Wednesday 23 May 2012

*** आँसू और मुस्कान... "अनूठा गठबंधन" ***


बोली 'मुस्कान' 'आँसू' से, एक दिन आकर..,
क्यों आते हो तुम...'अँखियों' में..'भर भर'...?
होकर मजबूर....मैं जाती हूँ...बिखर...!


बोला आँसू..., तुम आओ जो 'खिल खिल' कर...,
मैं भी तो हो जाऊँ .....'बेघर'...
दया तुम्हें ....क्यों न आए मुझपर...?
'दुख' की गगरी 'संग' मेरे...जब 'नैनों' में 'भर भर' आती...
मेरे घर भी उस पल हर सू....बहारें ही बहारें छातीं...,
लेकिन.. जैसे ही चौखट पर..., दबे पाँव से...'तुम' आतीं...,
'देख' के 'तुमको'...'झूम' ही जाती..., 'दुनिया' मुझको 'भूल' ही जाती...!
दुनिया में...'सबको' तुम 'प्यारी' , 'अदा' तुम्हारी सबसे 'न्यारी' ,
'ओढ़ा' तुम्हारी 'चादर' मुझको... ज़ालिम ! 'साँसें' ही 'रोक ले' मेरी...!


उलझे 'दोनो' आपस में..., हुई खट्टी मीठी तक़रार...,
फिर 'मिल' बैठे.., लगे सोचने...होता ऐसा आख़िर 'क्योंकर...?
'दोनों' 'जज़्बातों' के 'बस' में...,फिर 'दुश्मनी' क्यों 'आपस' में...?
देख 'नम' 'मुस्कान' की आँखें... , 'आँसू' हौले से 'मुस्काया'....,
दोनों के शिक़वों का उसको....'राज़' अब समझ में आया...!


थाम हाथ मुस्कान का...आँसू फिर उस से बोला....
'अँखियों' में, जब 'मैं' '... 'भर भर' आता... मुझमें 'वजूद तेरा मुस्काता'...!
जब भी तुम 'लब' पर 'लहराती'....., 'अँखियों' से 'मैं बह-बह जाता'...
तुम 'मेरी'.... मैं 'तेरा'...दोनो 'हम'...,
'एक-दूजे' के... 'पूरक'... बनते हम...!
गर 'तुम' ना हो... 'क्या हस्ती मेरी'...,
जो 'मैं' नहीं... 'क्या क़दर तुम्हारी'...?'


दुनिया' क्या जाने...'साथ निभाना'...ये ठहरी 'बेईमान'...,
'ग़र्ज़-परस्त' , 'मतलबी'... यहाँ के...सारे हैं 'इंसान'...!
अपने 'अंधे' जज़्बातों में... हुमको 'लाठ' बनाए है...,
कभी 'सजाए'..., कभी 'बहाए'...., जी भर हमे 'नचाए' है..!
जज़्बातों के.. 'गुलाम' सही 'हम'..., मगर 'अधूरे'..'अलग' 'अलग'...'हम' ..,
अपना तो है....'अनूठा बंधन'.....
ये है......''जन्मों का गठबंधन".....!!!

5 comments:

  1. आँख से बाहर निकल कर कोर पर ठहरा रहा, ज़िन्दगी पर आँसुओं का, इस तरह पहरा रहा.. तुम तो आईना रहे, जिसमें हज़ारों अक्स थे...मैं रही तस्वीर ! जिसमें, बस वही चेहरा रहा ! थी ख़ुशी तो ओस का कतरा हवा में घुल गई ...ज़िन्दगी का दर्द से, रिश्ता बड़ा गहरा रहा, दर्द की एक बाढ़ यूँ, हमको बहा कर ले गई, या तो आंसू ही मौन थे , या वक़्त ही बहरा रहा ।

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    1. Prakriti......ज़िन्दगी का दर्द से, रिश्ता बड़ा गहरा रहा, दर्द की एक बाढ़ यूँ, हमको बहा कर ले गई, या तो आंसू ही मौन थे , या वक़्त ही बहरा रहा । --बहुत खूबसूरत, बहुत गहरी लाइन्स! बहुत बहुत शुक्रिया दोस्त! :))

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  2. बहुत ख़ूब! अतिशयोक्ति होगी इस पर कुछ कहा जाये तो, शब्दों का चयन प्रसंसनीय है,अलंकर और रसो, छंदों का सुन्दर प्रयोग किया है, आभार मित्र हम तक अपनी श्रेस्ठ कृति पहुँचाने के लिए....

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    1. Prakriti....सभी मित्रों के सुझावों का सदा स्वागत है ! बहुत बहुत शुक्रिया ! :))

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  3. कभी कभी बहुत खुशी में भी आँसू निकाल आते हैं ... आपका यह अनूठा बंधन पसंद आया ।

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