रिश्तों की बोली लगे, कैसा जग का खेल
मतलब से मिलते गले, भूले मन का मेल।।
फूल कहे 'ना त्यागिये!', ये काँटों का हार
अपनों का उपहार यह, इस जीवन का सार।।
अपनों ने कुछ यूँ छला, छीना प्रेम-उजास
अश्कों में बहने लगी, मन की हर इक आस।।
सुख और दुख के वास्ते, क्या अवसर क्या मोड़
अपने ही हैं बाँधते, अपने देते तोड़।।
मन पंछी उड़ता गगन, बाँध सकेगा कौन
कोलाहल मिटता सदा, मुखरित हो जब मौन।।
घायल मन, साँसें विकल, मिलता दर्द अपार
आँसू नयन समाए न, यही प्रीत-उपहार।।
बेटी शीतल चाँदनी, है ईश्वर का नूर
कोमल मन, निश्छल हँसी, करे अँधेरा दूर।।
दिल में मीठी याद ले, चलती हूँ दिन-रात
चुभते काँटों की कसक, अब लगती सौग़ात।।
मतलब से मिलते गले, भूले मन का मेल।।
फूल कहे 'ना त्यागिये!', ये काँटों का हार
अपनों का उपहार यह, इस जीवन का सार।।
अपनों ने कुछ यूँ छला, छीना प्रेम-उजास
अश्कों में बहने लगी, मन की हर इक आस।।
सुख और दुख के वास्ते, क्या अवसर क्या मोड़
अपने ही हैं बाँधते, अपने देते तोड़।।
मन पंछी उड़ता गगन, बाँध सकेगा कौन
कोलाहल मिटता सदा, मुखरित हो जब मौन।।
घायल मन, साँसें विकल, मिलता दर्द अपार
आँसू नयन समाए न, यही प्रीत-उपहार।।
बेटी शीतल चाँदनी, है ईश्वर का नूर
कोमल मन, निश्छल हँसी, करे अँधेरा दूर।।
दिल में मीठी याद ले, चलती हूँ दिन-रात
चुभते काँटों की कसक, अब लगती सौग़ात।।
बहुत बढ़िया लिखा अनीता जी !!
ReplyDeleteसुंदरता से समेट लिया जीवन का सार ।
ReplyDeleteसुंदरता से समेट लिया जीवन का सार ।
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