Monday 17 December 2012

**~ अपना रिश्ता नये सिरे से ~**



सँवरने की कोशिश में है फिर से..रिश्ता अपना,
धुन्द्द छँटने के बाद निखरता हो...जैसे अक़्स-ए-आईना !

आओ दे दें... आँखों को एक नयी नज़र..
और देखें फिर से....ख्वाब कोई पुराना..!
देकर प्यारे जज़्बातों के छींटे... खिला दें
वो सारे फूल..जो मुरझाए...
ज़िंदगी की किताब के कुछ भूले बिसरे पन्नों में..
और रह गये वहीं...दबे दबे...!

बुनी जतन से ज़ो ... इतने बरसों में हमने...
और टाँके जिसमें.... गुल बूटे अपने एहसासों के...,
ओढ वही... प्यार,  क़रार , समझौते की चादर...
आओ.. तय कर लें... अब बाकी का सफ़र....!

झाड़ दें माथे से... वो सारे बल, सारे तेवर...
जिनमें उलझ-उलझ गिरे हम... न जाने कितनी बार..!
संभाल ले.. समेट लें.. सहेज लें.... खुद को...
और संवारें आने वाला कल.....
कि... नहीं मिलता ऐसा मौका किसी को
एक ही ज़िंदगी में बार बार.....!!!

15 comments:

  1. झाड़ दें माथे से... वो सारे बल, सारे तेवर...
    जिनमें उलझ-उलझ गिरे हम... न जाने कितनी बार..!
    संभाल ले.. समेट लें.. सहेज लें.... खुद को...
    और संवारें आने वाला कल.....
    कि... नहीं मिलता ऐसा मौका किसी को
    एक ही ज़िंदगी में बार बार.....!!!

    गजब की समझदारी का अंदाज़

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    1. हार्दिक धन्यवाद सर !:-)
      प्रोत्साहन देने का हार्दिक आभार !!!
      ~सादर !!!

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  2. संभाल ले.. समेट लें.. सहेज लें.... खुद को...
    और संवारें आने वाला कल.....
    कि... नहीं मिलता ऐसा मौका किसी को
    एक ही ज़िंदगी में बार बार.....!!!

    सच ही है मौके हमेशा नहीं मिलते और जब ऐसा अवसर आये उसे गवाना बड़ी गलती होगी. सुंदर प्रस्तुति.

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    1. हार्दिक धन्यवाद... रचना जी !:)

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  3. आपका ब्लॉग अच्छा लगा उसे ज्वाइन कर रही हूँ.

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    1. आपका बहुत बहुत स्वागत है... रचना जी ! :-)

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  4. झाड दें जो माथे से सारे बल ...तो ज़िंदगी यूं ही आसान हो जाएगी ... बहुत खूबसूरत रचना ।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद दीदी!:)
      ~सादर !!!

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  5. और संवारें आने वाला कल.....
    कि... नहीं मिलता ऐसा मौका किसी को
    एक ही ज़िंदगी में बार बार.....!!!
    अतीत को भूल जाओ ...मौका जो आने वाला है उसे चुकने ना दो। सही तो है .. गजब

    मेरी नई कविता आपके इंतज़ार में है: नम मौसम, भीगी जमीं ..

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    1. शुक्रिया... Rohitas ji !
      आपकी कविता पढ़कर ही आएँ हैं हम !:)
      ~God Bless!!!

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  6. आपकी रचना बहुत अच्छी है और ब्लॉग भी...
    फेसबुक पर मैं फ्रेंड रिक्वेस्ट नहीं भेज पाता.. फ्रेंड नहीं बनेंगे तबतक मेसेज का जवाब नहीं दे पाऊंगा..
    - पंकज त्रिवेदी (नव्या)

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  7. बहुत खूबसूरत रचना ....

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  8. झाड दे माथे से वो सारे बल ...
    कैसी शिकायतें !
    बहुत खूब !

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  9. झाड़ दें माथे से... वो सारे बल, सारे तेवर...
    जिनमें उलझ-उलझ गिरे हम... न जाने कितनी बार..!
    संभाल ले.. समेट लें.. सहेज लें.... खुद को...
    और संवारें आने वाला कल.....
    कि... नहीं मिलता ऐसा मौका किसी को
    एक ही ज़िंदगी में बार बार.....!!!
    .....बहुत अच्छा लिखा है नीतू

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