बेबसी आँसू की कैसी.....
बेबसी आँसू की कैसी...
क़ैद हो जाए.. पलकों तक आकर..!
बाहर ठेले... दिल का सैलाब,
निकले तो... शर्मिंदा हो प्यार...!
पाँव की बेड़ी... तस्वीर-ए-यार.... !
कशमकश उसकी ये कैसी....
बेकल खामोशी ...ढाए क़हर...!
छुपने को... चिलमन के पीछे बेताब..,
इज़हार भी... हो जाए लाचार...!
तक़दीर उसकी ये कैसी...
बन जाए शबनम...प्यार का गौहर..!
दुशमन-ए-जाँ....अमानत-ए-यार....!!!
बहुत सुन्दर रचना अनिता जी.
ReplyDeleteबरस कर बीत गये कई सावन,
मौसम ने बदले कितने मिजाज़.
लेकिन इन पथरायी आँखों से,
अब तक तेरी यादों के सावन बरसते हैं.