Wednesday, 27 February 2013

**~ क्षणिकाएँ.... उम्र के चार पड़ावों के नाम....~**


भारी बस्ते लिए, दौड़ लगाते बच्चों को देखा,
फिर पढ़ाई ख़त्म करने के बाद....
ज़िंदगी की दौड़ में भागते युवाओं को देखा...~
तो ये सवाल अक्सर मन में कुलबुलाया....~

"नन्हें काँधे जब उठाएँ ...किताबों का बोझ...
काँधे रहते चुस्त... ज़हन होते ख्वाब गाह... !
ज़हन उठा ले जब... किताबों का वो बोझ....
क्यूँ... काँधे झुके ...ज़हन वीराना हो जाये...???"

उम्र के उस 'नाज़ुक दौर'...
यानी 'टीनेज' से... गुज़रते बच्चों को देखा...
जब दिल सिर्फ़ अपनी सुनता है,
उसकी दुनिया सिर्फ़ उसके ख्वाब होते हैं...~
तो उनके इस ख़याल पर प्यार आया.....~

"चलो आज नींद से सुलह कर के देखें,
अपनी पलकों को ज़रा बंद कर के  देखें,
सुना है...बेघर हो गये हैं कुछ ख्वाब..,
आओ... आज उन्हें पनाह दे कर देखें...!"

उम्र का वो दौर... 
जब हम घर-गृहस्थी में उलझे हुए होते हैं,
अपने से ज़्यादा...अपने अपनों के लिए जीते हैं...~
तो अक्सर मन के किसी कोने में...ये तमन्ना बहुत है मचलती....~

"काश लौट आए वो बचपन सुहाना...
बिन बात खिलखिलाना, हँसना....
हर चोट पे जी भर के रोना.... "

उम्र के उस पड़ाव पर...
जहाँ आँखें और दिल... सिर्फ़ और सिर्फ़ पीछे मुड़कर देखते हैं...
क्योंकि ...आगे देखने की नज़र शायद धुँधला चुकी होती है... 
और आस-पास बीमारियों के सिवा....या तो कोई दिखता नहीं...
या ज़्यादा देर टिकता नहीं...~
ये देखकर दिल के भीतर तक बस एक ही बात  है सालती ...~

"ज़िंदगी की सुबह...
जिनके हौसलों से आबाद हुई,
शाम ढले क्यों ज़िंदगी...
उनसे से ही बेज़ार हुई....???"

Thursday, 21 February 2013

**~...मेरी समाधि... ~**




उठी थी एक मौज ..
मेरे मन में भी कभी...
मचल कर चली थी... भिगोने तुझे भी..!
न जाने क्या सूझी तुझे...
उछाल फेंके कुछ पत्थर... उसकी तरफ...!
तिरस्कृत सी.....घायल हुई,
सहम गयी, थम गयी ...
और फिर सिमट गयी वो मौज...
मेरे ही अंतस में....!

वक़्त बहे जा रहा था... अपनी धुन में....
और...गुमसुम सी मैं...
बाँधती गयी हर उस मौज को..
जो...उठती तेरी तरफ...!
और यूँ ...अंजाने ही...
बनते गये कई बाँध ...
मुझमें में ही अंदर...!

बहती हूँ अब मैं....
खामोश दरिया जैसे...
अपने ही किनारों के दायरे में...!

देखती हूँ.. तुम्हें भी..किनारे पर बैठे...
पुकारते उस मतवाली मौज को...
अपने हाथों को डुबो कर...
उसकी खामोश धारा में...!
कभी कभी मगर...अब भी...
फेंक ही देते हो कंकड़ उसमें...!
आदत से मजबूर जो ठहरे....!

हलचल तो होती है...पानी में ....
मगर उस मौज तक... पहुँच पाती नहीं...!
शायद....

सिमटते सिमटते मुझमें... ,
डूबती गयीं मौजें...
बनकर भँवर... मुझी में !


ढूँढती हूँ कभी.. खुद को...
पूछती हूँ...
कौन हूँ मैं, कहाँ हूँ, किसलिए हूँ...?
पर कोई जवाब नहीं मिलता...

मैं भी शायद...
डूब गयी, खो गयी....उसी मौज के संग...!
मुझे पता भी न चला...
और बन गयी...मेरी एक समाधि ......
मुझमें में ही कहीं अंदर...!!!

Sunday, 17 February 2013

**~ जीवन चक्रव्यूह का डेरा....~**


'अक्सर हालातों पर अपना बस नहीं होता है.... कौन अपना, कौन पराया....वक़्त सबके मायने बदल देता है....~खामोश ज़ख़्म का दर्द ... खुद लहूलुहान हो सिसकता है.....'

जीवन चक्रव्यूह का डेरा,
सदमों का लगा पहरा....
बोझिल साँसें...बेकल सारी,
जीवन-परिभाषा हारी....!
अपने क्या...और सपने क्या...
सबका रचा है ये घेरा...!
घातों ने... आघातों ने...
तोड़े कई गुमान...
किसी के हाथों... थमाया पहिया,
मौन खड़ा कहीं जला हिया....!
जान कोई... अंजान कोई....
कोई बेक़सूर...बेबस हो जिया....!
तोड़े वक़्त भ्रम-जाल सभी
बदले अपनों की नज़रें भी...
हाय! कैसी लाचारी उसकी ... 
काँटों की जिसकी शय्या ....!!!

Wednesday, 13 February 2013

** ~ तुम्हारे-मेरे बीच... प्यार ... ~ **



तुम्हारे-मेरे बीच... प्यार  की...
क्या कोई भाषा... अवसर की आशा...

सुबह-सवेरे...चाय की चुस्की के संग...
चेहरे पर एक मुस्कान खिल जाना...!

दौड़ते-भागते पलों को थाम ....
नाश्ते संग दवा की याद दिलाना....!

छोटी-छोटी तक़रारों में उलझना..  
फिर एक जगह मिलकर सुलझ जाना...!

चिंता के गहरे कुएँ से निकाल...
आस किरन पर झूला झुलाना...!

दुख के भीगे-भीगे क्षणों में...
आँखों से मोती चुराना ...!

बिना किसी वजह को ढूँढे ...
अनमोल हँसी को खोज निकालना...! 

कोई वादा ना करके भी...
हर वादे को भरपूर निभाना....!

न कुछ कहना...न  कुछ सुनना...
खामोशी की नब्ज़ पकड़ना...!

दिल से दिल के बीच बना जो...
उस अनदेखे पुल को थामे रहना...!

बस ! यही... तुम्हारे-मेरे बीच प्यार की...
अमिट, अमोल, सरल परिभाषा .....!!!

Monday, 11 February 2013

**~मेरी दुनिया....~क्षणिकाएँ ~**



कौन से दो जहाँ माँगे मैनें...
सिर्फ़ दुनिया ही तो माँगी थी ...
तुम्हारी दो बाहों के आगे ....
मेरी कोई  दुनिया ही कहाँ....???


 न चाहत, न ही कोई तमन्ना...
बाक़ी अब इस ज़िंदगी में मेरी...,
तू सरमाया, तेरा हाथ, तेरा साथ...
बस यही दुनिया मेरी.....

Friday, 8 February 2013

**~आओ...फिर वही पुराना गीत गुनगुनायें ...~**



आओ...फिर वही  पुराना गीत गुनगुनायें ...

तुम अपनी छत पर.. मैं अपनी छत पर ..
देखें दोनों.. एक दूजे को छिप कर !
पड़ जायें कहीं सामने तो... 
निकल जायें फिर क़तरा कर...!

रस्ते पे टकटकी लगाए...करूँ मैं तुम्हारा इंतज़ार...
पाने को एक झलक तुम्हारी...होती रहूँ मैं बेक़रार..
मगर तुम्हारे आते ही...छिप जाऊँ मैं पर्दे की आड़...
और देखो मुझे, तुम.. पलट-पलट कर... बार-बार.. !
तरसती निगाहें छोड़ कर... सूने से उस मोड़ पर..,
गुम जाओ तुम... देकर मुझको..फिर उदासी का सिंगार..!

एक आस मेरी, एक तुम्हारी... 
आँखों में लेकर ...सो जायें दोनों ..!
अगली शाम सजाने को....
फिर सपनों के दीप जलायें....!

आओ...फिर वही  पुराना गीत गुनगुनायें...!!!

Wednesday, 6 February 2013

~** हाइकु ~धूप कहाँ हो तुम ...??? **~



शीत ऋतु में
बारिश की बौछारें..
चुभें शूल सी...!


सूर्य देवता
बादलों की ओट में     
क्यूँ छिपे तुम... ?

सर्द लहर,
ठिठुरती है काया.. 
धूप कहाँ हो ?

 मेघ गर्जना
सर्द सोए दिन में
ज़रा ना भाए...!

5. दिन सिहरा
बादलों की चादर
छिड़कें बूँदें...!

Sunday, 3 February 2013

**~ खुली आँखों के सपने भी सच होते हैं....... ~**



खुली आँखों के सपने भी कभी सच होते हैं ...? आज भी विश्वास नहीं होता ... मगर ऐसा हुआ ...!
बहुत दिन नहीं बीते, अभी २७ जनवरी २०१३ की ही बात है ...
मैं अपने पति और बेटे के साथ सी आई आई पार्ट्नरशिप समिट 2013 (CII Partnership Summit 2013) में आगरा गयी थी !
जाने का बिलकुल मन नहीं था क्योंकि घर में रेनोवेशन का बहुत काम फैला हुआ था
और मुझे लग रहा था कि  वहाँ  मेरे काम की चीज़ तो कोई होगी नहीं !
ताजमहल देखने का मुझे कोई चाव नहीं था क्योंकि मेरे मामा जी के आगरा में होने की वजह से..
हम हमेशा छुट्टियों में वहाँ जाया करते थे और हर बार ताजमहल भी देखने जाते थे !
मगर पतिदेव का मन था कि वो मेरे साथ ताजमहल देखें !
फिर पतिदेव ने ये भी बताया कि उस समिट में दिन में कान्फरेन्स है..
और दो शामों यानी २७ जनवरी व २८ जनवरी को कल्चरल ईव्निंग भी है!
देश के उप-राष्ट्रपति तथा यू .पी . के मुख्यमंत्री आ रहे हैं,
तो ज़ाहिर है... कुछ अच्छा ही कार्यक्रम होगा !
मुझे नृत्य व संगीत देखने सुनने का बहुत शौक है , इसलिए मैनें भी हामी भर दी !
  २७ तारीख़ की शाम  को समिट का उदघाटन हुआ , कुछ भाषण वगैरह हुए !
फिर सब डेलिगेट्स को बस के द्वारा 'आई .टी . सी  मुग़ल' होटेल के लॉन्स  में पहुंचा दिया गया !
इस पूरी शाम के 'शो' की कॉम्पियरिंग 'टी वी और फिल्म आर्टिस्ट' 'सौम्या टंडन' कर रहीं थीं !
वो बहुत खूबसूरत और कमाल की  लगीं !
पहले वहाँ दीप प्रज्वलित किए गये, फिर कुमकुम धर जी का कत्थक नृत्य हुआ ! मुझे उनका नृत्य बहुत पसंद आया !
मैं उसी में मग्न थी...तभी मेरी एक मित्र ने मुझे बताया कि शायद 'श्यामक डावर' का शो भी है !
मुझे विश्वास ही नहीं हुआ ! सरोज खान जी, फराह खान, प्रभुदेवा और श्यामक, ये सभी मेरे पसंदीदा नृत्य निर्देशक हैं !
श्यामक की तो मैनें वर्कशॉप भी अटेंड की हुई थी ! मैं तो उसकी बहुत, बहुत बड़ी फ़ैन..  फ़ैन नहीं बल्कि 'ए.सी.' ठहरी ! 
फिर अनाउंसमेंट हुआ कि....
अपने चहेते डॉन्स आइकॉन 'नन  अदर  दैन... 'श्यामक' और उसके ट्रूप का तालियों से स्वागत कीजिये !
मेरी ख़ुशी का तो ठिकाना ही नहीं था ...!
श्यामक के ग्रुप ने कुछ सूफी गाने जैसे 'ख्वाजा मेरे ख्वाजा ' 'कहने को जश्ने बहाराँ है ' ,
'रामायण' पर, नृत्य नाटिका इत्यादि प्रस्तुत किये ! उसी में काफी समय लगा !
मेरी सहेली बोली, ''श्यामक हर जगह नहीं जाता है, उसका  ग्रुप ही परफॉर्म करता है "!
मुझे बड़ी निराशा हुई ...! फिर भी मैं ऐसे ही , उसके ग्रुप को ही देखकर खुश होने की कोशिश करने लगी ...!
तभी उसके ग्रुप ने 'आ जा, आ जा, जिन्द शामियाने के तले ..आ जा ...' पर डांस शुरू किया ..
अचानक...पीछे अँधेरे से एक साया उभरा .... 'जय हो !'
काला कोट पहने 'श्यामक' की धुआंधार एंट्री हुई !
"श्यामक !" मैनें  मुंह से चीख निकलते निकलते दबा ली ....!
मेरे तो झूमने और ताली बजाने पर कोई कंट्रोल ही नहीं हो रहा था ...! 
उस वक़्त मैं सबकुछ भूल गयी ... बस! श्यामक की धुनों और गीतों की बीट्स पर मैं झूम-झूम कर तालियाँ बजा रही थी ...!
थोड़ी देर में शो ख़त्म होने को आया !
श्यामक अपने शोज़ में, अंत में हमेशा अपने दर्शकों को बुलाता है, स्टेज पर ले जाता है , ये मैनें सुना था !
झूम हम लोग पहले ही रहे थे , फिर वो स्टेज से नीचे उतर आया..और सबको बुलाने लगा !
मेरी सहेली ने भी मुझसे कहा, ''चलो आगे चलते हैं! '' 
मुझे ज़रा संकोच हो रहा था .... दूर बैठकर ताली बजाना और झूमना अलग बात है ! ऐसे बिलकुल सामने चला जाना ...
फिर भी सभी लोग आगे आ गए थे ! एक सेमी-सर्कल सा बन गया था !
श्यामक मुझसे कुछ ही दूरी  पर था , वो दूसरी ओर मुंह करे खड़ा था , हम सब ताली बजा रहे थे !
अचानक वो मुड़ा , उसने मुझे देखा और बोल पड़ा .. "ओ ! कम! कम! " और अपना हाथ आगे बढ़ा  दिया !
पीछे से किसी की आवाज़ सुनाई दी ..." जाओ! जाओ ना  !"
मैं तो जैसे पता नहीं कहाँ थी ... उसने मेरा हाथ पकड़ा और ले गया मुझे स्टेज पर !
मैं उस वक़्त सातवें आसमान पर और असंमजस व संकोच के मिली-जुली भावनाओं के बीच झूल रही थी !
स्टेज के स्टेप्स चढ़ते -चढ़ते मैनें उसे बताया कि  ये मेरी ज़िन्दगी का सपना था कि  मैं उसका लाइव शो देखूँ !
वो भी हंसकर बोला "ओ रियली !"
स्टेज पर जब और कुछ लोग आ गए तब मैं ज़रा पीछे खिसक गयी !
उसने एक-आध स्टेप्स बताये , बहुत ही मजेदार तरीके से !
फिर सबको बाय कह कर जाने वाला था , तभी मेरे पति भी आ गए !
मैनें ज़रा सकुचाते हुए श्यामक से पूछा "कैन आई हैव ए फोटोग्राफ विध यू ...प्लीज़?"
इसपर वो बोला, "येस ओफ़कौर्स!"
मेरे पति ने हम दोनों की फोटो  खींची !
उसके बाद... इसके पहले कि  और पब्लिक आती , वो भागकर अन्दर चला गया !
  मैं अभी भी सोचती हूँ .... मैं श्यामक से मिली .....
जिसके लिए मैं हमेशा कहती थी ...  'काश! श्यामक मुझे एरोबिक्स के कुछ स्टेप्स सिखा  दे '  , मैं उसके साथ थी ...
एक सपना सा लगता है....
 लखनऊ से आगरा जाते वक़्त, मॉल में बच्चों से सारे गुब्बारे खरीदने और उन्हें कुछ कपडे देने की ख़ुशी साथ लेकर गयी थी !
आगरा पहुँच कर इतनी बड़ी ख़ुशी मिली , जिसकी मुझे कभी सपने में भी उम्मीद नहीं थी ......... :-)