समय! कब रुका है किसी के लिए?
वो तो यूँ गुज़र जाता है...
पलक झपकते ही!-
मानो सीढ़ियाँ उतर जाता हो कोई,
तेज़-तेज़,
छलाँग लगाते हुए -
धप! धप! धप! - और बस!-
यूँ गुज़रता है समय!
मगर नहीं!...
जब चला जाता है कोई दूर,
या इन्तज़ार होता है किसी का-
तब नहीं होता ऐसा!
तब... मुँह फेर लेता है यही समय-
और उल्टे चलने लगता है!-
मानो चढ़ने लगता हो सीढ़ियाँ कोई,
हल्के-हल्के … गठिया वाले पैरों से !
हर क़दम पर कराहते हुए, रुकते-ठहरते हुए !
कहते हैं-
समय का क्या है! वह कट ही जाता है!
मगर … जब नहीं कटता है.…
तो काट के रख देता है …
भीतर ही भीतर !!!
वो तो यूँ गुज़र जाता है...
पलक झपकते ही!-
मानो सीढ़ियाँ उतर जाता हो कोई,
तेज़-तेज़,
छलाँग लगाते हुए -
धप! धप! धप! - और बस!-
यूँ गुज़रता है समय!
मगर नहीं!...
जब चला जाता है कोई दूर,
या इन्तज़ार होता है किसी का-
तब नहीं होता ऐसा!
तब... मुँह फेर लेता है यही समय-
और उल्टे चलने लगता है!-
मानो चढ़ने लगता हो सीढ़ियाँ कोई,
हल्के-हल्के … गठिया वाले पैरों से !
हर क़दम पर कराहते हुए, रुकते-ठहरते हुए !
कहते हैं-
समय का क्या है! वह कट ही जाता है!
मगर … जब नहीं कटता है.…
तो काट के रख देता है …
भीतर ही भीतर !!!
वाह, बहुत खूब
ReplyDeleteभाई कुलदीप जी ने कल लिंक लेकर सूचना दी थी सभी को, पर प्रस्तुति यहां नहीं थी सो यह आकस्मिक प्रस्तुति,, "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 17 जनवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
समय जब नही कटता तो काट के रख देता है ......सुलगती चिंगारी है आप के इस कविता रूपी लेख में ....शुभकामनायें .
ReplyDeleteबहुत ही भाव पूर्ण आप की रचना .
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 16 जुलाई 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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