Tuesday, 19 June 2012
* तहरीर के आँसू *
कभी देखे थे, पढ़े थे, महसूस किए थे....किसी की तहरीर के आँसू, जो उतर गये थे दिल में....! उसी से प्रेरित ये नज़्म....
कभी सावन की रिमझिम का, कभी फूलों की शबनम का,
सुना होगा ,पढ़ा होगा.. इन्हें तुमने छुआ होगा...!
मगर... क्या तुमने मेरे दोस्त...कहीं देखे, कभी समझे...
किसी तहरीर के आँसू....?
कि बख़्शी...दौर-ए-हिजरां ने.....मुझे दरियानुमाई यूँ...
कि मैं जो हर्फ बुनती हूँ.....वो सारे बैन करते हैं...!
मेरे संग ज़ब्त-ए-हसरत में.....मेरे अल्फ़ाज़ मरते हैं..!
सभी तारीफ करते हैं....मेरी तहरीर की....लेकिन...
नहीं कोई कभी सुनता.... उन हर्फ-ओ-लफ्ज़ की सिसकी..!
फलक पर ज़लज़ले ला दें....
उसी तासीर के आँसू.....मेरे लफ़्ज़ों में है शामिल...!
कभी देखो...तो मेरे दोस्त...मेरी तहरीर के आँसू....!!
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बहुत सुन्दर भावप्रणव रचना!
ReplyDeleteइसको साझा करने के लिए आभार!
शास्त्री Sir, इसे पसंद करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ! आपके Comment से बहुत हौसला मिलता है! बहुत आभार आपका!!! :-)
ReplyDeleteसाहिर की याद आ गई बरबस ...
ReplyDeleteशुक्रिया !:)
Deleteसादर !
bahut sundar..thanks a lot for sharing.
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