Thursday 17 May 2012

ज़िंदगी ~~ फूलों की ज़ंजीर ....




ज़िंदगी... बेतरतीब, बेलक़ीर..,
मोह्पाश...फूलों की ज़ंजीर..!


बाँधे फूल से कोमल रिश्ते ~
बेताब मन को...
महकाते, बहलाते..,
बहकाते...उलझाते..!


ज़ंजीर बनते...चुभते ~
नुकीले काँटों से हालात...,
बेरहम ! करते आघात...,
बेबस हो जाते जज़्बात...!


ज़ख़्मी रूह सिसकती...,
साँसें टूटने को बिलखतीं...! ~~


हस्ती  हो जाती लाचार..,
पंछी उड़ने को बेक़रार...!
अपने बुने जाल में बंद..
काटे गिन गिन के दिन चार.....

9 comments:

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    1. संजय जैन जी....आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!:)

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  3. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद...वंदना जी ! :)
      ~सादर !!!

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  4. ज़ख़्मी रूह सिसकती...,
    साँसें टूटने को बिलखतीं...! ~~
    वाह ... बहुत खूब

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद... सदा जी ! :)
      ~सादर !!!

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  5. फूलों की जंजीर भी कर देती हस्ती लाचार !
    जख्मी रूह , बिखरती साँसे !
    मार्मिक !

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