Saturday, 29 December 2012

**~और नहीं... बस ! और नहीं.....~**


दामिनी चली गयी ! एक अजीब सा गूँजता हुआ सन्नाटा छोड़ गयी...! दिल कितना दुखी है... ये किसी को बताने की ज़रूरत नहीं...! उसकी हिम्मत और बहादुरी को मेरा शत-शत नमन ! ईश्वर उसकी आत्मा को शांति प्रदान करे व उसके माता-पिता व प्रियजनों को ये असीम दुख सहने की शक्ति दे !
   आज न कुछ कहने की ज़रूरत है... न सुनने की ! बस.. एक इंसान और  नारी होने के नाते कई दिनों से एक बग़ावत उठ रही है मन में...~ और नहीं... बस ! और नहीं.....



" हर फ़ैसले पर मेरे... मोहर की थी ताक़ीद...
जीने की आरज़ू थी... क़लम तोड़ वो गया........."

Thursday, 27 December 2012

**~सर्द लहर .. ढाये कैसा क़हर ..~** "ताँका "


सर्द मौसम,
ठिठुरते हैं जिस्म,
देखो ईश्वर!
कंपकपाते हाथ...
ढूँढे तेरा निशान..! 

सर्द लहर,
ढाये कैसा कहर...
बेबस हुआ
ग़रीब का आँचल...,
तपे, ठंडी आस में...!

सर्दी की धूप,
तेरी यादों के जैसी...
गुनगुनाती....
रोम-रोम को मेरे,
कर देती झंकृत !

छाया कोहरा,
सर्द आहें भरते,
मानव सभी! 
खुदा तेरी आस के,
जलते अलाव हैं...!

सर्दी क़हर !
रात बहुत भारी !
दिन भी रोया !
गरीब जो सोया, तो 
खुली ही रहीं आँखें ! 

Wednesday, 19 December 2012

~** ऐसे जघन्य अपराधियों को ऐसे जिंदा रक्खो, कि वो मौत की भीख मांगें और वो उन्हें नसीब न होने दी जाये **~


मन बहुत खिन्न है, दुखी है ! अक्सर होता है... मगर आज साझा कर हूँ वो सवाल जो समाचारों के ज़रिए मेरे ज़हन में भारी उथल-पुथल मचा जाता है ! ये किसी ख़ास पर आरोप नहीं है ! बस, अन्याय से क्षुब्ध होकर एक प्रतिक्रिया है, एक इल्तिजा है...~
 
नारी महान है, धैर्यवान है ! नारी सहनशक्ति की मूर्ति है ! नारी सौंदर्य की देवी है !
आज नारी पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलकर चल रही है, वो पुरुष से किसी तरह से कम नहीं है !
कब तक बेवक़ूफ़ बनती रहेंगीं ऐसी बातों से नारियाँ ? हाँ! माना ! क़ाबिलियत में नारी किसी तरह से भी पुरुष से कम नहीं है, बल्कि कई जगहों पर उससे आगे ही है मगर... कहीं न कहीं.. शारीरिक रूप से वो कमज़ोर पड़ ही जाती है !
     ईश्वर के जिस वरदान ने नारी को महान बनाया है, वही उसकी कमज़ोरी का सबसे बड़ा कारण बन गया ! जिस कोख में वो जीवन का सृजन करती है, उसी के द्वारा उसे अपमानित और प्रताड़ित किया जाता है ! और ये कोई आज की बात नहीं है, सदियों से ऐसा ही होता आ रहा है ! कुछ हैवान जो इंसान के रूप में हमारे समाज में घूमते हैं, पल भर में ही एक जीती जागती नारी को ज़िंदा लाश में बदल देते हैं... और हम इंसान कुछ नहीं कर पाते...!
  न जाने कितनी बच्चियाँ, नाबालिग लड़कियां और विवाहित स्त्रियाँ, यहाँ तक कि नन्स (Nuns) भी .... इन हैवानों के घिनौने ज़ुल्म का शिकार बन चुकी हैं ! बाहर तो बाहर , घर तक में महफूज़ नहीं है आज नारी ! ऐसे शारीरिक अत्याचार के बाद, कहीं वो गुमनामी के अंधेरों में मुंह छिपाती फिरती है, या फिर कहीं समाज के उलटे-सीधे ताने सुन-सुन कर तंग आकर आत्महत्या तक कर बैठती है ! फिर कौन सी बराबरी? कहाँ की बराबरी? एक केस सामने आ गया तो इतना हो-हल्ला हो गया ! जो घरों की चारदीवारी में घुट-घुट कर मर गया... उसका क्या ?
   अभी 16 दिसंबर 2012 में , राजधानी के केस में भी, अगर वो लड़का न होता या कुछ नहीं बताता या भगवान न करे उसे भी मार दिया गया होता.... फिर ? सबकुछ यूँ ही चुपचाप रात के सन्नाटे में ख़ामोशी में दब गया होता ....! एक और नारी कहीं दम तोड़ रही होती....! आखिर वो महान है, धैर्यवान है ना ! सब सहन कर लेती है !
  भगवान  ने भी पक्षपात किया ! अगर नारी को सौंदर्य दिया, सृजन की शक्ति दी, सहनशक्ति दी ... तो पुरुष को कहीं तो ऐसा दिल दिया होता, ऐसी नज़र दी होती ... कि वो उसका सम्मान करता, बिना नारी की सहमति  से, ज़बरदस्ती, ऐसे कुकर्म करने लायक ना होता ! 
  अब भगवान से तो इस समय बहस करने जा नहीं सकते ! इसलिए यहीं कुछ उपाय तो सोचना चाहिए ! आज फिर एक नारी ज़िन्दगी और मौत के बीच झूल रही है ! उसकी इस हालत के ज़िम्मेदार जो भी दरिन्दे हैं.... उन्हें मौत की सजा देना काफी नहीं है ! उन्हें तो ऐसी हालत में लाकर खड़ा करना चाहिए  जहाँ वो, न ही जी पायें... न ही मर पायें.... ! वो इस हालत में जिंदा रहें की मौत की भीख मांगें .... और मौत उन्हें नसीब न होनी दी जाए।
एक बार अगर किसी को ऐसी सजा मिल जाए.... फिर भविष्य में कोई भी इन्सान रूपी हैवान ऐसा कुकर्म करने के पहले कुछ सोचेगा तो सही !!!

Monday, 17 December 2012

**~ अपना रिश्ता नये सिरे से ~**



सँवरने की कोशिश में है फिर से..रिश्ता अपना,
धुन्द्द छँटने के बाद निखरता हो...जैसे अक़्स-ए-आईना !

आओ दे दें... आँखों को एक नयी नज़र..
और देखें फिर से....ख्वाब कोई पुराना..!
देकर प्यारे जज़्बातों के छींटे... खिला दें
वो सारे फूल..जो मुरझाए...
ज़िंदगी की किताब के कुछ भूले बिसरे पन्नों में..
और रह गये वहीं...दबे दबे...!

बुनी जतन से ज़ो ... इतने बरसों में हमने...
और टाँके जिसमें.... गुल बूटे अपने एहसासों के...,
ओढ वही... प्यार,  क़रार , समझौते की चादर...
आओ.. तय कर लें... अब बाकी का सफ़र....!

झाड़ दें माथे से... वो सारे बल, सारे तेवर...
जिनमें उलझ-उलझ गिरे हम... न जाने कितनी बार..!
संभाल ले.. समेट लें.. सहेज लें.... खुद को...
और संवारें आने वाला कल.....
कि... नहीं मिलता ऐसा मौका किसी को
एक ही ज़िंदगी में बार बार.....!!!

Saturday, 15 December 2012

~~** ४ दिसम्बर को डॉ सत्यभूषण वर्मा जी के जन्मदिन पर 'हाईकु दिवस' के विशेष आयोजन में सम्मिलित मेरे लिखे हाईकु **~~


http://hindihaiku.wordpress.com/2012/12/04/%E0%A4%B6%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A6-%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%BF-2/


४ दिसम्बर , डॉ सत्यभूषण वर्मा जी के जन्मदिन पर 'हाईकु दिवस' के विशेष आयोजन के लिए डॉ हरदीप संधु जी व श्री रामेश्वर  कम्बोज  'हिमांशु'जी भाईसाहब का हार्दिक आभार व धन्यवाद और बहुत बहुत बधाई ! इससे जुड़े सभी रचनाकारों को मेरा नमन व हार्दिक शुभकामनाएँ !



इस आयोजन में सम्मिलित, मेरे लिखे हाईकु ~




माँ तेरा प्यार
जीवन की धूप में..
दे छाँव मुझे !
   
दुख की ओस,
पाये आस किरण
चमके सुख !

है अभिमान
पतन इंसान का
रहो विनम्र !

नारी है नदी,
समा लेती, दिखाती
सबका अक़्स !
  
रिश्तों के पेड़
खिलेंगें, महकेंगे
सींचो नेह से !





Saturday, 1 December 2012

**~ काश....! ~**



वो भी दिन थे...
न तुमने कुछ कहा, न ही मैनें... 
मगर दोनों की खामोशी का रूप कितना जुदा था...~
तुमने कभी कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं समझी .....
और मेरी आवाज़ गूँजती रही ...
मेरी झुकी पलकों के भीतर...
काश! सुन ली होती तुमने...
तो आज....
अपने बीच इस तरह चीखती ना होती....
ये खामोशी...........!



काश! ज़िंदगी ऐसी एक किताब होती......
कि जिल्द बदलने से सूरत-ए-हाल बदल जाते...
मायूस भरभराते पन्नों को कुछ सहारा मिलता....    
धुंधले होते अश्आर भी चमक से जाते....
तो...बदल लेते हम भी...~
शिक़वों को फाड़ देते...
फ़िक्रें ओढ़ लेते....
ज़िंदगी को भी....
कुछ साँसें और मिल जातीं..........!