वो भी दिन थे...
न तुमने कुछ कहा, न ही मैनें...
मगर दोनों की खामोशी का रूप कितना जुदा था...~
तुमने कभी कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं समझी .....
और मेरी आवाज़ गूँजती रही ...
मेरी झुकी पलकों के भीतर...
काश! सुन ली होती तुमने...
तो आज....
अपने बीच इस तरह चीखती ना होती....
ये खामोशी...........!
काश! ज़िंदगी ऐसी एक किताब होती......
कि जिल्द बदलने से सूरत-ए-हाल बदल जाते...
मायूस भरभराते पन्नों को कुछ सहारा मिलता....
धुंधले होते अश्आर भी चमक से जाते....
तो...बदल लेते हम भी...~
शिक़वों को फाड़ देते...
फ़िक्रें ओढ़ लेते....
ज़िंदगी को भी....
कुछ साँसें और मिल जातीं..........!
bahut khoob anita ji....
ReplyDeleteThank u... Shalini ji ! :)
ReplyDeleteचंद पल की वो खामोशी अगर टूट जाती तो ये "**~काश...!~**" कभी नही होता।
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरती के साथ लिखा हैं।
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/11/3.html
Rohitas ji... शुक्रिया !:)
Deleteकाश! ज़िंदगी ऐसी एक किताब होती......
ReplyDeleteकि जिल्द बदलने से सूरत-ए-हाल बदल जाते...
मायूस भरभराते पन्नों को कुछ सहारा मिलता....
धुंधले होते अश्आर भी चमक से जाते....
तो...बदल लेते हम भी...~
शिक़वों को फाड़ देते...
फ़िक्रें ओढ़ लेते....
ज़िंदगी को भी....
कुछ साँसें और मिल जातीं..
आपको मंजिल मिले
सर... आपका बहुत बहुत शुक्रिया !:)
Delete~सादर !!!
बहुत सुन्दर कविता |
ReplyDeletewww.sunaharikalamse.blogspot.com
हरिवंश राय बच्चन की कविताएँ यहाँ पढिये
जी... बहुत बहुत शुक्रिया !
Delete~सादर!!!
"खामोशी की चीख" और "किताबे जिंदगी" - बहुत-बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया... राकेश कौशिक जी !
Delete~सादर !!!
बहुत ख़ूब!
ReplyDeleteआपकी यह सुन्दर प्रविष्टि आज दिनांक 03-12-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1082 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
आभार सर !:)
Delete~सादर !!!
बहुत खूब ! शानदार !!
ReplyDeleteGyan Darpan
शुक्रिया Ratan singh जी!:)
Delete~सादर!!!
वो भी दिन थे...
ReplyDeleteन तुमने कुछ कहा, न ही मैनें...
मगर दोनों की खामोशी का रूप कितना जुदा था...~
तुमने कभी कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं समझी .....
और मेरी आवाज़ गूँजती रही ...
मेरी झुकी पलकों के भीतर...
काश! सुन ली होती तुमने...
तो आज....
अपने बीच इस तरह चीखती ना होती....
ये खामोशी...........!
पहला कमेन्ट मैंने जल्दबाजी में किया था लेकिन अब कविता के ह्रदय में उतर कर उसमे डुबकियाँ लगाकर कर रहा हूँ |बहुत ही अच्छी कविता है |
धन्यवाद... तुषार जी !:)
Delete~सादर !!!
बहुत खूब
ReplyDeleteधन्यवाद... संजय कुमार चौरसिया जी !:)
Delete~सादर!!!
खामोशी और सन्नाटे का अंतर मौन अभिव्यक्ति ने खूब रेखांकित किया है वहीं दूसरे चित्र में जिल्द और किताब का प्रयोग कोमल भावों को उकेरने में सफल रहा है. भावपूर्ण रचना के लिए बधाई.
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद... अरुण कुमार निगम जी !:)
Deleteसादर !!!
बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी.बेह्तरीन अभिव्यक्ति .शुभकामनायें.
ReplyDeleteआपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
आपका हार्दिक धन्यवाद !:)
Delete~सादर !!!
काश! ज़िंदगी ऐसी एक किताब होती......
ReplyDeleteकि जिल्द बदलने से सूरत-ए-हाल बदल जाते...
मायूस भरभराते पन्नों को कुछ सहारा मिलता....
धुंधले होते अश्आर भी चमक से जाते..
....दिल को छू जाते अहसास...शब्दों और भावों का बहुत सुन्दर संयोजन...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
हार्दिक धन्यवाद सर !:)
Delete~सादर !!!
ReplyDeleteखामोशी की चीख ,मौन मुखर होते देखा ,
रचना को आपकी खुद अपने से रु -ब-रु देखा .
हार्दिक धन्यवाद सर !:)
Delete~सादर !!!
खामोशी की चीख ,मौन मुखर होते देखा ,
ReplyDeleteरचना को आपकी खुद अपने से रु -ब-रु देखा .
गैरों से कहा तुमने ,गैरों को सूना तुमने ,
कुछ हमसे कहा होता ,कुछ हमसे सूना होता ,
क्यों चले गए यों ही निस्संग छोड़ के ,एक भूतहा मौन छोड़ के .
ReplyDeleteखामोशी की चीख ,मौन मुखर होते देखा ,
रचना को आपकी खुद अपने से रु -ब-रु देखा .
गैरों से कहा तुमने ,गैरों को सूना तुमने ,
कुछ हमसे कहा होता ,कुछ हमसे सुना होता ,
क्यों चले गए यों ही निस्संग छोड़ के ,एक भूतहा मौन छोड़ के .
शिक़वों को फाड़ देते...
ReplyDeleteफ़िक्रें ओढ़ लेते....
ज़िंदगी को भी....
कुछ साँसें और मिल जातीं.........सुन्दर हैं
बेहतरीन...
ReplyDeleteआप ब्लॉग पर आइए...एक योजना है पढ़कर अवगत कराइए...
शिक़वों को फाड़ देते...
ReplyDeleteफ़िक्रें ओढ़ लेते....
ज़िंदगी को भी....
कुछ साँसें और मिल जातीं..........!
खामोशीयन बहुत कुछ कहती हैं .... सुंदर अभिव्यक्ति
bahut hii acchee kavita hai Anita ji.
ReplyDeleteगहन एहसास ...बहुत सुंदर रचना ...अनीता जी ॥
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
ReplyDeleteप्यारी रचना.
ReplyDeleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteजिंदगी किताब होती तो क्या बात थी ...
लाजवाब नज़्म ...
आपकी प्रस्तुति का भाव पक्ष बेहद उम्दा लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।
ReplyDeleteक्या बात है...वाह!! शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteसुन्दर चित्रण...उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteutam-**
ReplyDeleteआप सभी गुणी जनों का ह्रदय से धन्यवाद व आभार !:-)
ReplyDeleteक्षमा चाहती हूँ ! मेरी तबीयत खराब होने के कारण मैं Online नहीं आ सकी !:(
~सादर!!!
very...expressions
ReplyDeleteमगर दोनों की खामोशी का रूप कितना जुदा था...~
तुमने कभी कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं समझी .....
its very true...
आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 11अप्रैल 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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