कल 27 जुलाई को मेरी माँ का जन्मदिन है! मेरी प्यारी माँ... प्यार और ममता की जीती जागती मूरत, बहुत ही कर्मठ, इच्छाशक्ति की एक अनूठी मिसाल हैं! जिस काम को उन्होंने किया जी लगाकर किया...और आज भी वही लगन, वही जज़्बा उनमें मौजूद है! अब बढ़ती उम्र की वजह से उनकी सेहत उनका साथ नहीं देती,मगर फिर भी, आज भी वो अपनी हिम्मत से आगे बढ़कर काम करतीं हैं! ईश्वर से मेरी आज, कल हमेशा... यही प्रार्थना है...कि हे ईश्वर! मेरी माँ का साया हमेशा मेरे सिर पर बना रहे! उनको दीर्घायु, स्वस्थ, खुशियों से भरा जीवन देना...और उनके मन में शांति और सुक़ून का सदैव वास रहे ! ~अमीन! "जन्मदिन बहुत बहुत मुबारक माँ !" माँ कैसे मनाऊँ तुम्हारा जन्मदिन... क्या दूं मैं तोहफे में तुम्हें? काश! दे पाती मैं तुम्हें... वापस तुम्हारा बचपन, नाना, नानी, मामा मौसी... फिरती जिनके संग तुम तितली बन! क्या दूं मैं तोहफे में तुम्हें...? ----------------------------------- काश! दे पाती मैं तुम्हें... उम्र की वो दहलीज़, जब थामा था पापा का तुमने हाथ, देखे तुम्हारी आँखों ने सपने हज़ार.. उन सपनों का रेशमी लिबास...! क्या दूं मैं तोहफे में तुम्हें...? ------------------------------------- काश! दे पाती मैं तुम्हें... माँ कहलाने का वो अनूठा पल... महक उठी थी जब तुम...पाकर झोली में दो फूल... एक भैया और एक मैं! पापा, तुम, भैया और मैं... हम चारों के वो सांझे लम्हे... तुम्हारे सबसे प्रिय दिन-रात! क्या दूं मैं तोहफे में तुम्हें...? ------------------------------------------ काश दे पाती मैं तुम्हें.... वो अनमोल पल.... भैया की शादी की जब मची धूम... पायल की रुनझुन में देखी अपनी छवि... दुख अपने सारे भूली सभी! क्या दूं मैं तोहफे में तुम्हें...? ---------------------------------------- काश दे पाती मैं तुम्हें... तुम्हारा वो बेजोड़ उत्साह ओ जुनूँ.... जब नये घर में खुद को वारा तुमने! रोगों को नकारा, अपनों को संभाला.. कोई शिक़न न चेहरे पर लाई कभी किसी से न माँगा कुछ भी ..! क्या दूं मैं तोहफे में तुम्हें...? --------------------------------------------- काश दे पाती मैं तुम्हें... वो निराली चमक.... जो देखी थी तुम्हारे चेहरे पर... आने पर नया मेहमान... भाभी की गोदी में! घर में बढ़ती किल्कारियों की गूँज..., संग जिनके गूँजी मेरी शहनाई की धुन..! क्या दूँ मैं तोहफे में तुम्हें...? ------------------------------------------------ काश दे पाती मैं तुम्हें... निरंतर बातों के वो पल छिन... जो बाँटे हमने....हर दिन, हर पल .. मेरी अटखेलियों से खिले....तुम्हारी ममता के आँचल तले.. पहले इसके... कि मैं होती विदा..! तुम्हारे दिल में बसी धड़कन की तरह, मेरी शादी थी तुम्हारा अनमोल सपना! क्या दूँ मैं तोहफे में तुम्हें...? ------------------------------------------- काश दे पाती मैं तुम्हें.... वो सारे सपने, वो सारे पल... जो तुमने देखे, जो संजोए तुमने..., जो हुए पूरे या रहे अधूरे ! वो हिम्मत, वो सेहत... जो तुमको कभी ना डिगा सके...अपने मक़सद से! इच्छाशक्ति की मिसाल हो तुम... अब भी तुममें है वो जज़्बा बड़ा..! पर गिरती सेहत से लाचार तुम..! दिल चाहे, मैं दूँ तोहफे में तुम्हें. ! वो तुम्हारी पहले सी सेहत, वो खिलती मुस्कान, वो चमकती आँखें, वो मन की शांति मालूम है मुझे...इससे प्यारा तुम्हें...कोई तोहफा नहीं... जब भी माँगा तुमने ईश्वर से, फैलाकर अपनी झोली... माँगी तो बस एक ही चीज़.... परिवार का सुख...और मन का सुक़ून !!!
अकड़ जाती है जब भी मेरी क़लम..बैठे बैठे, चल पड़ती है वो सैर को, यूँ ही मेरे..अंतस को टटोलने..! देखती है झाँककर मेरी आँखों में... पाती है कुछ ख्वाब...उनीन्दे से..! बैठती कुछ पल उनके साथ... छूकर उन्हें जगाती, उनके संग मुस्काती ! फिर पहुँचती..दिल के भीतर... पाकर कुछ महके हुए एहसास... खिल उठती वो भी उनके साथ ! सिर झुकाए, रूठे रूठे , अकड़े हुए से... जब देखती.. कुछ उलझे हुए जज़्बात.. सहलाती उनको...पूछती उनसे उनका हाल... मगर पाती उन्हें बेज़ुबान..! बदहवास से, इधर उधर टहलते वो जज़्बात ... देख कलम को, हो उठते... कुछ बोलने को बेक़रार... लगते पीटने... ज़हन का दरवाज़ा..! क़लम भी उनके संग जुट जाती...ज़हन की सांकल खटखटाती...! मौका पाकर ....सबकी नज़र बचाकर ..., वो फिर. घुस जाती झिरी से ज़हन के भीतर! हाल देख ज़हन का मगर ..ठिठक ही जाती मेरी क़लम ! वो उलझा बेचारा दुनियादारी में...किसकी सुने, किसकी कहे? फँसा शब्दों के जाल में...हुआ शब्दों से ही लाचार ! बैठा कोने में नज़रें चुराए, बोल उठता कलम से ज़हन.... "क्या दूँ मैं तुम्हें ? नहीं बचा कुछ मेरे पास! थक गया मैं... पिस कर बीच में...ख्वाबों और ख़यालों के..!" थाम हाथ ज़हन का , बोलती मुस्कुरा के मेरी कलम ... " इस तरह तुम मुझे न बिसरो..! मैं तुम्हारी गूँज हूँ..., हूँ तुम्हारी ही आवाज़..! बस! बाँट लो मुझसे.. अपने ख्वाब, अपने एहसास ! अपनी खुशियाँ , अपना अवसाद ..!!!"
खिलखिलाती, मुस्कुराती बहारें..., वो सावन की पुलकित बौछारें...! भिगो जाती थीं तन मन को जो... कहाँ गुम गयीं वो..... रिमझिम रुनझुन फुहारें....?
बनकर परछाईं...आज भी दिल में.... बरसता है वो सावन.....! भीगता नहीं मगर अब.... सूखा मन...! फिर क्यूँ... कहाँ से... कैसे..... महक उठे...... आँखों में..... ये सोंधापन....???