Sunday, 22 March 2020

कुछ पल जो मिले -ये नेमत हैं!

भाग-दौड़भरी ज़िन्दगी में
सब पाने की जद्दोजहद में,
इंसां अपनों को भूल गया,
अपने क्या! ख़ुद को ही भूल गया,
प्रकृति को याद कहाँ रखता!
उसकी चाहत थी दीवानी,
क़ुदरत से की फिर मनमानी!
बरसों जीने का ख़्वाब लिए
लम्हों की क़ीमत भूल गया!
अब क़ुदरत ने भी ठानी है!
अपनी मर्ज़ी बतलानी है!

इंसां ने भी ये जान लिया -
दुनिया का क्या! वो फ़ानी है!
अपनों से प्रीत निभानी है!
कुछ पल जो मिले -
ये नेमत हैं!
पलकों पर इनको हम रख लें!
अपनों के नेह के साये में
आओ! इन लम्हों में जी लें!
जीवन में गर कुछ पाना है,
तो स्वयं के भीतर जाना है,
अपनों का साथ निभाना है,
अपनेआप को पाना है!

                   ~अनिता ललित
  


फ़ोटो: अनिता ललित

8 comments:

  1. अपनों का साथ निभाना है,
    अपनेआप को पाना है!
    बहुत ही बेहतरीन शब्द एवम भाव लिए शानदार सृजन !

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  2. इस बार तो कुदरत ने सब को भीतर झान्क्नें का मौका दिया है ...
    काश ये रफ़्तार कुछ रुके .. लाजवाब रचना ....

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  3. सुन्दर प्रस्तुति

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  4. बरसों जीने का ख़्वाब लिए
    लम्हों की क़ीमत भूल गया!

    हकीकत.....स्वस्थ रहें।

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  5. प्रशंसा एवं उत्साहवर्धन हेतु आप सभी का हार्दिक आभार!

    ~सादर
    अनिता ललित

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