Tuesday 15 May 2012

बेबसी आँसू की कैसी.....




बेबसी आँसू की कैसी...
क़ैद हो जाए.. पलकों तक आकर..!
बाहर ठेले... दिल का सैलाब,
निकले तो... शर्मिंदा हो प्यार...!
पाँव की बेड़ी... तस्वीर-ए-यार.... !
कशमकश उसकी ये कैसी....
बेकल खामोशी ...ढाए क़हर...!
छुपने को... चिलमन के पीछे बेताब..,
इज़हार भी... हो जाए लाचार...!
तक़दीर उसकी ये कैसी...
बन जाए शबनम...प्यार का गौहर..!
दुशमन-ए-जाँ....अमानत-ए-यार....!!!

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर रचना अनिता जी.
    बरस कर बीत गये कई सावन,
    मौसम ने बदले कितने मिजाज़.
    लेकिन इन पथरायी आँखों से,
    अब तक तेरी यादों के सावन बरसते हैं.

    ReplyDelete