जीवन में कुछ रिश्ते दिल के बहुत-बहुत क़रीब होते हैं -माँ, पिता, बेटा, बेटी और दोस्त ! विशेषकर 'बिटिया' तो दिल की धडकन की तरह हरपल साथ होती है !फिर उसके लिए किसी एक दिवस की कोई दरक़ार कहाँ !
ये कविता हर दिन, हर पल - सभी बेटियों को असीमित स्नेह एवं शुभकामनाओं सहित समर्पित ~
पाँव पड़ते ही जिनके
हो जाता है घर में उजाला,
सूरज की किरणों सी-
बिछ जाती हैं,
ढक लेती हैं,
हर अँधेरे कोने को
अपनी सुनहरी आभा से !
रिमझिम बूँदों सी होती हैं बेटियाँ !
मचलती, थिरकती, गुनगुनाती
भिगोती, मन लुभाती,
मिटा देती हैं थकन
और आँगन का सूनापन
अपनी चंचल किलकारियों
और अंतहीन
मख़मली बातों से !
मंदिर की घंटियों सी होती हैं बेटियाँ !
गूँजती रहती है जिनकी बातें
कानों में
और थपथपाती हैं
दिलों के द्वार,
लेकर मन में
चंदन की सुगंध,
कर देती हैं पावन
हर उस शय को
जो होती है उनके आसपास
अपने स्नेहिल स्पर्श से !
माँ की दुआओं सी होती हैं बेटियाँ
जो रहती हैं बन कर परछाईं
पिता और भाई के साथ !
बचाती हैं हर संकट से उन्हें,
संभालती हैं
हर मुश्किल घड़ी में ,
देकर मज़बूत सहारा
अपने विश्वास का,
थामती हैं, भरमाती हैं
अपनी मासूम संवेदनाओं से !
चोट पर मलहम सी होती हैं बेटियाँ
खींच लेती हैं
हर दर्द को ,
सहलाती हैं प्यार से,
धोती हैं अपने आँसुओं से
उस ज़ख़्म को,
जो दिखता नहीं किसी को
पर महसूस करती हैं वो
अपनी आत्मा की गहराई से !
शीतल चाँदनी सी होती हैं बेटियाँ !
देती हैं सुक़ून,
ग़म के घने बादलों को
हटाकर,
मिटाकर अँधेरी-स्याह रातों की
कालिमा,
उबारती हैं,
देती हैं हिम्मत
अपने मासूम आश्वासनों
और स्निग्ध,
निश्छल मुस्कानों से !
घर का उल्लास होती हैं बेटियाँ,
हर दिल की आस होती है बेटियाँ,
हँसती-खिलखिलाती हैं जिस घर में प्यारी बेटियाँ !!!
पूजा की ज्योत होती हैं बेटियाँ,
बरसता है ईश्वर का नूर सदा उस दर पर,
हँसती-खिलखिलाती हैं जिस घर में प्यारी बेटियाँ !!!
~अनिता ललित
अनुपम भाव संजोये बहुत ही सुन्दर रचना...
ReplyDeletemuskaankikalamse.blogspot.com
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल सोमवार (26-09-2016) के चर्चा मंच "मिटा देंगे पल भर में भूगोल सारा" (चर्चा अंक-2477) पर भी होगी!
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
दिल को छूने वाली कविता. दो दिन व्यस्त रहा क्योंकि मेरे घर की रोशनी हॉस्टल से आई थी दो दिन के लिये. अभी लौट गयी. लगता है रोशनी चली गयी. इस कविता को पढते हुए बस बिटिया का साथ और विछोह दोनों एक साथ अनुभव हुआ.
ReplyDeleteआभार आपका!!
आप सभी का हार्दिक आभार!
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
जय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 27/09/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
आभार ...
Deleteबहुत सुन्दर.
ReplyDeleteदिल को चूने वाले शब्द ... रचना सधे मन को छूती है ... बेटियों की याद दिलाती है ...
ReplyDeleteBahut sundar !! man khush ho gya padkar
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 29/07/2019 की बुलेटिन, "ब्लॉग बुलिटेन-ब्लॉग रत्न सम्मान प्रतियोगिता 2019(छतीसवां दिन)कविता “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteअत्यंत स्नेहिल हावों से भरी रचना , जो हर शब्द में बेटियों की महिमा और गरिमा को चार चाँद लगा रही है | सस्नेह शुभकामनायें सुंदर सार्थक लेखन के लिए | ब्लॉग बुलेटिन मंच का शुक्रिया और आभार जिनके सौजन्य से आपके ब्लॉग तक पहुँच पायी |
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