Monday 27 August 2012
~* भीगा रिश्ता...जलते जल में...*~
आँखों से बहता है जब जल... भीगे आँखें, सुलगे मन ,
जैसे सुलगे गीली लकड़ी.. होती धुआँ-धुआँ.. दिन रैन !
किस क़दर जलता है जल...ये निर्झर बहता जल ही जाने...,
झरता है जब झर झर अंतस...जलता जाता है ये जीवन..!
नदिया के दो छोर बने हम...संग चलें...पर मिल न पाएँ...!
हम दोनों के बीच खड़ा पुल.....आधा जल में...आधा जलता..,
न सजल को आँच मिले.....न जलते की ही प्यास बुझे...!
क्यूँ भीगे हम झरते जल में...जला जला के अपना रिश्ता....
याद रहे क्यूँ छोर नदी के... क्यूँ याद नहीं गहराई उसकी...?
दूर चाँद नदिया से जितना ... उतना उसके भीतर पैठा...
दो छोरों का भीगा रिश्ता....जल में जलते चाँद सा बैठा...!
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दूर चाँद नदिया से जितना ... उतना उसके भीतर पैठा...
ReplyDeleteदो छोरों का भीगा रिश्ता....जल में जलते चाँद सा बैठा
प्रभावी रचना।
Shri. mahendra verma ji....रचना पसंद करने का बहुत बहुत धन्यवाद !
Deleteजलता जाता है ये जीवन..सुन्दर रचना..बधाइयाँ
ReplyDeleteसाकेत शर्मा जी ....बहुत बहुत धन्यवाद !
Deleteबहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
शुक्रिया...यशवंत !
Deleteदो किनारे न मिलते हुवे भी जुड़े रहते हैं एक सेतू से ... और जुड़े रहते हैं जीवन भर .... एहसास लिए रचना ...
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया...दिगम्बर नासवा जी !
Deleteबहुत ही बेहतरीन रचना......
ReplyDeleteDr. Varsha Singh ji....तहे दिल से आपका शुक्रिया !:-)
Deleteअच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
महेन्द्र श्रीवास्तव जी...तहे दिल से आपका शुक्रिया !:-)
Deleteये शब्द मन भिगोने में कामयाब हैं ...आप अच्छा लिखती हैं !
ReplyDeleteसतीश सक्सेना जी... रचना पसंद करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया !:-)
Deleteनदिया के दो छोर बने हम...संग चलें...पर मिल न पाएँ...!
ReplyDeleteहम दोनों के बीच खड़ा पुल.....आधा जल में...आधा जलता..,
कल कल प्रवाहित होती सुंदर रचना, वाह !!!!!
अरुण कुमार निगम जी.... सराहने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद !:-)
Delete
ReplyDeleteयाद रहे क्यूँ छोर नदी के... क्यूँ याद नहीं गहराई उसकी...?
behtareen anita jii..bahut shukriya.
बहुत बहुत धन्यवाद ... hariz ji !:-)
DeleteBahut hi sundar abhivyakti Anita ji....
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद... Sanjiv Vaidya ji !:-)
Deleteकिस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
ReplyDeleteतहे दिल से आपका शुक्रिया संजय भास्कर जी ! :)
Deleteदूर चाँद नदिया से जितना ... उतना उसके भीतर पैठा...
ReplyDeleteदो छोरों का भीगा रिश्ता....जल में जलते चाँद सा बैठा...!
चाँद के बिम्ब का बहुत सुंदर प्रयोग .... सच ही जब नैन झरते हैं तो मन सुलगता है .... बहुत सुंदर प्रस्तुति
बहुत बहुत धन्यवाद... संगीता जी ! आपके प्रोत्साहन का दिल से आभार !:-)
Delete~सादर !
वाह...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteआपके प्रोत्साहन का तहे दिल से धन्यवाद...नीरज सर !:)
Delete~सादर !
कविता बहुत अच्छी लगी। मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
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