Friday, 20 January 2017

~** मैं...तुम हो जाती हूँ... **~

सर्दी की ठिठुरती रातें जब जमने लगती हैं,
यादें भी तेरी आ-आकर
ठहरने लगती हैं !
बनाती हूँ तब मैं ...
एक कप गरम-गरम-
तुलसी-अदरक की चाय,
जिसके उड़ते धुँए में
पिघलने लगतीं हैं...
एक-एक करके-
तेरी थमी हुई यादें!
फिर खोने लगती हूँ मैं -धीरे-धीरे …
और तब …
मैं...मैं नहीं रहती -तुम हो जाती हूँ!
       
                   ~ अनिता ललित

8 comments:

  1. सच है ठण्ड में हाथ- पैर सुन्न करने की क्षमता भले ही है लेकिन यादों को नहीं ...
    बहुत सुन्दर

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (22-01-2017) को "क्या हम सब कुछ बांटेंगे" (चर्चा अंक-2583) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. जब एकाकार हो जाएँ तभी तो प्रेम जागता है ... भावपूर्ण रचना ...

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  4. बहुत खूब... बेहतर रचना...

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  5. वाह कहूँ कि आह! सखी , यह रचना पढ़ के तो यूँ लगा कि जैसे 'तुम' 'मैं' हो गयी ..... रंजना

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  6. बहुत ही उम्दा रचना

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  7. बहुत ही प्यारी दिव्य प्रेम भरी रचना -- सादर सस्नेह

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