Monday, 30 July 2012

* तक़दीर की दुश्मनी... *


उसके प्यार को मैने जाना नहीं,
मेरी हया को उसने पहचाना नहीं,
बस इसी उधेड़बुन में...
ज़िंदगी ने हमको समझा नहीं !


मेरी आँखों ने उससे बहुत कुछ कहना चाहा,
उसकी नज़रों ने मुझसे बहुत कुछ सुनना चाहा,
लेकिन...खामोशी की बेबस दीवार..
दोनो के दरमियाँ रही !


मैं पल-पल उसकी ओर खींचती गयी,
वो पल-पल मुझसे दूर होता गया..!
वो वीरने में ज़िंदगी ढूँढने निकल पड़ा,
मैं ज़िंदगी में खुद को तलाशती रही..!


बीत गया वक़्त...,
बदल गये सारे नज़ारे ज़ीस्त के,
वो मेरी नज़र-ए-इनायत को तरसता रहा,
मेरा दिल उसे बेवफा समझता रहा...!


बाद बरसों के अचानक...
जो टकराए ज़िंदगी के एक मोड़ पर ..,
था एक ही सवाल दोनों के ज़हन में....


कैसा था ये खेल...जो खेला खुदा ने.....

थे दोनों जब मासूम और बावफ़ा मोहब्बत में....
तो तक़दीर क्यूँ दिलों से दुश्मनी निभाती रही...????

12 comments:

  1. वो मेरी नज़र-ए-इनायत को तरसता रहा,
    मेरा दिल उसे बेवफा समझता रहा...!

    those lines surely have the wow factor.. Thanks

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  2. जीवन में कई रंग हैं....कहाँ कौन समझ पता है ....? गहन अभिव्यक्ति

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    1. डॉ॰ मोनिका शर्मा जी...बहुत बहुत धन्यवाद!:-)

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  3. अजी छोड़िए,तक़दीर तो बहाना है
    कुछ उनका कुछ अपना फसाना है

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    1. कुमार राधा रमण जी....आभार !:)

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  4. वो वीरने में ज़िंदगी ढूँढने निकल पड़ा,
    मैं ज़िंदगी में खुद को तलाशती रही..!

    achi rachna hai ..!!

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    1. Swati Shinh ji....बहुत बहुत धन्यवाद!:-)

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  5. बहुत बढ़िया मैम!
    लगता है मेरा पिछला कमेन्ट स्पैम मे गया :(



    सादर

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    1. यशवंत जी...बहुत बहुत धन्यवाद ! :-)
      नहीं ! आपका कोई कॉमेंट स्पैम में नहीं है!

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  6. अनीता जी नमस्कार
    आपके ब्लॉग 'बूंद-बूंद लम्हे' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किया जा रहा है। आज 1 अगस्त को 'तकदीर की दुश्मनी'शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है, इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जा कर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
    धन्यवाद,
    फीचर प्रभारी
    नीति श्रीवास्तव

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    1. नीति श्रीवास्तव जी... आपका बहुत बहुत आभार !:-)
      ~सादर !!!

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