Monday, 25 November 2013

**~'दीपशिखा सी....~** -चोका

दीपशिखा सी
जलती हरदम
तेरे आँगन
कुछ यूँ सुलगती
मैं पिघलती
अंदर ही अंदर!
आँसू में डूबे  
अरमान जलते
और फैलता 
उदासी का उजाला
तन्हाई ओढ़े!
सुलगते जो ख़्वाब,
सभी हो जाते
ख़ामोश, धुआँ-धुआँ
भीगता वो आँगन!

17 comments:

  1. हृदय से निकले शब्द -
    साधुवाद-

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  2. तन्हाई ओढ़े!
    सुलगते जो ख़्वाब,
    सभी हो जाते
    ख़ामोश, धुआँ-धुआँ
    भीगता वो आँगन!------

    वाह !!!
    बहुत सुंदर रचना
    बधाई ------

    आग्रह है--
    आशाओं की डिभरी ----------

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  3. बहुत ही सुन्दर......
    अनु

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  4. सुलगते ख्वाबों की दिखती धुआं
    दिल की ये ज्वाला है,
    तन्हाई ओढ़े आज आया ये कैसा
    उदासी का उजाला है ???
    शुभकामनायें! खुश रहें!

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  5. अरमान जलते हैं जब ... उदासी छाने लगती है ...

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  6. बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति.

    रामराम.

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  7. आँसू में डूबे
    अरमान जलते
    और फैलता
    उदासी का उजाला
    तन्हाई ओढ़े!
    ....वाह! बहुत सुन्दर...

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  8. HEART TOUCHING LINES WITH GREAT EMOTIONS

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  9. सराहना तथा प्रोत्साहन के लिए आप सभी का दिल आभार...

    ~सादर

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  10. भीगता वो आँगन!......बूँद-बूँद में कितनी ताकत है और कितना सौंदर्य है .....ये आपकी कलम से पता चलता है....

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  11. सुलगते जो ख़्वाब,
    सभी हो जाते
    ख़ामोश, धुआँ-धुआँ
    भीगता वो आँगन!
    भावमय करते शब्‍दों का संगम ... यह अभिव्‍यक्ति

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  12. bahut khuubsurat bhaavabhivykti.

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  13. बहुत भावपूर्ण रचना ...बधाई !!

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  14. मन घुटता है
    धुंआ उठता है
    शब्द पिघल कर
    बह जाते हैं ।

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