सँवरने की कोशिश में है फिर से..रिश्ता अपना,
धुन्द्द छँटने के बाद निखरता हो...जैसे अक़्स-ए-आईना !
आओ दे दें... आँखों को एक नयी नज़र..
और देखें फिर से....ख्वाब कोई पुराना..!
देकर प्यारे जज़्बातों के छींटे... खिला दें
वो सारे फूल..जो मुरझाए...
ज़िंदगी की किताब के कुछ भूले बिसरे पन्नों में..
और रह गये वहीं...दबे दबे...!
बुनी जतन से ज़ो ... इतने बरसों में हमने...
और टाँके जिसमें.... गुल बूटे अपने एहसासों के...,
ओढ वही... प्यार, क़रार , समझौते की चादर...
आओ.. तय कर लें... अब बाकी का सफ़र....!
झाड़ दें माथे से... वो सारे बल, सारे तेवर...
जिनमें उलझ-उलझ गिरे हम... न जाने कितनी बार..!
संभाल ले.. समेट लें.. सहेज लें.... खुद को...
और संवारें आने वाला कल.....
कि... नहीं मिलता ऐसा मौका किसी को
एक ही ज़िंदगी में बार बार.....!!!
झाड़ दें माथे से... वो सारे बल, सारे तेवर...
ReplyDeleteजिनमें उलझ-उलझ गिरे हम... न जाने कितनी बार..!
संभाल ले.. समेट लें.. सहेज लें.... खुद को...
और संवारें आने वाला कल.....
कि... नहीं मिलता ऐसा मौका किसी को
एक ही ज़िंदगी में बार बार.....!!!
गजब की समझदारी का अंदाज़
हार्दिक धन्यवाद सर !:-)
Deleteप्रोत्साहन देने का हार्दिक आभार !!!
~सादर !!!
संभाल ले.. समेट लें.. सहेज लें.... खुद को...
ReplyDeleteऔर संवारें आने वाला कल.....
कि... नहीं मिलता ऐसा मौका किसी को
एक ही ज़िंदगी में बार बार.....!!!
सच ही है मौके हमेशा नहीं मिलते और जब ऐसा अवसर आये उसे गवाना बड़ी गलती होगी. सुंदर प्रस्तुति.
हार्दिक धन्यवाद... रचना जी !:)
Deleteआपका ब्लॉग अच्छा लगा उसे ज्वाइन कर रही हूँ.
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत स्वागत है... रचना जी ! :-)
Deleteझाड दें जो माथे से सारे बल ...तो ज़िंदगी यूं ही आसान हो जाएगी ... बहुत खूबसूरत रचना ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद दीदी!:)
Delete~सादर !!!
और संवारें आने वाला कल.....
ReplyDeleteकि... नहीं मिलता ऐसा मौका किसी को
एक ही ज़िंदगी में बार बार.....!!!
अतीत को भूल जाओ ...मौका जो आने वाला है उसे चुकने ना दो। सही तो है .. गजब
मेरी नई कविता आपके इंतज़ार में है: नम मौसम, भीगी जमीं ..
शुक्रिया... Rohitas ji !
Deleteआपकी कविता पढ़कर ही आएँ हैं हम !:)
~God Bless!!!
आपकी रचना बहुत अच्छी है और ब्लॉग भी...
ReplyDeleteफेसबुक पर मैं फ्रेंड रिक्वेस्ट नहीं भेज पाता.. फ्रेंड नहीं बनेंगे तबतक मेसेज का जवाब नहीं दे पाऊंगा..
- पंकज त्रिवेदी (नव्या)
बहुत खूबसूरत रचना ....
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ReplyDeleteझाड दे माथे से वो सारे बल ...
कैसी शिकायतें !
बहुत खूब !
झाड़ दें माथे से... वो सारे बल, सारे तेवर...
ReplyDeleteजिनमें उलझ-उलझ गिरे हम... न जाने कितनी बार..!
संभाल ले.. समेट लें.. सहेज लें.... खुद को...
और संवारें आने वाला कल.....
कि... नहीं मिलता ऐसा मौका किसी को
एक ही ज़िंदगी में बार बार.....!!!
.....बहुत अच्छा लिखा है नीतू
bahut khoob...
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