काँच और भरोसा...
दोनों ही टूटते हैं अक्सर...
काँच टूटता है...
आवाज़ होती है,
दर्द का एहसास होता है...
चोट में चुभन होती है...
ज़ख़्म से खून बहता है ...
आँखों में आँसू आ जाते हैं ...
भरोसा टूटता है...
आवाज़ नहीं होती,
दिल बुत बन जाता है...
सदमे से सुन्न हो जाता है...
पत्थर के ज़ख़्म दिखाई नहीं देते ...
और सदमे के.... आँसू नहीं होते.....
ReplyDeleteकाँच और भरोसा...
दोनों ही टूटते हैं अक्सर...
बहुत खूब कहा ... आपने
शुक्रिया सदा जी...
Deleteसादर !
बहुत सुंदर
ReplyDeleteअच्छी रचना
क्या बात
शुक्रिया महेन्द्र श्रीवास्तव जी...
Deleteसादर !
वाकई.....!!!
ReplyDeleteशुक्रिया ...
Deleteसादर !
आवाज़ ना हो तो कोई समझता नहीं,और दर्द और गहराता है ...
ReplyDeleteशुक्रिया रश्मि जी...
Deleteसादर !
gahan anubhutio se bhari rachana, भरोसा टूटता है...
ReplyDeleteआवाज़ नहीं होती,
दिल बुत बन जाता है...
सदमे से सुन्न हो जाता है...
पत्थर के ज़ख़्म दिखाई नहीं देते ...
और सदमे के.... आँसू नहीं होते......
शुक्रिया....madhu singh ji !
Deleteबहुत सुन्दर अनिता.....
ReplyDeleteएक फर्क और मैंने पाया कि काँच अकसर अनचाहे यूँ ही टूट जाया करते हैं...और भरोसा तोड़ा जाता है,जानते समझते ...नहीं????
सस्नेह
अनु
हाँ अनु ! ज़्यादातर !
Deleteमगर कभी-कभी... काँच गुस्से में भी तोड़ दिया जाता है... और भरोसा... 'नासमझी' से..~ ये भी एक अजीब सी बात है... :(
रचना पसंद करने के शुक्रिया !:)
बहुत खूब कहा है आपने...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना...
बहुत बहुत धन्यवाद व आभार...Reena Maurya ji!
Delete~सादर !
पत्थर के ज़ख़्म दिखाई नहीं देते ...
ReplyDeleteऔर सदमे के.... आँसू नहीं होते.....
....बहुत खूब! बहुत सुन्दर रचना...
बहुत बहुत धन्यवाद व आभार !:)
Delete~सादर !
क्या कहूँ , इतनी सहजता से आपने अपनी बात कही है , बहुत अच्छा लगा पढ़कर |
ReplyDeleteसादर
इतना समझ लिया...हमारे लिए बहुत है आकाश !
Deleteशुक्रिया !:)
~God Bless !
.बेहद उम्दा और सटीक गजब की प्रस्तुती है
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत हैं ...
http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/11/blog-post_6.html
शुक्रिया.... Rohitas ji !
Deleteकाँच और भरोसा का आपने अद्भुत साम्य प्रस्तुत किया है । भरोसा टूटने पर जो पीड़ा होती है , वह सर्वाधिक होती है । इस खूबसूरत प्रस्तुति के लिए मेरी शुभकामनाएँ ! -रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
ReplyDeleteकम्बोज भाई साहब, आपके स्नेहभरे प्रोत्साहन का हृदय से आभार... :)
Delete~सादर !
काँच और भरोसा टूटने का सटीक विश्लेषण ..... भरोसा टूटता है तो सच ही दिल बूट हो जाता है और सुन्न हो जाता है , चारों ओर मौन प्रिय लगता है लेकिन यह फी कितना अजीब होता है न कि भरोसा तोड़ने वाला ही शोर मचाता है ...
ReplyDeleteमन को छू गयी आपकी रचना ।
बस एक अंतर है , काँच बाहर से टूटता है और भरोसा भीतर से |
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया व आभार अमित जी !:)
Deleteवैसे....भरोसा भीतर से ही उपजता है....
~सादर !
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 08 - 11 -2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....
सच ही तो है .... खूँटे से बंधी आज़ादी ..... नयी - पुरानी हलचल .... .
बहुत आभार आपका...संगीता जी..!:)
Delete~सादर !
कांच तो बाहर था ही,भरोसा भी किया तो बाहर ही। टूटना ही था।
ReplyDeleteभरोसा हमेशा अंदर से आता है...जो बाहरी हो...वो भरोसा नहीं...दिखावा है...!
Deleteआभार आपका..!:)
~सादर !
शीशा हो या दिल हो आखिर टूट जाता है ...
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना लिखी है आपने.
शुक्रिया...शिखा जी !:)
Delete~सादर !
बहुत ही सुन्दर कविता |आभार अनीता जी |
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद...जयकृष्ण राय तुषार जी !:)
Delete~सादर ! !
अनीता जी,
ReplyDelete"पत्थर के जख्म दिखाई नहीं देते,
सदमे के आंसू नहीं होते"
सुन्दर पंक्तिया है,काँच और भरोसा...क्या दोनों की नियति है टूटना ?
शुभकामनाये
धन्यवाद युगल जी !
Deleteनियति तो इंसान को भी नहीं बख्शती...इसलिए उस बारे में क्या कहें...
हाँ! ये ज़रूर कह सकते हैं कि....दोनों ही बहुत नाज़ुक होते हैं... उन्हें बहुत संभाल कर सहेजकर जतन से रखना पड़ता है....
~सादर
बहुत बढ़िया विचार..बहुत बढ़िया शब्दों में..आला शेयरिंग हा अनीता जी.खुश रहिये
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद !:)
Delete~सादर
very touching creation..
ReplyDeleteThanks ! :)
Delete~Regards !
Sundar prastuti, deepavli kia hardik shubhkamna
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया !:)
Deleteआपको व आपके परिवार को भी दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ !
सादर