Monday 1 April 2013

**~अक्सर....~**


१.
रिश्तों के गहरे मंथन में
उलझी जब भी मैं धारों में ...
घुट-घुट गयीं साँसें मेरी,
छलकीं.... अश्कों की कुछ बूँदें..
और नीलकंठ बन गयी मैं ...
अपनों की दुनिया में .... अक्सर .....

२.

जीवन के गहरे अंधेरों को..
ना मिटा सके जब... चँदा-तारे भी...
बनकर मशाल खुद जली मैं...
और राहें अपनी ढूंढीं मैनें... अक्सर.....

३.
कई बार...अपने आँगन में...
जब दीया जलाया है मैनें,
संग उसके....खुद को भी जलाया है मैनें...
और खुद ही... अपनी राख बटोरी मैनें....अक्सर...

४.
तमन्नाओं के सेहरा में भटकते हुए...
ऐसा भी हुआ कई बार....
थक कर जब भी बैठे हम.....,
खुद आप ही...  गंगा-जमुना बने हम.....अक्सर...

47 comments:

  1. होता है यूँ ही अक्सर.....
    ज़िन्दगी यूँ ही जी जाती है अक्सर....
    बहुत ही सुन्दर अनिता...

    अनु

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  2. बेहतरीन ...तीसरी रचना बहुत पसंद आई

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  3. ४.
    तमन्नाओं के सेहरा में भटकते हुए...
    ऐसा भी हुआ कई बार....
    थक कर जब भी बैठे हम.....,
    खुद आप ही... गंगा-जमुना बने हम.....अक्सर...
    बहुत सशक्त सकारात्मक अंत लिए है यह भावात्मक अभिव्यक्ति जीवन में संतुलन और समझौते का सुख लिए .

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  4. आभार यशोदा जी...
    सादर!!!

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  5. आदरणीय वीरेंद्र सर जी, महेंद्र जी, प्रिय मोनिका जी व अनु ... आप सभी के प्रोत्साहन का हार्दिक धन्यवाद व आभार.... :-)
    ~सादर!!!

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  6. अक्सर बनना पड़ता है शिव खुद ही और जलना पड़ता है मशाल बन कर .... सभी क्षणिकाएँ बेहतरीन

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  7. प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद...संगीता दीदी!:-)
    ~सादर!!!

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  8. बेहतरीन रचना , तमन्नाओं के सेहरा में भटकते हुए...
    ऐसा भी हुआ कई बार....
    थक कर जब भी बैठे हम.....,
    खुद आप ही... गंगा-जमुना बने हम.....अक्सर...

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  9. जीवन के गहरे अंधेरों को..
    ना मिटा सके जब... चँदा-तारे भी...
    बनकर मशाल खुद जली मैं...
    और राहें अपनी ढूंढीं मैनें... अक्सर.....

    bahut khoob ....!!

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद... हीर जी!:-)
      ~सादर!!!

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  10. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    इंजीनियर प्रदीप कुमार साहनी अभी कुछ दिनों के लिए व्यस्त है। इसलिए आज मेरी पसंद के लिंकों में आपका लिंक भी चर्चा मंच पर सम्मिलित किया जा रहा है और आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (03-04-2013) के “शून्य में संसार है” (चर्चा मंच-1203) पर भी होगी!
    सूचनार्थ...सादर..!

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  11. वाह आपने तो नारी मन का आईना दिखा दिया बहुत खूब ...

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    1. हौसला-अफज़ाई का बहुत-बहुत आभार... पल्लवी जी!:-)
      ~सादर!!!

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  12. दीवाना न समझे कोई मुझको ...
    आजकल मैं अपने आप से बात करता हूँ "अक्सर"
    खुबसूरत अहसास !

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  13. पलकों में सजे अश्कों के आशियाने में हम खुद ही डूब जाते हैं अक्सर ...।

    बहुत सुन्दर परन्तु भावुक करती पंक्तियाँ ।

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  14. अक्सर अपनी ही सोच को लेकर चलने की कला ही ...कवि़त का रूप लेती है

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  15. रिश्तों के गहरे मंथन में
    उलझी जब भी मैं धारों में ...
    घुट-घुट गयीं साँसें मेरी,
    छलकीं.... अश्कों की कुछ बूँदें..
    और नीलकंठ बन गयी मैं ...
    अपनों की दुनिया में .... अक्सर .....

    बहुत प्यारी पंक्ति हैं अनीता जी ...गरल पान करना कवि के ही बूते की बात है... आपका लेखन सदा शिष्ट, सौम्य और दर्शन लिए होता है..बधाई और मंगल कामनाएँ..
    सादर/सप्रेम

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    1. निःशब्द हैं हम... सारिका जी!
      हार्दिक धन्यवाद व आभार!:-)
      ~सादर!!!

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    2. आपकी इस गहन प्रतिक्रिया के लिए आपका ह्रदय से बहुत-बहुत आभार! आपका यह शिष्ट, सौम्य और दर्शन लिए अंदाज देखकर आपसे मिलने का मन होता है...इच्छा है की कभी सम्मुख रह के आपको सुना जाए...
      मंगल कामनाओं सहित,
      सादर/सप्रेम

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    3. आपकी बधाई के लिए हार्दिक आभार!
      नवरात्रे पर तमाम हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
      ~सादर!!!
      सारिका मुकेश

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  16. aap ka nazariya hi kavita hai,

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  17. थक कर जब भी बैठे हम.....,
    खुद आप ही... गंगा-जमुना बने हम.....अक्सर
    बेहतरीन रचना

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  18. जीवन के गहरे अंधेरों को..
    ना मिटा सके जब... चँदा-तारे भी...
    बनकर मशाल खुद जली मैं...
    और राहें अपनी ढूंढीं मैनें... अक्सर.....

    अपनी राहे तो खुद ही बनानी हती हैं ... बेहतरीन लिखा है ...

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  19. रिश्तों के गहरे मंथन में
    उलझी जब भी मैं धारों में ...
    घुट-घुट गयीं साँसें मेरी,
    छलकीं.... अश्कों की कुछ बूँदें..
    और नीलकंठ बन गयी मैं ...
    अपनों की दुनिया में .... अक्सर .....
    रचना का प्रारम्भ आपने जिस सुंदरता से आपने किया, पूरी रचना में उसका निर्वहन बनाए रखा। भावाभिव्यक्ति बहुत सुंदर है। आपको बधाई।

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  20. सराहने तथा प्रोत्साहन देने के लिए... आप सभी गुणी जनों का हार्दिक धन्यवाद व आभार!:-)
    ~सादर!!!

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  21. कई बार...अपने आँगन में...
    जब दीया जलाया है मैनें,
    संग उसके....खुद को भी जलाया है मैनें...
    और खुद ही... अपनी राख बटोरी मैनें....अक्सर...

    sundar aur prabhavshali bhavon se sanklit sb ke sb lajbab hain anita ji .....badhai sweekaren

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  22. आत्मा विश्वास जगाते भाव...

    जीवन के गहरे अंधेरों को..
    ना मिटा सके जब... चँदा-तारे भी...
    बनकर मशाल खुद जली मैं...
    और राहें अपनी ढूंढीं मैनें... अक्सर.....

    बहुत भावप्रवण, बधाई.

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  23. वाह नीतू तुम्हारी सबसे बेहतरीन रचना लगी .....बहुत बहुत बहुत सुन्दर .....!!!!

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  24. वाह बेहद भावपूर्ण गहन अभिव्यक्ति अनीता जी बधाई बहुत बहुत बढ़िया लाजवाब

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  25. सुन्दर ...

    एक पग तुम्हारे और बढे ....
    एक दिया हमारे अन्दर जला ...
    नीलकंठ-पन जीया गया ...
    मन सीया गया ...
    तुम गाते रहे
    मैं सुनती रही
    गंगा-जमुना बहती रही ...
    मैं स्नात होती रही ....

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  26. जीवन के गहरे अंधेरों को..
    ना मिटा सके जब... चँदा-तारे भी...
    बनकर मशाल खुद जली मैं...
    और राहें अपनी ढूंढीं मैनें... अक्सर.....

    संवेदनशील प्रस्तुति.

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  27. बहुत सुंदर रचना , शुभकामनाये ,

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  28. जीवन के गहरे अंधेरों को..
    ना मिटा सके जब... चँदा-तारे भी...
    बनकर मशाल खुद जली मैं...
    और राहें अपनी ढूंढीं मैनें... अक्सर.....
    बहुत ही उम्दा अभिव्यक्ति |आभार अनीता जी

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  29. रिश्तों के गहरे मंथन में
    उलझी जब भी मैं धारों में ...
    घुट-घुट गयीं साँसें मेरी,
    छलकीं.... अश्कों की कुछ बूँदें..
    और नीलकंठ बन गयी मैं ...
    अपनों की दुनिया में .... अक्सर .....

    ...बहुत मर्मस्पर्शी और सशक्त अभिव्यक्ति...

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  30. तमस के बाद ही
    सत् का प्रकाश
    झलकता है,अक्सर!

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  31. बहुत सुन्दर लेखन | पढ़कर आनंद आया | आशा है आप अपने लेखन से ऐसे ही हमे कृतार्थ करते रहेंगे | आभार


    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  32. सराहना तथा प्रोत्साहन के लिए आप सभी हार्दिक धन्यवाद व आभार!:-)
    ~सादर!!!

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  33. सुबह सुबह मन प्रसन्न हुआ रचना पढ़कर !

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  34. बहुत खूब ...भावपूर्ण कविता....

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