**~मेरी दुनिया....~क्षणिकाएँ ~**
कौन से दो जहाँ माँगे मैनें...
सिर्फ़ दुनिया ही तो माँगी थी ...
तुम्हारी दो बाहों के आगे ....
मेरी कोई दुनिया ही कहाँ....???
न चाहत, न ही कोई तमन्ना...
बाक़ी अब इस ज़िंदगी में मेरी...,
तू सरमाया, तेरा हाथ, तेरा साथ...
बस यही दुनिया मेरी.....
बहुत ही खूबसूरत, समर्पण का एहसास.
ReplyDeleteरामराम.
कौन से दो जहाँ माँगे मैनें...
ReplyDeleteसिर्फ़ दुनिया ही तो माँगी थी ...
तुम्हारी दो बाहों के आगे ....
मेरी कोई दुनिया ही कहाँ....???
लाजवाब |बहुत सुन्दर |
wahh... Bahut behtrren..
ReplyDeletehttp://ehsaasmere.blogspot.in/2013/02/blog-post_11.html
बाहों का दारा हो तो तमाम दुनिया सिमट आती है .... बहुत सुंदर
ReplyDeleteकौन से दो जहाँ माँगे मैनें...
ReplyDeleteसिर्फ़ दुनिया ही तो माँगी थी ...
तुम्हारी दो बाहों के आगे ....
मेरी कोई दुनिया ही कहाँ....?
सही कहा आपने , इसके बाद भी कुछ बच जाता है क्या?
जिनकी दुनिया दो बाँहों में सिमटी , बाकी से उन्हें क्या !
ReplyDeleteसुन्दर !
क्या बात है ... छोटी सी दुनिया..छोटी-छोटी खुशियाँ
ReplyDeleteखूबसूरत लम्हों को शब्दों में सजाकर प्रस्तुत करती रचना!
बहुत सुंदर क्षणिकाएं .
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव कणिकाएं राग रंग की .
कौन से दो जहाँ माँगे मैनें...
ReplyDeleteसिर्फ़ दुनिया ही तो माँगी थी ..
वाह ... बहुत खूब कहा आपने इन पंक्तियों में
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteक्या कहने
तुम्हारी दो बाहों के आगे ....
ReplyDeleteमेरी कोई दुनिया ही कहाँ....???प्रेम का सुंदर रंग----
बहुत खूब
आप सभी गुणी जनों का प्रोत्साहन सिर आँखों पर !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद व आभार!!! :-)
~सादर!!!
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