1
सपनों में आती हैं
बचपन की गलियाँ
यूँ पास बुलाती हैं।
2
चिटके सुख का प्याला
जैसे उम्र ढले
विष सी जीवन-हाला।
3
भाए ना जीवन को
दुनिया के मेले
ठेस लगे जब मन को।
4
पीड़ा मन की गहरी
आँखों से छलके
पलकों पर आ ठहरी।
5
सपन करे हैं बैना
बन के किर्च चुभें
सोना भूले नैना।
~अनिता ललित
इन कड़ियों में हर किसी को अपना भूला बचपन याद आ जाएगा... यही नहीं छोटी छोटी बातों के माध्यम से एक ऐसा भावनात्मक ताना बाना बुना गया है जो बरबस जोड़ लेता है... और अंतिम छंद
ReplyDeleteसपन करे हैं बैना
बन के किर्च चुभें
सोना भूले नैना।
तो बस अल्टीमेट है!! बहुत सुन्दर!!
आपका हार्दिक आभार !
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
आभार सर ...
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
बहुत सी यादों को उकेर गयीं माहिए की पंक्तियाँ ...
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआप सभी का हार्दिक आभार !
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
बहुत सुन्दर ...
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