आओ...फिर वही पुराना गीत गुनगुनायें ...
तुम अपनी छत पर.. मैं अपनी छत पर ..
देखें दोनों.. एक दूजे को छिप कर !
पड़ जायें कहीं सामने तो...
निकल जायें फिर क़तरा कर...!
रस्ते पे टकटकी लगाए...करूँ मैं तुम्हारा इंतज़ार...
पाने को एक झलक तुम्हारी...होती रहूँ मैं बेक़रार..
मगर तुम्हारे आते ही...छिप जाऊँ मैं पर्दे की आड़...
और देखो मुझे, तुम.. पलट-पलट कर... बार-बार.. !
तरसती निगाहें छोड़ कर... सूने से उस मोड़ पर..,
गुम जाओ तुम... देकर मुझको..फिर उदासी का सिंगार..!
एक आस मेरी, एक तुम्हारी...
आँखों में लेकर ...सो जायें दोनों ..!
अगली शाम सजाने को....
फिर सपनों के दीप जलायें....!
आओ...फिर वही पुराना गीत गुनगुनायें...!!!
आपकी प्रेरणा-
ReplyDeleteआभार आदरेया ||
कृष्णा चोरी में मगन, बूझे नहीं बसन्त |
माखन के पीछे लगा, व्यापे नहिं रतिकन्त |
व्यापे नहिं रतिकन्त, अंत तक वही छलावा |
लुकना छिपना पंथ, शहर से मिला बुलावा |
किन्तु भरोसा एक, मिटाए वो ही तृष्णा |
छलिया भरे अनेक, किन्तु बढ़िया है कृष्णा ||
meethi si.....
ReplyDeleteदोपहर की धूप में मेरे बुलाने पे तेरा..वो तेरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है ... बहुत प्यारे अहसासों से भरी रचना !
ReplyDeleteati utam-***
ReplyDeletesab se achi bat jo lagi aap ne kavita ko bada karne keliye bhav ko khtam nhi hone diya
ReplyDeleteso sweet,nice feelings
ReplyDeleteआभार सर !
ReplyDelete~सादर!!!
एक आस मेरी, एक तुम्हारी...
ReplyDeleteआँखों में लेकर ...सो जायें दोनों ..!
अगली शाम सजाने को....
फिर सपनों के दीप जलायें....!
आशा का सौन्दर्य शास्त्र बिखेरती रचना
बहुत सुंदर प्रेममयी भावाव्यक्ति ,बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteअच्छी रचना
बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ ....
ReplyDeleteआते है जिन्दगी में जब बून्द-बून्द लम्हें।
ReplyDeleteसंगीत सा सुनाते हैं बून्द-बून्द लम्हें।
बहुत सुन्दर भाव चित्र शब्दों में उकेरा है .प्रेम का गीत .
ReplyDeleteबेपनाह मोहब्बत करने वालों को इस कायनात में पनाह नहीं मिलती शायद .....।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत भाव, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
आप सभी गुणी जनों ने अपना क़ीमती वक़्त दिया...इस के लिए तहे दिल से धन्यवाद व आभार!
ReplyDelete~सादर!!! :-)
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ........प्रणाम !
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