बूँदों की झड़ी
पिरो लाती है संग
यादों की लड़ी।
बीते वो दिन–
जब भीगे थे संग
भीगा था मन।
जब भीगे थे संग
भीगा था मन।
ओ बूँदो! सुनो!
छेड़ो न वही धुन
होऊँ मगन।
छेड़ो न वही धुन
होऊँ मगन।
यादों में ढूँढ़ूँ
टिप-टिप बूँदों का
सुरीला गीत।
टिप-टिप बूँदों का
सुरीला गीत।
वो बीते पल
सहेजे जो आँखों ने
बूँदों में ढले।
सहेजे जो आँखों ने
बूँदों में ढले।
~अनिता ललित
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "नाम में क्या रखा है!? “ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteहार्दिक आभार !
Deleteबूंदों की झड़ी और यादों की लड़ी... बहुत खूब पिरोई है!
ReplyDeleteआभार !
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (04-09-2016) को "आदमी बना रहा है मिसाइल" (चर्चा अंक-2455) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार सर !
Deleteबूंदों की सुन्दर लड़ी पिरोई है हाइकू के रूप में ...
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