Saturday 16 January 2016

~**समय**~

समय! कब रुका है किसी के लिए?
वो तो यूँ गुज़र जाता है...  
पलक झपकते ही!-
मानो सीढ़ियाँ उतर जाता हो कोई,
तेज़-तेज़,
छलाँग लगाते हुए -
धप! धप! धप! - और बस!-
यूँ गुज़रता है समय!

मगर नहीं!...
जब चला जाता है कोई दूर,
या इन्तज़ार होता है किसी का-
तब नहीं होता ऐसा!
तब... मुँह फेर लेता है यही समय-
और उल्टे चलने लगता है!-
मानो चढ़ने लगता हो सीढ़ियाँ कोई,
हल्के-हल्के … गठिया वाले पैरों से !
हर क़दम पर कराहते हुए, रुकते-ठहरते हुए !
कहते हैं-
समय का क्या है! वह कट ही जाता है!
मगर … जब नहीं कटता है.… 
तो काट के रख देता है … 
भीतर ही भीतर !!!