Thursday, 27 December 2012

**~सर्द लहर .. ढाये कैसा क़हर ..~** "ताँका "


सर्द मौसम,
ठिठुरते हैं जिस्म,
देखो ईश्वर!
कंपकपाते हाथ...
ढूँढे तेरा निशान..! 

सर्द लहर,
ढाये कैसा कहर...
बेबस हुआ
ग़रीब का आँचल...,
तपे, ठंडी आस में...!

सर्दी की धूप,
तेरी यादों के जैसी...
गुनगुनाती....
रोम-रोम को मेरे,
कर देती झंकृत !

छाया कोहरा,
सर्द आहें भरते,
मानव सभी! 
खुदा तेरी आस के,
जलते अलाव हैं...!

सर्दी क़हर !
रात बहुत भारी !
दिन भी रोया !
गरीब जो सोया, तो 
खुली ही रहीं आँखें ! 

11 comments:

  1. गरीब जो सोया, तो
    खुली ही रहीं आँखें !
    बहुत ही मार्मिक चित्रण
    सादर

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  2. सभी तांका बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी...

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  3. "सर्दी की धूप,
    तेरी यादों के जैसी...
    गुनगुनाती....
    रोम-रोम को मेरे,
    कर देती झंकृत!"

    सर्दी के विभिन्न रंगों से सजी सुंदर प्रस्तुति

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  4. सर्दी क़हर !
    रात बहुत भारी !
    sahi kaha aapne sundar rachna ....

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  5. शानदार लेखन,
    जारी रहिये,
    बधाई !!

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  6. बहुत सुंदर एवं बहुत ही भाव-प्रवण कविता । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

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  7. छाया कोहरा,
    सर्द आहें भरते,
    मानव सभी!
    खुदा तेरी आस के,
    जलते अलाव हैं...!

    सर्दी क़हर !
    रात बहुत भारी !
    दिन भी रोया !
    गरीब जो सोया, तो
    खुली ही रहीं आँखें !

    आस्था विश्वास संग इश्वर का अनूठा संगम.

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  8. बहुत प्रभावशाली रचना ...

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  9. आप सभी गुणीजनों का दिल से आभार...
    ~सादर !!!

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