Wednesday 18 July 2012
* मेरी क़लम *
अकड़ जाती है जब भी मेरी क़लम..बैठे बैठे,
चल पड़ती है वो सैर को, यूँ ही मेरे..अंतस को टटोलने..!
देखती है झाँककर मेरी आँखों में...
पाती है कुछ ख्वाब...उनीन्दे से..!
बैठती कुछ पल उनके साथ...
छूकर उन्हें जगाती, उनके संग मुस्काती !
फिर पहुँचती..दिल के भीतर...
पाकर कुछ महके हुए एहसास...
खिल उठती वो भी उनके साथ !
सिर झुकाए, रूठे रूठे , अकड़े हुए से...
जब देखती.. कुछ उलझे हुए जज़्बात..
सहलाती उनको...पूछती उनसे उनका हाल...
मगर पाती उन्हें बेज़ुबान..!
बदहवास से, इधर उधर टहलते वो जज़्बात ...
देख कलम को, हो उठते... कुछ बोलने को बेक़रार...
लगते पीटने... ज़हन का दरवाज़ा..!
क़लम भी उनके संग जुट जाती...ज़हन की सांकल खटखटाती...!
मौका पाकर ....सबकी नज़र बचाकर ..., वो फिर.
घुस जाती झिरी से ज़हन के भीतर!
हाल देख ज़हन का मगर ..ठिठक ही जाती मेरी क़लम !
वो उलझा बेचारा दुनियादारी में...किसकी सुने, किसकी कहे?
फँसा शब्दों के जाल में...हुआ शब्दों से ही लाचार !
बैठा कोने में नज़रें चुराए, बोल उठता कलम से ज़हन....
"क्या दूँ मैं तुम्हें ? नहीं बचा कुछ मेरे पास!
थक गया मैं... पिस कर बीच में...ख्वाबों और ख़यालों के..!"
थाम हाथ ज़हन का , बोलती मुस्कुरा के मेरी कलम ...
" इस तरह तुम मुझे न बिसरो..!
मैं तुम्हारी गूँज हूँ..., हूँ तुम्हारी ही आवाज़..!
बस! बाँट लो मुझसे..
अपने ख्वाब, अपने एहसास !
अपनी खुशियाँ , अपना अवसाद ..!!!"
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बहुत सुन्दर अनीता जी...
ReplyDeleteजाने ये कलम न होती तो क्या होता ???
सुन्दर रचना...
अनु
सचमुच! अनु जी !
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद !:-)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteशास्त्री सर , आपके कॉमेंट से बहुत प्रोत्साहन मिलता है! बहुत बहुत धन्यवाद ! :-)
DeleteThanks Yashwant ji !:)
ReplyDeleteanita ji ,post par sunder va sarathak comment karane ke liye aabhaar swikare.aapaki kalam sair ko nikalati hai to swasthaya sath lati hai .sadhoowad
ReplyDeleteDr. Sahab, ये हमारा सौभाग्य है कि हमें आपकी ज्ञानवर्धक पोस्ट पर Comment करने का मौका मिला !
ReplyDeleteआप यहाँ आए....इसके लिए...बहुत बहुत धन्यवाद !:)
सादर !
कलाम का साथ और मन की बात .... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद....संगीता स्वरूप जी! :)
Deleteलिखते समय तो कलम की नोक पर दिल ही ठहर जाता है तभी चल पाती है कलम | सुन्दर संवाद कलम से |
ReplyDeleteअमित श्रीवास्तव जी, बहुत बहुत धन्यवाद !:)
Deleteआपने बहुत सही कहा !
कलम की नोक पर दिल ठहर जाता है, तभी चलती तो है कलम..
मगर लड़खड़ा जाती है जब भी...सहारा ज़हन ही देता है..!
एहसास, जज्बात और ज़हन की आवाज बस एक ये कलम ही तो है ....
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना ....
शिवनाथ कुमार जी, बहुत बहुत धन्यवाद!:)
Deleteचल पड़ती है वो सैर को, यूँ ही मेरे..अंतस को टटोलने..!
ReplyDeleteदेखती है झाँककर मेरी आँखों में...
पाती है कुछ ख्वाब...उनीन्दे से..!
बेहद खूबसूरत भाव भरी रचना ....
hridyanubhuti ji....बहुत बहुत धन्यवाद!:)
Deleteवाह नीतू मज़ा आ गया ...बहुत सुंदर ...बहुत प्यारी रचना !
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया भाभी ! :-)
ReplyDeleteबहुत-बहुत सुन्दर रचना....
ReplyDeleteकलम तो दिल का अहसास है...
जो दिल के सरे जज्बातों को
बाहर निकालता है...
सुन्दर;-)
beautiful sharing anita jii..thanks a ton for sharing.
ReplyDeleteबहुत खूब ....
ReplyDeleteख़्वाबों और ख्यालों की कश्मकश में जहन की आवाज को कलम से कैद करती सुंदर पेशकश.
ReplyDeleteबहुत बधाई अनीता जी इस खूबसूरत प्रस्तुति के लिये.