Wednesday, 4 July 2012

* तुम क़र्ज़ मेरा लौटा देना...... *


गम की जलती धूप में...
छाया में तुम्हारी.. आना चाहूँ...
'तुम ...हल्के  से  मुस्का  देना..!'

उलझी उलझी राहों में...
मैं रस्ता खोज नहीं पाऊँ...
'तुम ...हल्के  से  मुस्का  देना..!'

जीवन की बोझिल सिलवट में...
लड़खड़ा कहीं मैं गिर जाऊँ...और फिर कभी न उठ पाऊँ....,
'तुम ...हल्के से  मुस्का  देना..!'

मंज़िल को पाने वाले अक्सर रस्ते भूला करते हैं...,
मैं रस्ते में ही गुम जाऊँ...और लौट के फिर न आ पाऊँ...
'तुम ... हल्के  से  मुस्का  देना...!'

'मुस्कान'  तुम्हारी  'क़ातिल'  है..,
जिस दिन  'मेरा'  ये  'क़त्ल'  करे...,
मैं इसमें  'घुट'  कर  'मर'  जाऊँ...
'इल्तिजा'  है  तुमसे.....

'जाते जाते' .....

तुम  'क़र्ज़'  मेरा  'लौटा'  देना...~~~
'आँसू'   'अपने'   'वापस'  लेकर..,
'मुस्कान'  'मेरी'  'लौटा'  देना...!
'मुझे'  'चैन'  से  'सो'  लेने देना....
'एक जीवन  जी  लेने देना' .....,
'मुझे चैन से सो लेने देना' .........

10 comments:

  1. बहुत ही मर्मस्पर्शी कविता


    सादर

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    1. धन्यवाद यशवंत जी!:-)
      आभार...!!!

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  2. वाह ... गेयता लिए ... मर्म कों छूती हुयी लाजवाब रचना ...

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद दिगम्बर जी!:-)
      आभार...!!!

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  3. बहुत अधिक मर्मस्पर्शी रचना..

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  4. बहुत बहुत धन्यवाद रीना मौर्या जी ! :-)

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  5. La'jawaab anita jii,
    hamesha ki tarha.stay blessd

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया....हरी जी !:-)

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  6. आपकी लेखनी प्रभावशाली है ....
    शुभकामनायें आपको !

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद...सतीश सक्सेना जी !
      साभार !

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