उसके प्यार को मैने जाना नहीं,
मेरी हया को उसने पहचाना नहीं,
बस इसी उधेड़बुन में...
ज़िंदगी ने हमको समझा नहीं !
मेरी आँखों ने उससे बहुत कुछ कहना चाहा,
उसकी नज़रों ने मुझसे बहुत कुछ सुनना चाहा,
लेकिन...खामोशी की बेबस दीवार..
दोनो के दरमियाँ रही !
मैं पल-पल उसकी ओर खींचती गयी,
वो पल-पल मुझसे दूर होता गया..!
वो वीरने में ज़िंदगी ढूँढने निकल पड़ा,
मैं ज़िंदगी में खुद को तलाशती रही..!
बीत गया वक़्त...,
बदल गये सारे नज़ारे ज़ीस्त के,
वो मेरी नज़र-ए-इनायत को तरसता रहा,
मेरा दिल उसे बेवफा समझता रहा...!
बाद बरसों के अचानक...
जो टकराए ज़िंदगी के एक मोड़ पर ..,
था एक ही सवाल दोनों के ज़हन में....
कैसा था ये खेल...जो खेला खुदा ने.....
थे दोनों जब मासूम और बावफ़ा मोहब्बत में....
वो मेरी नज़र-ए-इनायत को तरसता रहा,
ReplyDeleteमेरा दिल उसे बेवफा समझता रहा...!
those lines surely have the wow factor.. Thanks
Sniel Shekhar ji....Thank u so much !:-)
Deleteआभार..
जीवन में कई रंग हैं....कहाँ कौन समझ पता है ....? गहन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteडॉ॰ मोनिका शर्मा जी...बहुत बहुत धन्यवाद!:-)
Deleteअजी छोड़िए,तक़दीर तो बहाना है
ReplyDeleteकुछ उनका कुछ अपना फसाना है
कुमार राधा रमण जी....आभार !:)
Deleteवो वीरने में ज़िंदगी ढूँढने निकल पड़ा,
ReplyDeleteमैं ज़िंदगी में खुद को तलाशती रही..!
achi rachna hai ..!!
Swati Shinh ji....बहुत बहुत धन्यवाद!:-)
Deleteबहुत बढ़िया मैम!
ReplyDeleteलगता है मेरा पिछला कमेन्ट स्पैम मे गया :(
सादर
यशवंत जी...बहुत बहुत धन्यवाद ! :-)
Deleteनहीं ! आपका कोई कॉमेंट स्पैम में नहीं है!
अनीता जी नमस्कार
ReplyDeleteआपके ब्लॉग 'बूंद-बूंद लम्हे' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किया जा रहा है। आज 1 अगस्त को 'तकदीर की दुश्मनी'शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है, इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जा कर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद,
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव
नीति श्रीवास्तव जी... आपका बहुत बहुत आभार !:-)
Delete~सादर !!!