अक्सर हम मन में कुछ सोचते हैं और फिर खुद से एक वादा कर बैठते हैं...
'उस सोच को पूरा करने का वादा...!'
मैनें भी कुछ दिनों पहले खुद से दिल ही दिल में एक वादा कर लिया था... जो अपनी पिछली पोस्ट पर मैनें ज़ाहिर भी किया था...!
मुझे बहुत खुशी है... २५ जनवरी २०१३ को मैं खुद से किए उस वादे को पूरा कर आई...! :-)
मैं उसी दिन अपने इस दिल के सुक़ून को यहाँ साझा करना चाहती थी...
मगर उसके अगले दिन सवेरे ही मुझे आगरा के लिए निकलना था इसलिए समय नहीं मिल पाया!
२५ जनवरी को, मैं दोबारा माल गयी...
कुछ मिनट तक उसके गेट पर खड़ी रही...
फिर दूर से ही गुब्बारों की झलक मिली...
वही नज़ारा था.... एक बच्चा हर गाड़ी के पास जाकर वापस लौट रहा था..!
मैनें उसे आवाज़ लगाई...वो भाग कर मेरे पास आया! मेरे पति उस समय गाड़ी निकाल रहे थे!
मैनें उससे उसका नाम पूछा! उसने बताया, ''अरबाज़'' ! मगर ये लड़का वो नहीं था जिसे मैनें उस दिन देखा था!
फिर मैनें उससे उसके बारे में पूछा और ये भी पूछा कि ये यहाँ कोई और भी लड़का है, जो गुब्बारे बेचता है!
पहले तो उसने मुझे टालने की कोशिश की ये कहकर कि
"आपको कितने गुब्बारे चाहिए ? वो मेरा भाई है,मगर आज जल्दी चला गया क्योंकि उसकी बिक्री नहीं हुई!"
अपने बारे में उसने बताया कि वो स्कूल जाता है और शाम को ये काम करता है!
बटलर पैलस कॉलोनी में रहता है! घर में अम्मी-अब्बा हैं, और भी भाई-बहन हैं!
मैनें उससे ये भी पूछा कि इस काम के लिए उसके साथ कोई ज़बरदस्ती तो नहीं करता?
उसने कहा, "नहीं''!
बार-बार वो घूम कर एक ही बात बोल रहा था..
"आपको कितने गुब्बारे चाहिए ? आप बताइए ना!"
इतनी ही देर में एक और लड़का आ गया...उसको मैनें पहचान लिया...
वो वही था, जिसे मैनें उस रात देखा था..!
फिर मैं उसकी तरफ मुखातिब हुई !
मगर एक बात मैनें देखी.. मैं सवाल उससे कर रही थी मगर जवाब उसके पहले 'अरबाज़' दे रहा था!
मैनें उस लड़के से जब नाम पूछा, अरबाज़ बोल उठा "सलीम" !
इस पर वो लड़का बोला, " सलीम नहीं है हमारा नाम, 'हैदर अली' है!"
मैनें पूछा, तुम स्कूल जाते हो ? फिर अरबाज़ बोल उठा "अभी नहीं!"
मैनें कहा, "उसे बोलने दो ना!"
इसपर हैदर बोला , "नहीं! जनवरी से जाएँगे! मैडम ने कहा है, तभी नाम लिखा जाएगा!"
पूछने पर पता लगा, वो अरबाज़ की खाला का लड़का है!
मैनें उससे उसके माँ-बाप के बारे में पूछा...वो बोला, "यहाँ नहीं रहते, गाँव में रहते हैं !"
वो दोनों बार-बार एक ही सवाल पूछ रहे थे "आपको कितने गुब्बारे खरीदने हैं ?"
मैनें पूछा "कितने के हैं?" हो सकता है, मैं सारे ले लूँ...!"
इसपर दोनों को विश्वास नहीं हुआ ! शायद सोचने लगे कि या तो मैं उनका समय बर्बाद कर रही हूँ,
या फिर कोई बेवक़ूफ़ हूँ !
फिर भी... दोनों अपने-अपने गुब्बारों का 'दो सौ/ ढाई सौ ...' हिसाब लगाने लगे !
इतने में मेरे पति भी वहीं आ गये!
उन्होने पाँच सौ का नोट उन्हें देकर कहा, "ये रख लो और सारे गुब्बारे दे दो!"
इस पर वो दोनों मोल-भाव करने लगे ! पक्के बिसनेस मैन लग रहे थे वो दोनों!
मैने उनसे कहा, "देखो, मैं तुम्हारे लिए कुछ कपड़े और स्वेटर भी लाई हूँ और सारे गुब्बारे भी ले रही हूँ,
मगर तुम लोग इन पैसों का ग़लत इस्तेमाल मत करना और अच्छे से मन लगाकर पढ़ाई करना !"
ये कहकर मैनें उनके साथ एक फोटो भी खिंचाई!
और उनके सारे गुब्बारे गाड़ी में भर लिए!
चलते-फिरते कुछ लोग रुककर हमारी बातें सुनने लगे थे और मुस्कुरा रहे थे!
शायद उन्हें भी लग रहा होगा...कोई पागल है,जो इतनी खुशी से सारे गुब्बारे लिए चली जा रही है...!
मगर वापस आते वक़्त मेरे दिल में फिर कुछ बातें उठ रही थी...
हैदर इतना कम क्यों बोल रहा था! हर जवाब के लिए वो सोच क्यों रहा था ?
या तो वो अभी इस काम में नया नया आया था या फिर कुछ और.......
मगर फिर मैनें सोचा, किसी दिन ज़रा आराम से जाऊँगी, तब उससे बात कर देखूँगी !
इसके अलावा मैं ये भी सोच रही थी... कि वक़्त कैसे कच्ची उम्र में भी दिमाग़ को पक्का कर देता है...!
मैं आज भी गुब्बारों का या किसी भी चीज़ का मोल-भाव नहीं कर पाती...
मगर अरबाज़! वो फटाफट कैसे अपने नफ़े-नुकसान का हिसाब लगा रहा था!
इतना तेज़ दिमाग़... काश! किसी सही जगह लग जाए तो उसे कितना लाभ हो!
उसकी तो ज़िंदगी संवर सकती है! मगर सब-कुछ मेरे सोचने तो होगा नहीं...!
मगर फिर भी! मैं सच में बहुत खुश थी और आज भी हूँ !
मैनें अपने दिल से किया हुआ एक वादा पूरा कर लिया था! :-)
क्या बात
ReplyDeleteबढिया
सराहनीय एवं अनुकरणीय है आपका कदम....शुभकामनाएं
ReplyDeleteआपने बहुत अच्छा किया लेकिन मेरे मन में एक बात आ रही है -कहीं उन दोनों से काम लेनेवाला कोई गुंडे टाइप का आदमी न हो जो उनकी सारी कमाई वसूल कर लेता हो.सामान्यतःऐसे लड़के इतने झूठे और तेज़ नहीं होते.
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतिभा जी !:-)
Deleteमुझे भी और मेरे पति व परिवार के कुछ सदस्यों को भी ऐसा ही संदेह हो रहा था ... मगर क्या करें ? जानने की कोशिश की पर उन बच्चों ने कुछ नहीं बताया ! इसलिए मैनें सोचा, इससे पहले की सर्दियाँ ही चली जाएँ उन्हें कुछ गरम कपडे दे आऊँ और उनके गुब्बारे खरीदकर उनकी कुछ मदद कर दूँ ... इससे कम से कम मुझे तो खुद से ये शिकायत नहीं रह जायेगी कि मैनें अपना काम नहीं किया .... ! बाकी कुछ चीज़ें ऊपरवाले के हाथ में ही होतीं हैं ....
वैसे मैं फिर जब भी जाऊँगी , उन बच्चों से ज़रूर मिलूँगी ... फिर देखा जाएगा .... :-)
~सादर!!!
इश्वर करे आप ऐसे ही दिन दुखियों की सेवा करती रहें आप सदा खुश रहें .याद रखें दान सुपात्र को हो अन्यथा अनजाना अपात्र दान दुःख दे सकता है .
ReplyDeleteयही धर्म है!
ReplyDeleteअच्छी रचना!
:-)
ReplyDeleteछोटी छोटी बातों में बड़ी बड़ी खुशियाँ.....
सस्नेह
अनु
मेरी रचना को स्थान देने का हार्दिक आभार संगीता दीदी !
ReplyDelete~सादर!!!
मुझे प्रोत्साहन देने के लिए आप सभी का हार्दिक धन्यवाद ! :-)
ReplyDelete~सादर!!!
बहुत नेक और सराहनीय कार्य किया. अच्छी भावना से किया गया कार्य सुकून देता है. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
behatareen"bund bund se sagar bhar do,lamhon ko tum sadiyan likh do,nek kam ki khwhis rakho,andhiyaron me deep jala do..."
ReplyDeleteये छोटी छोटी खुशियाँ ज़िन्दगी की एक बड़ी धरोहर बन जाती हैं हमारी एक सोच को धक्का देते हुए हमसे आगे भी निकल जाती हैं .बढ़िया प्रेरक प्रसंग उम्र से पहले बड़े होते जिम्मेवार होते बच्चों का .
ReplyDeleteइस अनुभव को संजोकर अच्छा किया .... गुब्बारे तो प्यारे हैं ही,दोनों बिजनेसमैन बहुत प्यारे हैं
ReplyDeleteआपकी लेखनी कमाल की है सलाम मेम साहब |
ReplyDeleteसराहनीय और प्रेरक कदम..बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत अच्छी सोच...सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत नेक काम किया आपने ! आपकी संवेदनशीलता और परदुखकातर ह्रदय की कोमलता को सलाम अनीता जी ! आपने उन दो बच्चों को जो खुशी उस दिन दी वह अनमोल धरोहर बन जीवन भर उनके साथ रहेगी ! इतनी सुन्दर सोच के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ... आपकी जैसी सोच सबकी हो तो क्या बात है...
ReplyDeleteखुद से किया वादा निभा कर काफी संतुष्टि मिलती है ... प्रेरक ।
ReplyDelete:)
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी संस्मरण।
ReplyDeleteबालमन की धुंधली गलियों में कुछ ढुंढने का प्रयास अच्छा लगा।
mann ke bhavo ko sundar shado me vyakt kiya aapne ..
ReplyDeletehttp://ehsaasmere.blogspot.in/
आप सभी की सराहना, प्रोत्साहन और शुभकामनाएँ सिर आँखों पर !
ReplyDeleteतहे दिल से धन्यवाद व आभार!:-)
~सादर!!!
ये छोटे छोटे सुख बे -इन्तिहा ख़ुशी देते हैं जीवन में .हर नन्ने गुब्बारे वाले के जीवन में एक कहानी है पढ़ना वह भी चाहता है .मैम इस पोस्ट पर पहले भी टिप्पणी की है .स्पेम बोक्स देखें .
ReplyDeleteये छोटे छोटे सुख बे -इन्तिहा ख़ुशी देते हैं जीवन में .हर नन्ने गुब्बारे वाले के जीवन में एक कहानी है पढ़ना वह भी चाहता है .मैम इस पोस्ट पर पहले भी टिप्पणी की है .स्पेम बोक्स देखें .
ReplyDeleteमगर फिर भी! मैं सच में बहुत खुश थी और आज भी हूँ !
ReplyDeleteमैनें अपने दिल से किया हुआ एक वादा पूरा कर लिया था! :-)
...बस यही सबसे ज्यादा ज़रूरी है ...वरना ज़िन्दगी तो यूहीं चलती रहती है
वाह अनिता जी गुब्बारों के साथ आप तो बड़ी अच्छी लग रहीं हैं ....:))
ReplyDeleteइतने छोटे बच्चे गुब्बारे बेच रहे थे ....?
मौक़ा मिले तो फिर जाइयेगा पता करने ....
:)) शुक्रिया... हरकीरत जी ! जी ज़रूर जाऊँगी !
Delete~सादर!!!
शायद सब इसी तरह से सोचे तो कोई बच्चा अनपढ़ नहीं हो. सुंदर प्रयत्न की परिणिति भी सार्थक होगी. बधाई अनीता जी.
ReplyDeleteबेहद सराहनीय ...
ReplyDeleteदिल से किये हुये वादे को पूरा कर पाने का जज्बा
हर बार यूँ ही विजयी हो
शुभकामनाएं
काश इन बच्चों की स्कूल फीस के लिए कोई व्यवस्था हो .सुभ शाम गुब्बारा बेचने के बाद ये पढ़ भी सकें दोपहर की शिफ्ट में .शुक्रिया आपकी द्रुत टिपण्णी के लिए .
ReplyDeleteप्रोत्साहन के लिए आप सभी का हार्दिक आभार.... :-)
ReplyDelete~सादर!!!
हम सबकी संजीदगी बची रहे।
ReplyDeleteप्राणी मात्र के लिए इसी तरह अपने जीवन को लगाये रहिये ! किसी ने कहा है ,अगर सामर्थ्य होते हुए भी हम किसी अभावग्रस्त की मदद न करें तो हमारी सामर्थ्य कुछ समय में समाप्त हो जाती है .....शुभ कामना !
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