Wednesday, 8 March 2017

~** मैं एक स्त्री हूँ! **~

भावनाओं में सिमटी ;
भावनाओं से लिपटी ;
भावनाओं की गीली मिट्टी से
गुँधी हुई हूँ !
भावनाओं में ही -
बसती हूँ, बहती हूँ;
जीती हूँ, मरती हूँ;
बनती हूँ, बिखरती हूँ;
भीगती हूँ, सूखती हूँ !
कभी भीगने की आस में
सूखती जाती हूँ;
कभी सूखने की आस में
सीलती जाती हूँ !
भावनाओं की नमी ने ही
जोड़ रखा है मुझे -
तुमसे, अपने आप से -
हरेक शय से !
भावनाएँ न हों –
तो तुम कौन और मैं कौन ?
तुम कहते हो -
मैं पागल हूँ !
मैं कहती हूँ -
मैं एक स्त्री हूँ  !!!

         ~ अनिता ललित 


11 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  2. भावनाओं की नमी ने ही जोड़ रखा है हमें. तुमसे, आपसे।।।

    वाह, क्या बात कही आपने।

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  3. भावनाओं की गीली मिट्टी से
    गुँधी हुई हूँ !
    भावनाओं में ही -
    बसती हूँ, बहती हूँ;

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  4. बहुत सुन्दर रचना......

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  5. This comment has been removed by the author.

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  6. भावनाओं की गीली मिट्टी से
    गुँधी हुई हूँ !
    भावनाओं में ही -
    बसती हूँ, बहती हूँ;

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  7. सुन्दर रचना

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  8. बहुत ख़ूब ... नारी हाई तो प्रतीक है भावनाओं की ...गहरे भाव ...सुंदर रचना ...

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  9. बहुत खूब अनीता जी... नारी के अलावा कौन समझ सका है भावनाओ को...

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