1
कैसे गिले हैं !
ज़हरीले काँटों से-
पाँव छिले हैं !
वक़्त ने उगाए जो,
दिल में वो चुभे हैं !
2
तुम जो रूठे
यादें ठहर गईं
वक़्त न रुका !
चलती रही साँसें
धड़कन है थमी।
3
भूलेंगे कैसे !
तुमसे ग़म मिले-
सहेजे मैंने !
ये हैं प्यार के सिले-
अब होंठ हैं सिले !
4
दिल की गली
तेरी यादें हैं टँगी
आँखें हैं गीली !
पलक-अलगनी
हुई है सीली-सीली।
5
उनींदी रात,
चाँद-झूमर सजा
घर को चली।
किरणें थामें हाथ
कहें, ‘भोर हो चली।’
बहुत सुंदर 👌
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (08-05-2019) को "मेधावी कितने विशिष्ट हैं" (चर्चा अंक-3329) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह !बेहतरीन 👌
ReplyDeleteसादर
बेहद खूबसूरती से प्रस्तुत किया है आपने ।
ReplyDeleteजिंदगी से कैसा गिला
ReplyDeleteजो था नसीब में वो मिला....??
खुश रहो