मैं आँख में रुक न पाऊँगी.... दिल भर आए जब.... समझ लेना...मैं बसी वहाँ..! सरगम में टिक न पाऊँगी.... जो बहके धुन.... समझ लेना....मैं थमी वहाँ...! मुस्कान में खिल न पाऊँगी... बिछे ओस जहाँ.... समझ लेना...मैं सोई वहाँ.......
जब बरसता है...माधुर्य तुम्हारा छलक़ता है भर-भर प्याला हमारा तब झूम उठता है उपवन का पोर-पोर, गाने लगते है कंठ-कोकिला के ओर-छोर ! पर होती है उनमें तेरी ही—स्वर लहरी ? दूर क्षितिज से गा उठती है, कोई मधुर मेध-मल्हार, तब मेरा मन थिरक उठता ...है...और छा जाता है कोई जादू सा मेरे सूखे प्राणों में वीणा की झंकार लिये हुए दूर तू ही खिल-खिलाता है... किसी बच्चे की हंसी बन कर झिलमिलाता है। और खुल जाते है सब कपाट ह्रदय के, श्रद्धा का अंकुरित होता है बीज कोई और दूर आ रही होती है, मधुमास की सुवास...
जब बरसता है...माधुर्य तुम्हारा छलक़ता है भर-भर प्याला हमारा तब झूम उठता है उपवन का पोर-पोर, गाने लगते है कंठ-कोकिला के ओर-छोर ! पर होती है उनमें तेरी ही—स्वर लहरी ? दूर क्षितिज से गा उठती है, कोई मधुर मेध-मल्हार, तब मेरा मन थिरक उठता ...है...और छा जाता है कोई जादू सा मेरे सूखे प्राणों में वीणा की झंकार लिये हुए दूर तू ही खिल-खिलाता है... किसी बच्चे की हंसी बन कर झिलमिलाता है। और खुल जाते है सब कपाट ह्रदय के, श्रद्धा का अंकुरित होता है बीज कोई और दूर आ रही होती है, मधुमास की सुवास...
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