Saturday, 24 August 2019
Tuesday, 16 July 2019
"सारस्वत सम्मान" -15 जुलाई 2019 ~कुछ आशीर्वाद यूँ भी मिला करते हैं!
कुछ आशीर्वाद यूँ भी मिला करते हैं ~
“दिनांक
15 जुलाई, 2019, विभिन्न सम्मानों एवं
पुरस्कारों से विभूषित, साहित्य शिरोमणि संपादकाचार्य स्व. डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव के जन्मदिन के अवसर पर
‘साहित्यकार सुस्मृति संस्थान’ लखनऊ, तथा ‘डॉ. रमाकांत
श्रीवास्तव साहित्य शोध संस्थान’ लखनऊ के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित ‘सारस्वत
समारोह’ उत्तर-प्रदेश प्रेस क्लब’ में सम्पन्न हुआ! इसमें डॉ. रमाकांत
श्रीवास्तव के व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व पर वृहद चर्चा हुई! कार्यक्रम के मुख्य
अतिथि थे -डॉ. सूर्य प्रसाद दीक्षित, विशिष्ट अतिथि थे -डॉ.
लाल जी सहाय श्रीवास्तव!
इस अवसर पर साहित्यकार श्रीमती अनिता ललित को ‘सारस्वत सम्मान’ से
सम्मानित किया गया! उन्होंने डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव से मिलने के अवसर का ज़िक्र
करते हुए, उनके सादगी भरे जीवन तथा सीधे, सरल एवं शालीन व्यक्तित्व की भूरि-भूरि प्रशंसा की और उनके कुछ हाइकु का
वाचन किया! श्रीमती अनिता ललित ने कहा कि जो व्यक्ति कभी अपने गाँव की मिटटी को
नहीं भूला, अपने घर की दहलीज़ को नहीं भूला, अपनी माँ के संघर्षों को नहीं भूला, माँ के
बताये हर संस्कार, आचार-विचार को आभूषणों की तरह धारण
करके अपने व्यक्तित्त्व को सजाता गया, सँवारता गया, निखारता गया ... उस व्यक्ति को झूठा अहं और इस दुनिया के दिखावे-छलावे कभी
छू भी नहीं सकते थे! अपने सरल स्वभाव एवं अपनी रचनाओं के माध्यम से वे सदैव अमर
रहेंगे!
श्री
अमरेन्द्र पाल, जो कार्यक्रम के प्रमुख
वार्ताकार थे, ने डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव के जीवन की कुछ
घटनाओं का वर्णन किया और उनके साथ अपने अनुभव साझा किये!
डॉ.
सूर्य प्रसाद दीक्षित, डॉ. लाल जी
सहाय श्रीवास्तव, श्री देवकी नंदन ‘शांत’, तथा अन्य साहित्यकारों ने भी डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव की रचनाओं का वाचन
किया एवं उनके साथ के अपने संस्मरण बताए!
श्री
वाहिद ने अपने मुक्तक पाठ से सबका मन मोह लिया!
श्री
देवकी नन्दन ‘शांत’ के नवगीत’संग्रह ‘नवता’ का लोकार्पण हुआ!
कार्यक्रम
व ‘साहित्यकार सुस्मृति संस्थान’ के अध्यक्ष डॉ. किशोरी शरण शर्मा, महासचिव श्री देवकी नंदन ‘शांत’ एवं टीम, ‘डॉ.
रमाकांत श्रीवास्तव साहित्यकार शोध संस्थान’ के अध्यक्ष तथा डॉ. रमाकांत
श्रीवास्तव के सुपुत्र श्री विनय श्रीवास्तव एवं उनकी पत्नी श्रीमती रेखा
श्रीवास्तव, सचिव तथा डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव की सुपुत्री
श्रीमती प्रीति कीर्ति एवं अन्य परिवारजन तथा कई प्रबुद्ध साहित्यकारों एवं
पत्रकारों की उपस्थति में कार्यक्रम सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ!”
Sunday, 12 May 2019
माँ सी रज़ाई ~ हाइकु
आज मातृ दिवस है! मगर इस बार माँ शारीरिक रूप में मेरे साथ नहीं है। हालाँकि सदा की तरह वह हर क्षण मेरे दिल में, मेरे बहुत-बहुत-बहुत ...बहुत क़रीब है। हर त्योहार, हर जन्मदिन के अतिरिक्त चाहे कोई भी दिन या दिवस हो, जैसे 'मित्रता दिवस', 'शिक्षक दिवस'...कोई भी दिवस हो, सबसे पहले मैं माँ से बात करती थी, उन्हें बधाई/शुभकामनाएँ देती थी, उनसे आशीर्वाद लेती थी। मगर इस बार न माँ, न ही पापा, दोनों की ही आवाज़ नहीं है मेरे साथ, बल्कि वे दोनों ईश्वर के नूर की तरह मेरे पूरे वजूद पर छाए हुए हैं, मुझे अपनी बाँहों में समेटे हुए हैं। कुछ हाइकु उन दोनों की नज़र --
नहीं मिलेगी
लम्हों में अब
माँ -सी रज़ाई।
माँ को खोया
यूँ लगता है जैसे
जीवन खोया।
कहीं भी रहो
तुम सदा हो मेरी -
अंतर्मन माँ।
असीम कष्ट
माँ! तुमने जो सहे
मुझे कचोटें।
छूट गई माँ
अब सभी दुखों से
मिली है मुक्ति।
लाड़-दुलार
माँ-पापा संग गए
नाज़-नख़रे।
मन है भारी
खो गया बचपन
दूध-कटोरी।
न रहा साया
गहरा ख़ालीपन
माँ-पापा बिन।
थी इतराती
माँ-पापा के साए में! -
बीती कहानी!
चुप हूँ खड़ी
अब हुई मैं बड़ी,
खोजे आँगन।
भूली नादानी
मायके की गलियाँ
अब बेगानी।
जहाँ भी रहें
माँ-पापा की दुआएँ
संग हैं मेरे।
नहीं मिलेगी
लम्हों में अब
माँ -सी रज़ाई।
माँ को खोया
यूँ लगता है जैसे
जीवन खोया।
कहीं भी रहो
तुम सदा हो मेरी -
अंतर्मन माँ।
असीम कष्ट
माँ! तुमने जो सहे
मुझे कचोटें।
छूट गई माँ
अब सभी दुखों से
मिली है मुक्ति।
लाड़-दुलार
माँ-पापा संग गए
नाज़-नख़रे।
मन है भारी
खो गया बचपन
दूध-कटोरी।
न रहा साया
गहरा ख़ालीपन
माँ-पापा बिन।
थी इतराती
माँ-पापा के साए में! -
बीती कहानी!
चुप हूँ खड़ी
अब हुई मैं बड़ी,
खोजे आँगन।
भूली नादानी
मायके की गलियाँ
अब बेगानी।
जहाँ भी रहें
माँ-पापा की दुआएँ
संग हैं मेरे।
Monday, 6 May 2019
पाँव छिले हैं! ~ताँका
1
कैसे गिले हैं !
ज़हरीले काँटों से-
पाँव छिले हैं !
वक़्त ने उगाए जो,
दिल में वो चुभे हैं !
2
तुम जो रूठे
यादें ठहर गईं
वक़्त न रुका !
चलती रही साँसें
धड़कन है थमी।
3
भूलेंगे कैसे !
तुमसे ग़म मिले-
सहेजे मैंने !
ये हैं प्यार के सिले-
अब होंठ हैं सिले !
4
दिल की गली
तेरी यादें हैं टँगी
आँखें हैं गीली !
पलक-अलगनी
हुई है सीली-सीली।
5
उनींदी रात,
चाँद-झूमर सजा
घर को चली।
किरणें थामें हाथ
कहें, ‘भोर हो चली।’
Tuesday, 30 January 2018
डस्टबिन -लघुकथा
छह-सात वर्षीया पिंकी अपने गुड़िया-गुड्डे लेकर, कमरे में अपने सुंदर से डॉल-हाउज़ के पास बैठकर, मगन होकर खेल रही थी -छोटे-छोटे बर्तन, मेज़-कुर्सी तथा कई और सारी चीज़ें उसके आसपास बिखरी हुई थीं ! कुल मिलाकर मानों छोटी -सी गृहस्थी जमी हुई थी ! नन्हीं पिंकी वहीं बैठे-बैठे अपनी माँ की चुन्नी लपेटे, गुड्डे-गुड़िया से बिल्कुल अपनी मम्मी की तरह बातें किये जा रही थी ! इतने में सुमन वहाँ से ग़ुज़री, पिंकी को इतने प्यारे ढंग से खेलते-बतियाते देखकर वह वहीं ठिठक गई और छुप कर उसे खेलते हुए देखने लगी ! अपने जैसे बातें करते देख सुमन को अपनी बिटिया पर बहुत लाड़ आ रहा था !
पिंकी छोटे-छोटे बर्तनों में खाना बनाने का खेल खेल रही थी और बोले जा रही थी –‘‘रवि! आइए! आपका पराठा बन गया ! ये लीजिए!”
सुमन की हँसी फूट पड़ी ! रवि उसके पति अर्थात् पिंकी के पापा का नाम था !
“अरे! ये तो ठंडा हो गया सुमन! इतना ठंडा नहीं खा सकता मैं!”
“कोई बात नहीं! आप छोड़ दो उसे, मैं खा लूँगी ! मैं आपके लिए और ला रही हूँ गर्म-गर्म ! ये लीजिए !”
कहते हुए पिंकी ने अपने गुड्डे के सामने से एक प्लेट हटाकर दूसरी प्लेट रख दी ! फिर पलटकर अपनी गुड़िया से बोली- “चलो बेटा ! आ जाओ जल्दी से ! नाश्ता रेडी है ! ये लो, पहले ये फ्रूट्स खाओ ! क्या? मन नहीं है ! नहीं बेटा ! खाना तो पड़ेगा ही ! नहीं तो आप बड़े कैसे होगे? हेल्दी कैसे होगे ? चलो! चलो! जल्दी से खा लो! गुड गर्ल !”
फिर काँटे से झूठ-मूठ के फल गुड़िया को खिलाने लगी ! फिर उसने छोटी सी कटोरी से उसको कुछ खिलाया, उसके बाद प्लेट से ! फिर अपने सिर पर हाथ रखते हुए बोली-“ओफ़्फ़ोह ! मैं तो थक गई! अरे! ये क्या ? बेटा आपने तो इतना सब छोड़ दिया ! फ़िनिश नहीं किया ! वैरी बैड! खाना वेस्ट करना गन्दी बात होती है न ! अच्छा लाओ... मैं ही खा लेती हूँ !”
कहते हुए पिंकी ने सभी प्लेटों-कटोरियों से कुछ समेटने का अभिनय किया और झूठमूठ की समेटी हुई सामग्री अपने मुँह में डाल ली !
सुमन के चेहरे पर हँसी की जगह अब सोच की लकीरें उभर आईं थीं !
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