सर्द मौसम,
ठिठुरते हैं जिस्म,
देखो ईश्वर!
कंपकपाते हाथ...
ढूँढे तेरा निशान..!
सर्द लहर,
ढाये कैसा कहर...
बेबस हुआ
ग़रीब का आँचल...,
तपे, ठंडी आस में...!
सर्दी की धूप,
तेरी यादों के जैसी...
गुनगुनाती....
रोम-रोम को मेरे,
कर देती झंकृत !
छाया कोहरा,
सर्द आहें भरते,
मानव सभी!
खुदा तेरी आस के,
जलते अलाव हैं...!
सर्दी क़हर !
रात बहुत भारी !
दिन भी रोया !
गरीब जो सोया, तो
खुली ही रहीं आँखें !
गरीब जो सोया, तो
ReplyDeleteखुली ही रहीं आँखें !
बहुत ही मार्मिक चित्रण
सादर
सभी तांका बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी...
ReplyDelete"सर्दी की धूप,
ReplyDeleteतेरी यादों के जैसी...
गुनगुनाती....
रोम-रोम को मेरे,
कर देती झंकृत!"
सर्दी के विभिन्न रंगों से सजी सुंदर प्रस्तुति
सर्दी क़हर !
ReplyDeleteरात बहुत भारी !
sahi kaha aapne sundar rachna ....
शानदार लेखन,
ReplyDeleteजारी रहिये,
बधाई !!
Nice poem..
ReplyDeleteबहुत सुंदर एवं बहुत ही भाव-प्रवण कविता । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
छाया कोहरा,
ReplyDeleteसर्द आहें भरते,
मानव सभी!
खुदा तेरी आस के,
जलते अलाव हैं...!
सर्दी क़हर !
रात बहुत भारी !
दिन भी रोया !
गरीब जो सोया, तो
खुली ही रहीं आँखें !
आस्था विश्वास संग इश्वर का अनूठा संगम.
बहुत प्रभावशाली रचना ...
ReplyDeleteआप सभी गुणीजनों का दिल से आभार...
ReplyDelete~सादर !!!