दिखाई तो देती है, पर आसाँ नहीं ये ज़िंदगी,
हर मुस्कान में छिपे आँसू तमाम मिले !
थामा था हाथ ये सोचकर , मिलेगी मंज़िल,
छाँव में संदल की छालों के मुक़ाम मिले !
हर इम्तिहाँ में ख़ौफ़, था हौसला भी संग,
ईनाम सारे मगर तंज़ से लहूलुहान मिले !
इस ज़िंदगी पर अब तो, है मौत भी शरमाई,
अपनों की मेहर में छिपे हर दिन ज़हर तमाम मिले...!
ज़िन्दगी की झरबेरियों से रिसती चुभन हर शैर में मौजूद है .उम्दा गजल और बिम्ब .रूपकात्मक खूब सूरती लिए है हर शैर ,एक अलग रूपक लिए हैं .
ReplyDeleteथामा था हाथ ये सोचकर , मिलेगी मंज़िल,
छाँव में संदल की छालों के मुक़ाम मिले !
थामा था हाथ ये सोचकर,
ReplyDeleteमिलेगी मंज़िल,
पर क्या.....
अपनों की मेहर में छिपे
हर दिन
ज़हर तमाम मिले...!
एक मार्मिक रचना
सुन्दर प्रस्तुति |
ReplyDeleteबढ़िया विषय |
शुभकामनायें आदरेया ||
जीवन तो हर रंग लिए है सुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeleteसच्ची अभिव्यक्ति. सारे शेर अच्छे लगे.
ReplyDeleteज़िन्दगी कभी आसान नहीं थी,अब मौत भी कष्टदायक हो गई है
ReplyDeleteजीवन इतना आसान तभी तो नहीं होता ...
ReplyDeleteभावमय ...
जिंदगी को आसान बनाने की जद्दोजहद में ही जिंदगी जाती है |
ReplyDeleteऔर जिंदगी फिर भी कभी आसान नहीं हो पाती |
सादर
ज़िंदगी की हकीक़त बयान की है आपने!
ReplyDeleteढ़
--
थर्टीन रेज़ोल्युशंस!!!
दिखाई तो देती है, पर आसाँ नहीं ये ज़िंदगी,
ReplyDeleteहर मुस्कान में छिपे आँसू तमाम मिले !
जिंदगी ऐसी ही है और इसी का नाम जिंदगी है.
शुभकामनायें पोंगल, मकर संक्रांति और माघ बिहू की.
जीवन की अनसुलझी गुथियों को बखूबी बयान किया आपने, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
थामा था हाथ ये सोचकर , मिलेगी मंज़िल,
ReplyDeleteछाँव में संदल की छालों के मुक़ाम मिले !
जीवन के रंगों को समेटती खुबसूरत रचना
इस ज़िंदगी पर अब तो, है मौत भी शरमाई,
ReplyDeleteअपनों की मेहर में छिपे हर दिन ज़हर तमाम मिले...!
...बहुत खूब! बहुत मर्मस्पर्शी रचना...
दिखाई तो देती है, पर आसाँ नहीं ये ज़िंदगी,
ReplyDeleteहर मुस्कान में छिपे आँसू तमाम मिले !
जिन्दी कैसी है पहेली ....
दिखाई तो देती है, पर आसाँ नहीं ये ज़िंदगी,
ReplyDeleteहर मुस्कान में छिपे आँसू तमाम मिले !
थामा था हाथ ये सोचकर , मिलेगी मंज़िल,
छाँव में संदल की छालों के मुक़ाम मिले !
बेह्तरीन अभिव्यक्ति .बहुत सुन्दर.बधाई .मज़ा आ गया!
हर इम्तिहाँ में ख़ौफ़, था हौसला भी संग,
ReplyDeleteईनाम सारे मगर तंज़ से लहूलुहान मिले !
थोड़ी सी कड़वी मगर सुन्दर ...
भावों का सुन्दर संयोजन ...
साभार !
ऐसी इच है ये ज़िन्दगी मौसम के मिजाज़ सी .कब किस करवट बैठे कोई निश्चय नहीं .आभार आपकी सद्य टिप्पणियों का .
ReplyDeleteBahut sundr Rachna...
ReplyDeletezindgi aasan kaha hoti hai ..
http://ehsaasmere.blogspot.in/
आभार आपकी सद्य टिप्पणियों का .
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा ग़ज़ल |
ReplyDeleteथामा था हाथ ये सोचकर , मिलेगी मंज़िल,
ReplyDeleteछाँव में संदल की छालों के मुक़ाम मिले !
बहुत गहरी बात कह दी....
सुन्दर रचना...
सस्नेह
अनु
sunder abhivyakti.
ReplyDeleteमेरी रचना पसंद करने व प्रोत्साहन देने का आप सभी का हार्दिक धन्यवाद !!!
ReplyDelete~सादर!!!