बही तरंग
तितलियों के संग,
मेरे आँगन-
क्या ख़ूब खिले आज
फूलों के रंग !
बहकी बयार है,
खोया है मन
पूनम के चाँद में-
ढूँढ़े सजन।
बीते बरस जब
गूँजी थी धुन,
भीगा था तन-मन
टेसू के संग
अबीर-गुलाल थे
बातों के रंग !
यादों की गलियों में
ख़्वाबों को चुन,
सजल नयन ये
हुए हैं गुम।
कहाँ खोई होली की
वह बौछार?
फागुन के गीत वो
प्रीतोपहार ?
करो कोई जतन
हो न मलाल-
कि अबकी फागुन
ला दो गुलाल,
साजन की प्रीत सा
मनभावन-
जो महका दे मन
जो रंग दे जीवन !
बहुत सुन्दर ...मोहक ..होली की हार्दिक शुभ कामनाएँ !
ReplyDeleteरंगों के महापर्व होली की
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (07-03-2015) को "भेद-भाव को मेटता होली का त्यौहार" { चर्चा अंक-1910 } पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण ...
ReplyDeleteभीगे तन-मन ..सदा खुशियों के संग ...
ReplyDeleteशुभकामनायें |
बेहतरीन!!
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