नही पहुंच सकते पर किसी एक तो पहुंच ही सकते हैं, बहुत संवेदनशील.
ReplyDeleteरामराम.
सुन्दर सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति करें अभिनन्दन आगे बढ़कर जब वह समक्ष उपस्थित हो .
ReplyDeleteआप भी जाने कई ब्लोगर्स भी फंस सकते हैं मानहानि में .......
बहुत संवेदनशील.......
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी...... संवेदनाएं हम सबको जगानी होंगीं
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की चर्चा 24- 01- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें ।
आपका हार्दिक आभार सर!
Delete~सादर!!!
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 24-01-2013 को यहाँ भी है
....
बंद करके मैंने जुगनुओं को .... वो सीख चुकी है जीना ..... आज की हलचल में..... संगीता स्वरूप
.. ....संगीता स्वरूप
. .
हार्दिक आभार दीदी!
Delete~सादर!!!
मनोभावों का सुन्दर चित्रण!
ReplyDeleteकाश ऐसी भावना हम सभी में आ जाए .. तो इन बच्चों को भी स्नेह की ऊष्मा नसीब हो जाएगी।
ReplyDeleteमार्मिक चिंतन।
संवेंदनाओं को झकझोरता वृतांत !!
ReplyDelete1**कुछ बातों में सोचना नहीं चाहिए ... तुरंत करना चाहिए ..
ReplyDeleteक्योंकि .....कुछ रास्तों में वापस लौटने की गुंजाइश नहीं होती
2**लेकिन पता नहीं, कुछ जवाब मिलेगा भी या नहीं...
क्योंकि ऐसे सवालों के जवाब अक्सर खामोश ही रह जाते हैं.......
निःशब्द करती भावनाएं
ReplyDeleteशुक्रिया आपकी टिपण्णी का .
ReplyDeleteभारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता सुषमा स्वराज ने गुरुवार को कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री सुशीलकुमार शिंदे को हिंदू आतंकवाद पर उनकी टिप्पणी के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाना चाहिए क्योंकि इससे राष्ट्रीय हितों को चोट पहुंची है। सुषमा ने शिंदे को अपनी सीमाएं न लांघने की हिदायत देते हुए कहा कि कांग्रेस को लाभ पहुंचाने या भाजपा को नुकसान पहुंचाने की हद तक राजनीति की जा सकती है लेकिन इसे उस स्तर पर नहीं ले जाया जा सकता, जहां इससे राष्ट्रीय हित प्रभावित हों।
लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा यहां जंतर मंतर पर एक विरोध रैली को सम्बोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी चाहती है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी इस मुद्दे पर माफी मांगें। उन्होंने कहा, "सोनिया गांधी को देश से माफी मांगनी चाहिए और शिंदे को बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए।" सुषमा ने शिंदे के सम्बंध में कहा, "आपने ऐसे समय में राष्ट्रीय हितों को चोट पहुंचाई है, जब पाकिस्तान की ओर से हमारे सैनिकों के सिर कलम किए गए हैं। आप पाकिस्तान पर हमला नहीं कर रहे हैं लेकिन मुख्य विपक्षी दल पर हमला कर रहे हैं।"
उन्होंने कहा, "आप दुनिया से क्या कहना चाहते हैं? क्या आप कहना चाहते हैं कि पाकिस्तान में आतंकवादी शिविर हो सकते हैं लेकिन यहां मुख्य विपक्षी दल आतंकवादी शिविर चला रहा है! क्या आप कहना चाहते हैं कि आतंकवादी संसद में बैठे हैं? लोकसभा में विपक्ष की नेता एक आतंकवादी संगठन चला रही हैं?" गौरतलब है कि शिंदे ने जयपुर में कांग्रेस के चिंतन शिविर के दौरान रविवार को कहा था, "भाजपा हो या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) उनके प्रशिक्षण शिविर हिंदू आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं।" शिंदे की इस टिप्पणी के खिलाफ भाजपा गुरुवार को देशव्यापी विरोध-प्रदर्शन कर रही है।
यह तो शुरुआत है प्रदर्शन ज़ारी रहेंगे .इस देश का स्वाभिमान मरा नहीं है अंधा राजा ,गूंगी रानी ,दिल्ली की अब यही कहानी .बदली जायेगी ये कहानी .
मार्मिक
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी कविता है, आपने जो देखा महसूस किया लिखा। मेरी शुभकामनाएं हैं आपका लेखन सफल हो।
ReplyDeleteआप सभी गुणी जनों का हार्दिक आभार !:)
ReplyDeleteजब मैं उस बच्चे से मिलकर आऊँगी तब फिर ज़रूर बताऊँगी कि क्या हुआ...!
आप सभी के प्रोत्साहन का तहे दिल से धन्यवाद !:)
~सादर!!!
शुक्रिया भाई साहब आपकी टिपण्णी का .
ReplyDeleteशुक्रिया मोहतरमा आपकी टिपण्णी का .आपने गलती का एहसास करवाया .
ReplyDeleteईद मुबारक .ईद -उल -मिलाद हो या दिवाली मिठाई के डिब्बे कर बार बदल जाते हैं ऐसा ही टिप्पणियों के साथ कई बार हो आजाता है वजह होती है ज्यादा लेखन और टिपियाना .आभार आपका .
ReplyDeleteसमझते हैं सर !:-)
Deleteआपका हार्दिक आभार !
~सादर!!!
आप तो गुब्बारे वाले बालक की करुना मय माँ समान हो .स्नेह पगी .
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ReplyDeleteईद मुबारक .ईद -उल -मिलाद हो या दिवाली मिठाई के डिब्बे कई बार बदल जाते हैं ऐसा ही टिप्पणियों के साथ कई बार हो आजाता है वजह होती है ज्यादा लेखन और टिपियाना .आभार आपका .
आप तो गुब्बारे वाले बालक की करुना मय माँ समान हो .स्नेह पगी .
बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...
ReplyDeleteदिल को छूने वाली रचना
ReplyDeleteमेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
चेतन भगत और भैया जी
बहुत ही मार्मिक,भावनाओं को उकेरती सुन्दर रचना।
ReplyDeleteकाश सब लोग ऐसा ही सोचें ......मेले ब्लॉग पर भी आना
ReplyDeletehttp://mishraaradhya.blogspot.in
बहुत सुंदरता से किया गया , बेहद मार्मिक वर्णन |
ReplyDeleteइसी विषय पर मुझे एक सज्जन ने अपनी लिखी हुई कुछ पंक्तियाँ सुनायीं थी -
"बच्चा जो जिद करता है तो दो गुब्बारे ले लो न ,
वरना वो भी रो देगा और मेरा खाना जाएगा |"
सादर
कुछ बातों में सोचना नहीं चाहिए ... तुरंत करना चाहिए ..
ReplyDeleteक्योंकि .....कुछ रास्तों में वापस लौटने की गुंजाइश नहीं होती ......
Bashaq
आप सभी के प्रोत्साहन व शुभकामनाओं का तहे दिल से आभार!:-) मैनें 25 जनवरी 2013 को फिर से मॉल जाकर अपनी ये दिली इच्छा पूरी कर ली ... दो बच्चों से उनके सारे गुब्बारे खरीद लिए और उन्हें कुछ कपडे व स्वेटर दिए !
ReplyDelete~सादर!!!
https://jeddah-moving.com
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