Tuesday, 16 June 2015

~** वो सितारा-मेरे कान्हा का प्रसाद ! **~



चाँद की हँसती आँखों में
चमका एक सितारा,
आ गिरा चाँदनी के आग़ोश में। 
चाँदनी ने हौले से उठाया उसको, 
चूमा और रख दिया-
एक नन्हे बादल के 
रुई के फाहे जैसे पँखों पर। 
तैरते-तैरते वो नन्हा बादल 
आ पहुँचा फूलों की सुंदर बगिया में। 
रंग-बिरंगे फूलों के बिस्तर पर 
सुला दिया उस सितारे को। 
जाग उठे सभी फूल,
तितलियों ने भी पंख पसारे,
लेकर अपने रंग  
और अपनी-अपनी ख़ुश्बू,
उमड़ पड़े वो सारे ,
नहला गए उस नन्हे सितारे को-
आधा सोया-आधा जागा, 
मुस्कुरा उठा!
खिल उठा वो सितारा! 
खोलकर अपनी बाँहें 
समा गया वो 
मेरी आँखों में 
बनकर सपना ।
और चहका मेरी गोद में-
मेरा लाल! मेरा कान्हा बनकर। 

आकाश ने विस्तार दिया, 
सूरज ने अपना तेज, 
सागर ने दिया 
गाम्भीर्य और गहराई 
पर्वत ने पक्के इरादे 
और ऊँचाई। 
मेरा सपना- 
मेरे जीवन का सच है बना।

मेरे बेटे! मेरे लाल!
मेरा दिल! मेरी जान!
तू मेरा मान-अभिमान!
तेरे जीवन की राहें बुलाएँ तुझे 
कर्म-क्षेत्र तेरा , दे सदाएँ तुझे। 
न मानना हार कठिनाइयों से
न डरना जीवन की चुनौतिनियों से। 
न बनना किसी के दुःख का कारण 
न दुखाना किसी मज़लूम का दिल। 

तेरे साथ है मेरी दुआएँ सदा -
रखना ध्यान अपना कि-
तू है जीवन मेरा।
मेरे लाल!
तू है- मेरे कान्हा का प्रसाद !



3 comments:

  1. बहुत ही खूबसूरत दिल को छू गई

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  2. सुन्दर पंक्तियाँ जो दिल को छु के गुज़र जाती हैं ...

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