मेरी कविताएँ 'गर्भनाल' पत्रिका के जून २०१४ अंक में (पृष्ठ संख्या ६८)~
http://www.garbhanal.com/Garbhanal%2091.pdf
1.
प्रेम का धागा
लपेट दिया है मैनें
तुम्हारे चारों ओर.…
तुम्हारा नाम पढ़ते हुए...
तुमसे ही छुपा कर !
और बाँध दी अपनी साँसें...
मज़बूती से सभी गाँठों में !
अब मन्नत पूरी होने के पहले...
तुम चाहो तो भी उसे खोल नहीं पाओगे...
बिना मेरी साँसों को काटे … !!!
2.
आईना तो हर दिल में होता है,
फिर क्यों भटक जाती है नज़र...
इधर उधर...
लिए हाथ में...
कोई न कोई पत्थर....?
3.
छलक उठी जब.. आँसू बनकर..
असहनीय पीड़ा... प्यार की,
खोने ही वाली थी.. अस्तित्व अपना..
कि बढ़ा दिए तुमने अपने हाथ..,
भर लिया उसे.. अँजुरी में...
और लगा लिया... माथे से अपने...!
बन गई उसी क्षण वो...
खारे पानी से... अमृत,
और हो गया...
अमर... हमारा प्यार...!
4.
चढ़ो ... तो आसमाँ में चाँद की तरह....
कि आँखों में सबकी...बस सको...
ढलो... तो सागर में सूरज की तरह...
कि नज़र में सबकी टिक सको....!
5.
एहसासों की गीली ज़मीन...
ऊपर आसमान रंगीन !
हमें धँसने का जुनून ...
तुम्हें उड़ने का जुनून...!
दोनों अपनी जगह पे क़ायम....
सुरूर दोनों का मगरूर...!
~ तुम्हारा आसमान तुम्हारे संग...
हमारे एहसास हमारे संग...~
http://www.garbhanal.com/Garbhanal%2091.pdf
1.
प्रेम का धागा
लपेट दिया है मैनें
तुम्हारे चारों ओर.…
तुम्हारा नाम पढ़ते हुए...
तुमसे ही छुपा कर !
और बाँध दी अपनी साँसें...
मज़बूती से सभी गाँठों में !
अब मन्नत पूरी होने के पहले...
तुम चाहो तो भी उसे खोल नहीं पाओगे...
बिना मेरी साँसों को काटे … !!!
2.
आईना तो हर दिल में होता है,
फिर क्यों भटक जाती है नज़र...
इधर उधर...
लिए हाथ में...
कोई न कोई पत्थर....?
3.
छलक उठी जब.. आँसू बनकर..
असहनीय पीड़ा... प्यार की,
खोने ही वाली थी.. अस्तित्व अपना..
कि बढ़ा दिए तुमने अपने हाथ..,
भर लिया उसे.. अँजुरी में...
और लगा लिया... माथे से अपने...!
बन गई उसी क्षण वो...
खारे पानी से... अमृत,
और हो गया...
अमर... हमारा प्यार...!
4.
चढ़ो ... तो आसमाँ में चाँद की तरह....
कि आँखों में सबकी...बस सको...
ढलो... तो सागर में सूरज की तरह...
कि नज़र में सबकी टिक सको....!
5.
एहसासों की गीली ज़मीन...
ऊपर आसमान रंगीन !
हमें धँसने का जुनून ...
तुम्हें उड़ने का जुनून...!
दोनों अपनी जगह पे क़ायम....
सुरूर दोनों का मगरूर...!
~ तुम्हारा आसमान तुम्हारे संग...
हमारे एहसास हमारे संग...~
सुंदर, प्यारभरी।
ReplyDeleteजीवन के कई रंगों को समेटे मन को छूती हुई
ReplyDeleteप्रेम भरी रचनायें,प्रभावशाली और सुन्दर
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई और बधाई -
आग्रह है---- जेठ मास में--------
सुंदर एहसास ...बधाई गर्भनाल मे प्रकाशन की ...!!
ReplyDeleteअर्थपूर्ण रचनाएं ... बधाई प्रकाशन की ...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत कविताएं स्नेह के इन्द्रधनुषी रंगों से रँगी ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचनाएँ
ReplyDeleteएहसासों की गीली ज़मीन...
ReplyDeleteऊपर आसमान रंगीन !
हमें धँसने का जुनून ...
तुम्हें उड़ने का जुनून...!
बहुत ही मनमोहक अभिव्यक्ति मेम.जीवन के विविध अहसासों को समेटती रचनाये है आपकी. हार्द्धिक बधाईयां