भावनाओं में सिमटी ;
भावनाओं से लिपटी ;
भावनाओं की गीली मिट्टी से
गुँधी हुई हूँ !
भावनाओं में ही -
बसती हूँ, बहती हूँ;
जीती हूँ, मरती हूँ;
बनती हूँ, बिखरती हूँ;
भीगती हूँ, सूखती हूँ !
कभी भीगने की आस में
सूखती जाती हूँ;
कभी सूखने की आस में
सीलती जाती हूँ !
भावनाओं की नमी ने ही
जोड़ रखा है मुझे -
तुमसे, अपने आप से -
हरेक शय से !
भावनाएँ न हों –
तो तुम कौन और मैं कौन ?
तुम कहते हो -
मैं पागल हूँ !
मैं कहती हूँ -
मैं एक स्त्री हूँ !!!
~ अनिता ललित
भावनाओं से लिपटी ;
भावनाओं की गीली मिट्टी से
गुँधी हुई हूँ !
भावनाओं में ही -
बसती हूँ, बहती हूँ;
जीती हूँ, मरती हूँ;
बनती हूँ, बिखरती हूँ;
भीगती हूँ, सूखती हूँ !
कभी भीगने की आस में
सूखती जाती हूँ;
कभी सूखने की आस में
सीलती जाती हूँ !
भावनाओं की नमी ने ही
जोड़ रखा है मुझे -
तुमसे, अपने आप से -
हरेक शय से !
भावनाएँ न हों –
तो तुम कौन और मैं कौन ?
तुम कहते हो -
मैं पागल हूँ !
मैं कहती हूँ -
मैं एक स्त्री हूँ !!!
~ अनिता ललित
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteभावनाओं की नमी ने ही जोड़ रखा है हमें. तुमसे, आपसे।।।
ReplyDeleteवाह, क्या बात कही आपने।
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteभावनाओं की गीली मिट्टी से
ReplyDeleteगुँधी हुई हूँ !
भावनाओं में ही -
बसती हूँ, बहती हूँ;
बहुत सुन्दर रचना......
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteभावनाओं की गीली मिट्टी से
ReplyDeleteगुँधी हुई हूँ !
भावनाओं में ही -
बसती हूँ, बहती हूँ;
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत ख़ूब ... नारी हाई तो प्रतीक है भावनाओं की ...गहरे भाव ...सुंदर रचना ...
ReplyDeleteबहुत खूब अनीता जी... नारी के अलावा कौन समझ सका है भावनाओ को...
ReplyDeleteThis is really good. Nice post...
ReplyDelete