भारी बस्ते लिए, दौड़ लगाते बच्चों को देखा,
फिर पढ़ाई ख़त्म करने के बाद....
ज़िंदगी की दौड़ में भागते युवाओं को देखा...~
तो ये सवाल अक्सर मन में कुलबुलाया....~
"नन्हें काँधे जब उठाएँ ...किताबों का बोझ...
काँधे रहते चुस्त... ज़हन होते ख्वाब गाह... !
ज़हन उठा ले जब... किताबों का वो बोझ....
क्यूँ... काँधे झुके ...ज़हन वीराना हो जाये...???"
उम्र के उस 'नाज़ुक दौर'...
यानी 'टीनेज' से... गुज़रते बच्चों को देखा...
जब दिल सिर्फ़ अपनी सुनता है,
उसकी दुनिया सिर्फ़ उसके ख्वाब होते हैं...~
तो उनके इस ख़याल पर प्यार आया.....~
"चलो आज नींद से सुलह कर के देखें,
अपनी पलकों को ज़रा बंद कर के देखें,
सुना है...बेघर हो गये हैं कुछ ख्वाब..,
आओ... आज उन्हें पनाह दे कर देखें...!"
उम्र का वो दौर...
जब हम घर-गृहस्थी में उलझे हुए होते हैं,
अपने से ज़्यादा...अपने अपनों के लिए जीते हैं...~
तो अक्सर मन के किसी कोने में...ये तमन्ना बहुत है मचलती....~
"काश लौट आए वो बचपन सुहाना...
बिन बात खिलखिलाना, हँसना....
हर चोट पे जी भर के रोना.... "
उम्र के उस पड़ाव पर...
जहाँ आँखें और दिल... सिर्फ़ और सिर्फ़ पीछे मुड़कर देखते हैं...
क्योंकि ...आगे देखने की नज़र शायद धुँधला चुकी होती है...
और आस-पास बीमारियों के सिवा....या तो कोई दिखता नहीं...
या ज़्यादा देर टिकता नहीं...~
ये देखकर दिल के भीतर तक बस एक ही बात है सालती ...~
"ज़िंदगी की सुबह...
जिनके हौसलों से आबाद हुई,
शाम ढले क्यों ज़िंदगी...
उनसे से ही बेज़ार हुई....???"
bahut khoobsoorat Anita ji...
ReplyDeleteSundar Rachna
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चित्रगीत!
ReplyDeleteबहुत उम्दा ..भाव पूर्ण रचना .. बहुत खूब अच्छी रचना इस के लिए आपको बहुत - बहुत बधाई
ReplyDeleteमेरी नई रचना
ये कैसी मोहब्बत है
खुशबू
अच्छे शब्द चित्र खींचे हैं ..
ReplyDelete:)
चलो आज नींद से सुलह कर के देखें,
ReplyDeleteअपनी पलकों को ज़रा बंद कर के देखें,
सुना है...बेघर हो गये हैं कुछ ख्वाब..,
आओ... आज उन्हें पनाह दे कर देखें...!"
बहुत सुन्दर........
ज़िंदगी की सुबह...
ReplyDeleteजिनके हौसलों से आबाद हुई,
शाम ढले क्यों ज़िंदगी...
उनसे से ही बेज़ार हुई....???
...बहुत मर्मस्पर्शी और सटीक अभिव्यक्ति...बहुत उत्कृष्ट रचना..
क्या बात बढिया
ReplyDeleteसटीक रेखांकन किया शब्दों के माध्यम से
ReplyDeleteजीवन को परिभाषित करती सुन्दर क्षणिकाएं |
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति ॥
ReplyDeleteचलो आज नींद से सुलह कर के देखें,
ReplyDeleteअपनी पलकों को ज़रा बंद कर के देखें,
सुना है...बेघर हो गये हैं कुछ ख्वाब..,
आओ... आज उन्हें पनाह दे कर देखें...!"
लम्बे समय बाद इतनी खुबसूरत दिल के करीब जाती रचना पढ़ने को मिली ..
आभार आपकी टिपण्णी का .आपकी टिपण्णी हमारी शान .बुनियादी सवालों के ज़वाब तलब करती भाव प्रधान रचना .
ReplyDelete"ज़िंदगी की सुबह...
जिनके हौसलों से आबाद हुई,
शाम ढले क्यों ज़िंदगी...
उनसे से ही बेज़ार हुई....???"
bahutkhoob likha hai,"bund bund lamhe aur lamhe lamhe sadiyan" ज़िंदगी की सुबह...
ReplyDeleteजिनके हौसलों से आबाद हुई,
शाम ढले क्यों ज़िंदगी...
उनसे से ही बेज़ार हुई....???"
चलो आज नींद से सुलह कर के देखें,
ReplyDeleteअपनी पलकों को ज़रा बंद कर के देखें,
सुना है...बेघर हो गये हैं कुछ ख्वाब..,
आओ... आज उन्हें पनाह दे कर देखें...!"
...वह नीतू ...मज़ा आ गया ...वाकई ..बहुत सुन्दर !!!
बहुत खूब , हँसते हंसते रोना और रोते रोते हंसना याद आ गया बचपन का ।
ReplyDelete"ज़िंदगी की सुबह...
ReplyDeleteजिनके हौसलों से आबाद हुई,
शाम ढले क्यों ज़िंदगी...
उनसे से ही बेज़ार हुई....???"
सच कहा
सराहना तथा प्रोत्साहन के लिए आप सभी का हार्दिक धन्यवाद व आभार !:-)
ReplyDelete~सादर!!!
बहुत सुन्दर रचना | बधाई
ReplyDeleteयहाँ भी पधारें और लेखन पसंद आने पर अनुसरण करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
अत्यंत सुन्दर प्रयास | बधाई
ReplyDeleteयहाँ भी पधारें और लेखन पसंद आने पर अनुसरण करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
सटीक !दिल से निकली यादें ......
ReplyDeleteशुभकामनायें!
आभार....
ReplyDeleteक्या बात है..उम्र के हर पड़ाव से बहुत खूबसूरती से वाकिफ करवाया आपने!
ReplyDeleteजिंदगी के अनुभवों के मंथन से उपजी सम्वेदनशील कविता.
ReplyDelete"ज़िंदगी की सुबह...
ReplyDeleteजिनके हौसलों से आबाद हुई,
शाम ढले क्यों ज़िंदगी...
उनसे से ही बेज़ार हुई....???"
जीवन की यही तो त्रासदी है अनीता जी...
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं...बधाई और शुभकामनाए....
सारिका मुकेश
जिंदगी का हर पडाव अपने अतीत में ही झाँकता है
ReplyDeleteबेहतरीन !
चलो आज नींद से सुलह कर के देखें,
ReplyDeleteअपनी पलकों को ज़रा बंद कर के देखें,
सुना है...बेघर हो गये हैं कुछ ख्वाब..,
आओ... आज उन्हें पनाह दे कर देखें...
वाह ... क्या बात है बहुत ही उम्दा पंक्तियां
"ज़िंदगी की सुबह...
ReplyDeleteजिनके हौसलों से आबाद हुई,
शाम ढले क्यों ज़िंदगी...
उनसे से ही बेज़ार हुई....???"
bahut khoob...
सराहना तथा प्रोत्साहन के लिए आप सभी का हार्दिक धन्यवाद व आभार!:-)
ReplyDelete~सादर!!!