Friday 1 June 2012

यहीं तो था....फिर गया किधर......


यहीं तो था...फिर गया किधर.....
वो प्यार का एहसास...
अपने रिश्ते की साँस...
यहीं तो था...फिर गया किधर...?


हटाओ ये तकिया ! कहा था तुमने...,
फैला कर अपनी बाँहें बिस्तर पर...,
अब ये है तुम्हारा सिरहाना...!
अनूठा वो अंदाज़...वो प्यार का एहसास...
अपने रिश्ते की साँस...
यहीं तो था...फिर गया किधर...?


भीड़ में छुपकर के सबसे..., अचानक से...
ले लेना.. हाथों में मेरा हाथ...!
मेरा घबराना....तुम्हारा मुस्काना....,
शरारती अंदाज़.....वो प्यार का एहसास...
अपने रिश्ते की साँस....
यहीं तो था...फिर गया किधर..?


आँखों में मेरी झाँक के कहना...
बोलो ना ! करती हो मुझसे प्यार...?
मेरा शर्माना....तुम्हारा खिलखिलाना....
शोखभरा अंदाज़....वो प्यार का एहसास......
अपने रिश्ते की साँस...
यहीं तो था...फिर गया किधर?


मेरा बातों की झड़ी लगाना...
तुम्हारा टकटकी लगाए सुनना...!
अचानक मेरा थम जाना....और करना तुमसे कोई सवाल...,
तुम्हारा हकबकाना, कान पकड़ना.. और ये कहना....
भूल गया मैं...गुम था तुम्हारी अदाओं में...!
रूठना मेरा..., तुम्हारा मानाना...
मासूम वो अंदाज़...वो प्यार का. एहसास...
अपने रिश्ते की साँस...
यहीं तो था..फिर गया किधर...?

16 comments:

  1. अक्सर होता है ज़िन्दगी में....बहुत कुछ यकबयक ...पीछे छूट जाता है ..कहीं गुम हो जाता है ....विलीन हो जाता है ..और हम पूछते रह जाते हैं....
    अपने रिश्ते की साँस...
    यहीं तो था..फिर गया किधर...?
    बहुत ही प्रभावपूर्ण प्रस्तुति ...!!!

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    1. सच! और जो छूट जाता है.वो यादों में ज़िंदा रहता है....और बार बार दिल पर दस्तक देता रहता है !
      आपको पसंद आई, बहुत अच्छा लगा ! :) बहुत बहुत धन्यवाद ! :))

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  2. स्मृतियों के झरोखे से निकली हुई एक सुन्दर रचना
    आभार

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद....अंजनी कुमार जी ! :-)

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  3. कल 04/06/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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    1. यशवबन्त माथुर जी.....बहुत बहुत धन्यवाद ! :-)
      आपका सहयोग बहुत मायने रखता है हमारे लिए...!
      कुछ कामों में व्यस्त होने के कारण हम आजकल ऑनलाइन नहीं आ पा रहे हैं, इसके लिए क्षमा चाहेंगे !

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  4. सच्ची जाने कहाँ और कब चले जाते हैं वो एहसास...
    शायद हमने ही मुट्ठी नहीं कसी होती है उन लम्हों को बाँधने को....


    बहुत सुंदर एहसासों को पिरोया है आपने अनीता जी...

    बधाई.
    अनु

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    1. अनु जी....बहुत बहुत धन्यवाद...दिल से ! :-)
      कुछ एहसास मुट्ठी से रेत की मानिंद फिसल जाते हैं...हम चाहते हुए भी उन्हें रोक नहीं पाते..........

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  5. बहुत ही गहरे भाव है इस रचना में...
    प्यार के खुबसूरत लम्हों का खो जाना बहुत ही दुखदायी होता है..
    गहन भाव लिए बेहतरीन रचना...

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  6. रीना मौर्या जी.....सच कहा आपने !
    उत्साह-वर्धक शब्दों के लिए दिल से बहुत बहुत धन्यवाद !:-)

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  7. अनुपम एहसास और सुन्दर भावनाओं से रची बसी रचना अनिता जी. मन के कोमल उदगारों को सहलाती, चीरती अभिव्यक्ति. क्यूँ होता है ऐसे की मुझे कुछ भूलता नहीं और तुम्हे कुछ याद आता नहीं कहती हुई रचना.
    चार दिनों की उम्र मिली है.
    और फ़ासले जन्मों के,
    इतने कच्चे रिश्ते क्यूँ हैं,
    इस दुनिया में अपनो के.

    महादेवी वर्मा जी की पंक्तियाँ याद आ गयी.

    कण कण में बिखरी सोती है,
    अब उनके जीवन की प्यास,
    जगा न दे हे दीप! कहीं,
    उनको तेरा यह क्षीण प्रकाश!.............

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    1. सुनील जी आपके ज्ञान के आगे नतमस्तक हैं हम ! इतने प्यारे शब्दों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद और आभार !:-)

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  8. जाते हुए अपनी खुश्बू छोड़ जाता है...
    आता है फिर...
    एक नए स्वाद लेकर...

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  9. दिव्य..दिलकश ....दमदार ....इससे ज्यादा क्या कहूं...

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद....संजय भास्कर जी ! :-)

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  10. oh to aap yahan mahfil jamaye huye hain..... tabhi hum kahen ki aap gaayab kahan ho jati hain.... waise bahut hi umda likhti hain aap..... shukriya inhen post karne ke liye.....

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